
भारत में सत्ता पर काबिज रहने के लिए नेता राजनीति से अधिक आत्मबल और मनोबल को तोड़ने वाले घृणित कार्यों पर विश्वास कर रहे हैं। इन नेताओं ने धर्म को भी संकट में डाल दिया है।
देश के नागरिक भ्रम और भय में जी रहे हैं। भ्रम और भय के कारण व्यक्ति का नैतिक पतन हो चुका है। अनैतिक व्यक्ति में नागरिक धर्म की समझ न होने के कारण सामाजिकता नष्ट हो रही है। व्यक्ति धर्म के नाम पर हो रहे प्रपंचों में फंस चुका है। धार्मिक कट्टरता से उत्पन्न उन्माद में व्यक्ति ईर्ष्या, द्वेष और असहनशीलता का रोगी बन चुका है। राम की मर्यादा और कृष्ण के संदेशों को नकारते हुए व्यक्ति ने अधार्मिक भावनाओं को अपना लिया है। व्यक्ति अपने अधार्मिक कृत्य को सही ठहराने के लिए महापुरुषों का चरित्र हनन करने का दुस्साहस कर रहा है। लोकतंत्र हो या राजतंत्र सबसे बड़ा होता है नागरिक धर्म। यही असल धर्म है।
भारतीय संविधान सभी धर्म के व्यक्तियों को संरक्षण देता है। हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी, जैन और बौद्ध यह अलग -अलग व्यक्तियों का धर्म है जो पूरी दुनिया में फैला है। परन्तु, व्यक्ति जिस देश का नागरिक होता है उसे उस देश के नागरिक धर्म का पालन करना पड़ता है।
नागरिक धर्म का पालन
हमारे देश में आजादी के बाद नागरिक धर्म को संरक्षित करने के लिए ही 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान बना है। देश की प्रगति और उसकी सुरक्षा के लिए प्रत्येक नागरिकों को अपने कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है। इन कर्तव्यों को पूरा करने के लिए संविधान नागरिकों को मौलिक अधिकार देता है। संविधान द्वारा प्रदत्त कर्तव्य और अधिकार ही ‘नागरिक धर्म’ है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ही इस बात को स्पष्ट कर दिया गया है। भारतीय नागरिक द्वारा क्षेत्र, भाषा, धर्म, जाति और लिंग के नाम पर भेदभाव करना ही संविधान विरोधी कृत्य है। यह अधर्म है।
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अधर्म की परम्पराएं
द्रष्टा देख रहा है कि भारतीय जनता पार्टी और उसके निष्ठावान समर्थक इसी अधर्म के रास्ते पर दौड़ रहे हैं। पहले परमपराओं में अधर्म शामिल होता था। परन्तु, 2014 के बाद से अधर्म की परम्पराएं बनानी शुरू हुईं। भारत में 2014 से अब तक अधर्म की अनगिनत परम्पराएं बन चुकी हैं।
2014 से अब तक आप ने देखा कि बीजेपी की सत्ता ने नेताओं को अजित पवार , हेमंत विश्वशर्मा जैसे कई नेताओं को पहले भ्रष्टाचारी बताया फिर इन नेताओं को पार्टी में शामिल कर लिया। यह अद्भुत अधार्मिक परम्परा का एक नमूना भर है।
-सत्ता से सवाल करने वालों को जेल भेजने की परम्परा
-मतदातों द्वारा अलग मुद्दों पर चुने हुए विधायकों को तोड़कर बीजेपी में शामिल करने की परम्परा।
-सीबीआई, ईडी, इनकम टैक्स जैसी एजेंसियों से डराकर विधायक, सांसद, मीडिया, न्यायालय और पार्टी प्रमुखों को अपने पक्ष में करने की परम्परा।
– जजों और नौकरशाहों को मनमानी काम करने के बदले पहले या रिटायरमेंट के बाद भी सरकार में पद प्रतिष्ठा देने की परम्परा।
-मुस्लिमों को गलियां देने वाले गालीबाज नेताओं को प्रोन्नति देने की परम्परा।
-गलतबयानी करने वाले कुकर्मियों, दुष्कर्मियों को सराहते हुए पुरस्कृत करने की परम्परा।
-सोशल मीडिया पर गलत जानकारी पब्लिश करने और नफर फैलाने के लिए विशेष टीम बनाने की परम्परा।
-प्रत्येक नागरिकों को आपस में लड़ाने की परम्परा।
द्रष्टा जब तक इन अधार्मिक परमपराओं की गिनती खत्म करने को होता है तब तक रक्तबीज की तरह कई अधार्मिक परम्पराएं जन्म ले लेती है। आप सभी द्रष्टा इन अधार्मिक परम्पराओं की गिनती स्वयं करें।
सामाजिक पतन
यह सभी अनगिनत अधार्मिक परम्पराएं नेताओं का मार्गदर्शन कर रही हैं। कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी सहित कई पार्टियां और उनके समर्थक जो आज विपक्ष में खड़े होकर इन परम्पराओं का विरोध कर रहे हैं कल देश में इन्हीं विपक्षी दलों की सरकार बनने पर इन्हीं अधार्मिक परम्पराओं को आगे बढ़ाएंगे। यदि ऐसा हुआ तो लोकतंत्र में नागरिक धर्म का भविष्य ही मिट्टी में मिल जायेगा। द्रष्टा भविष्य के इस सामाजिक पतन से चिंतित है।
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भारत में सत्ता पर काबिज रहने के लिए नेता राजनीति से अधिक आत्मबल और मनोबल को तोड़ने वाले घृणित कार्यों पर विश्वास कर रहे हैं। इन नेताओं ने धर्म को भी संकट में डाल दिया है। केन्द्र की सत्ता हो या राज्य की, शासन कर रहे नेताओं ने द्वेश पैदा करने वाले भाषणों, प्रेस वार्ताओं व सोशल मीडिया के जरिये सही को गलत और गलत को सही कह कर नागरिकों में भ्रम और भय का वातावरण बना दिये हैं। इस भ्रम और भय से भरे वातावरण का शिकार अधिकतर किशोर और युवा हो रहे हैं।
परमार्थ के विचार की जगह स्वार्थ की भावना
भय और भ्रम से अज्ञानता का विस्तार हो रहा है और अब देश का भविष्य उस पथ का पथिक होने को आमादा है जिस पथ का विरोध भारतीय संस्कृति और सभ्यता पुरातन काल से करती चली आ रही है। समाज में चोरी, छिनैति, डकैती, ठगी, हत्या, बलात्कार जैसे घृणित कार्य करने वालों की आवभगत जोर-शोर से होने लगी है। उनकी आवभगत उनके जैसा ही दुष्कर्मी कर रहा है लेकिन धर्म या राजनीति का चोला पहनकर। समाज भी उन्हें बेझिझक स्वीकार कर रहा है। समाज के लोग कुछ को चुनकर नेता बना दे रहे हैं तो कुछ को धर्म रक्षक स्वामी। लोगों के मन में परमार्थ के विचार की जगह स्वार्थ की भावना अति प्रबल होने लगी है।
टीवी चैनल पत्रकारिता के मानदण्ड
इस भय और भ्रम से विस्तार कर रही अज्ञानता को रोकने की शक्ति वर्तमान में मीडिया के पास है और मीडिया ही रोकेगी, लेकिन एक सत्य यह भी है कि इस तरह की अज्ञानता को विस्तार देने में मुख्यधारा की कुछ प्रमुख मीडिया संस्थानों का भी योगदान है। टीवी चैनलों पर तार्किक बहस की जगह अक्सर नेता कुतर्क करते रहते है और चैनल अपना टीआरपी बढ़ाने में लगा रहता है। जहां नेताओं के भड़काऊ भाषा से उनके चाहते खुश होते है तो वहीं जागरुक जनता आहत होती है। नेता, एंकर अपनी मर्यादा तोड़ते है,और टीवी चैनल पत्रकारिता के मानदण्ड।
मीडिया के अस्त्र-शस्त्र
नागरिकों को उनका धर्म बताकर सामाजिक उन्नति में योगदान देना ही मीडिया है। मीडिया कोई समाज नहीं है बल्कि वह हर समाज की आवाज है। मीडिया सरकार की गलत नीतियों की आलोचना करती है तो उसे अपनी भी गलतियों पर उसी जोर-शोर के साथ आलोचना करनी चाहिए। टीआरपी और सत्ता की चटुकारिता के लिए आन लाईन सर्वे, एग्जिट पोल, पेड न्यूज, मीडिया के अस्त्र-शस्त्र बन गये है। इनके प्रयोग से पाठकों और दर्शकों में भ्रम और भय पैदा हो जाता है। इस तरह पिछले 20 सालों से प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों निजी टीवी चैनलों पर प्रसारित हुए बहसों ने पाठकों और दर्शकों के दिमाग में तर्क की जगह कुतर्क का बीजारोपण कर दिया है। कुतर्क से उत्पन्न भ्रम को दूर कर ‘द्रष्टा’ अपने पाठकों को भय मुक्त करेगा।
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