UAPA में धारा 13 का एक समानांतर प्रावधान है, जो कहता है कि जो कोई भी भारत के खिलाफ असंतोष पैदा करना चाहता है या करने का इरादा रखता है। राजद्रोह में यह सरकार के खिलाफ असंतोष है, लेकिन UAPA प्रावधान में यह भारत के खिलाफ असंतोष है, बस यही अंतर है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एम.बी. लोकुर ने कहा कि राजद्रोह पर सुप्रीम कोर्ट का 11 मई का आदेश महत्वपूर्ण है। वहीं, उन्होंने गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (UAPA) के एक प्रावधान के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए कहा कि यह खराब से बदतर स्थिति में जाने जैसा है।
‘राजद्रोह से आजादी’ कार्यक्रम में शनिवार को पूर्व न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित अंतरिम आदेश के मायने समझाने की कोशिश की। सुप्रीम कोर्ट ने आजादी से पूर्व के राजद्रोह कानून के तहत देश में सभी कार्यवाहियों पर तब तक के लिए रोक लगा दी है जब तक कि कोई उपयुक्त सरकारी मंच इसकी फिर से जांच नहीं करता और निर्देश दिया कि केंद्र और राज्य अपराध का हवाला देते हुए कोई नई FIR दर्ज नहीं करेंगे।
UAPA खराब से बदतर स्थिति में जाने जैसा
लोकुर ने कहा कि मुझे नहीं पता कि सरकार राजद्रोह के प्रावधान के बारे में क्या करेगी, लेकिन मेरी राय में वह इसे हटा देगी। उन्होंने कहा कि उतना ही चिंताजनक UAPA में धारा 13 का एक समानांतर प्रावधान है, जो कहता है कि जो कोई भी भारत के खिलाफ असंतोष पैदा करना चाहता है या करने का इरादा रखता है। उन्होंने कहा कि राजद्रोह में यह सरकार के खिलाफ असंतोष है, लेकिन यूएपीए प्रावधान में यह भारत के खिलाफ असंतोष है, बस यही अंतर है।
राजद्रोह में कुछ अपवाद थे, जहां राजद्रोह के आरोप लागू नहीं किए जा सकते, लेकिन यूएपीए की धारा 13 के तहत कोई अपवाद नहीं हैं। यदि यह प्रावधान बना रहता है, तो यह खराब से बदतर स्थिति में जाने जैसा होगा।
UAPA के तहत जमानत प्राप्त करना कठिन
पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि राज्य असंतोष के रूप में क्या देखता है, यह स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं है, यह बहुत खतरनाक है क्योंकि UAPA के तहत जमानत प्राप्त करना कठिन है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई के अपने आदेश में राजद्रोह के मामलों में जांच पर रोक लगा दी थी तथा देशभर में राजद्रोह कानून के तहत लंबित मुकदमों और सभी कार्यवाहियों पर रोक लगा दी थी।
लोकुर ने कहा कि देशभर में लंबित मुकदमे और राजद्रोह कानून के तहत सभी कार्यवाहियों पर यह यथास्थिति एक नुकसानदेह हिस्सा है। मान लीजिए कि एक व्यक्ति जो निर्दोष है, लेकिन राजद्रोह के तहत उसके खिलाफ झूठा मामला दर्ज किया गया है और चाहता है कि मुकदमा पूरा हो जाए, तो उसे कुछ समय इंतजार करना होगा।
उन्होंने कहा कि इसी तरह, अगर किसी को राजद्रोह के तहत दोषी ठहराया जाता है और उसने अपनी सजा के खिलाफ अपील दायर की है, तो उसे भी इस तरह की यथास्थिति को हटाए जाने तक इंतजार करना होगा।
लोगों को राहत देने के लिए एक तंत्र तैयार करना चाहिए
लोकुर ने कहा कि बेहतर होता अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस यथास्थिति का आदेश नहीं दिया होता और इसके बजाय ऐसे लोगों को राहत देने के लिए एक तंत्र तैयार करना चाहिए था। उन्होंने युवा पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि का उल्लेख किया, जिनके पासपोर्ट पर रोक लगा दी गई और वह कोपेनहेगन के एक शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए नहीं जा सकीं क्योंकि उन पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया था।
लोकुर ने कहा कि जो लोग राजद्रोह के प्रावधान का सामना कर रहे हैं उन्हें कुछ सुरक्षा की आवश्यकता है, क्योंकि यदि उनके मुकदमे पर रोक लगा दी जाती है तो उन्हें निर्णय आने के लिए अनिश्चित काल तक इंतजार करना होगा। यह यथास्थिति आदेश कुछ समस्या पैदा कर सकता है।