बीमा कंपनी को केवल अपने फायदे के लिए काम नहीं करना चाहिए- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा, "बीमा कंपनी का यह कर्तव्य है कि वह अपनी जानकारी में मौजूद सभी भौतिक तथ्यों का खुलासा करे, क्योंकि सद्भावना का दायित्व दोनों पर समान रूप से लागू होता है।"

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-बीमा कंपनी का यह कर्तव्य है कि वह अपनी जानकारी में मौजूदा सभी भौतिक तथ्यों का खुलासा करे क्योंकि सद्भावना का दायित्व दोनों पर समान रूप से लागू होता है। 

नई दिल्ली ( एजेंसी )। सुप्रीम कोर्ट में बीमा कपनियों के व्यवहार को लेकर बुधवार को सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि एक बीमा कंपनी से यह उम्मीद की जाती है कि वह बीमाधारक के साथ वास्तविक और निष्पक्ष व्यवहार करेगा, न कि केवल अपने मुनाफे की परवाह करेगा।

मामले में शिकायतकर्त ने 100 एकड़ क्षेत्र में झींगा उत्पादन किया था। उन्होंने एक बीमा कंपनी से बीमा कवरेज लिया था।आंध्र प्रदेश के पूर्वी तट पर ‘व्हाइट स्पॉट डिजीज’ नामक बीमारी के प्रकोप कारण बड़े पैमाने पर झींगा की मौत हो गई। जिसके बाद उन्होंने पॉलिसी का प्रयोग किया और बीमा कंपनी के समक्ष दावा पेश किया। हालांकि कंपनी ने दावे को खारिज कर दिया। कंपनी ने आरोप लगाया कि शिकायतकर्ता ने पॉलिसी शर्तों का उल्लंघन किया है। उसने रिकॉर्ड ठीक से और सटीक रूप से बनाकर नहीं रखा। एनसीडीआरसी ने शिकायत का निस्तारण किया और शिकायतकर्ता का कुल नुकसान 30,69,486.80 रुपये आंका। आदेश से असंतुष्ट शिकायतकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

शुरुआत में, अदालत ने कहा कि बीमा के अनुबंध में उबेरिमा फाइड्स, यानी सद्भावना की आवश्यकता होती है। कोर्ट ने कहा, “यह बीमा कानून का मूल सिद्धांत है कि अनुबंधित पक्षों अत्यंत सद्भावना का पालन करें…बीमा कंपनी का यह कर्तव्य है कि वह अपनी जानकारी में मौजूदा सभी भौतिक तथ्यों का खुलासा करे क्योंकि सद्भावना का दायित्व दोनों पर समान रूप से लागू होता है। यह दायित्व और कर्तव्य न केवल बीमा अनुबंध की शुरुआत में बल्कि इसकी मौजूदगी के पूरे समय और बाद में भी दोनों पक्षों पर निर्भर रहेगा।”

मृत्यु प्रमाण पत्र को आसानी से खारिज कर दिया

“किसी भी स्थिति में किसी बीमा कंपनी के पास यह विकल्प नहीं है कि वह किसी ऐसे प्रमाणपत्र या दस्तावेज को नजरअंदाज कर दे या उस पर कार्रवाई करने में विफल हो जाए, केवल इसलिए कि यह उसके प्रतिकूल है या उसके लिए नुकसानदेह है, वह भी तब, जब उसने खुद उसे स्वतंत्र और निष्पक्ष अधिकारियों से मांगा था…

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा, “बीमा कंपनी का यह कर्तव्य है कि वह अपनी जानकारी में मौजूद सभी भौतिक तथ्यों का खुलासा करे, क्योंकि सद्भावना का दायित्व दोनों पर समान रूप से लागू होता है।”पीठ ने कहा कि बीमा कंपनी ने विशाखापत्तनम में राज्य मत्स्य पालन विभाग के अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत एक मई 1995 के मृत्यु प्रमाण पत्र को आसानी से खारिज कर दिया।

निर्दिष्ट स्थितियों में संभावित नुकसान के खिलाफ बीमाधारक को क्षतिपूर्ति देने का कार्य करने के बाद, एक बीमा कंपनी से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने वादे को वास्तविक और निष्पक्ष तरीके से पूरा करे, न कि केवल अपने मुनाफे की देखभाल और पूर्ति करे। अपील को स्वीकार करते हुए, अदालत ने आदेश दिया कि बीमा कंपनी अपीलकर्ता को 45,18,263.20 रुपये की राशि शिकायत की तारीख से वसूली की तारीख तक, 10% की दर से साधारण ब्याज के साथ छह सप्ताह के भीतर प्रदान करे।

केस टाइटलः इस्नार एक्वा फार्म्स बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड

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