कोठेवाली सियासत के पथिक (भाग -१)

-बिहार व यूपी का चुनाव खत्म हो चुका है, और सरकार भी बन चुकी है। शक्ति और सामर्थ्य विहिन मुकेश सहनी की जरुरत बीजेपी को अब नहीं थी। और इस तरह दलों के दलदल में फंसे मुकेश सहनी को कैबिनेट से बर्खास्त कर उनके नेतृत्व को दफन करना ही बीजेपी की जरुरत थी।
–राजनीति का ज्ञान व्यक्ति के लिए सबसे जरुरी व्यवहारिक ज्ञान है। यह मानवीय तंत्र है जो, मानव के द्वारा ही नियंत्रित होता है। धन, बाहुबल, विद्या और वाक् चातुर्य को संतुलन बनाकर जो व्यक्ति अपने कौशल से राजनीति को नियंत्रित करता है। वही व्यक्ति राज करता है। और संतुलन बिगड़ते ही वही व्यक्ति अपना पद -प्रतिष्ठा खो देता है।
राजनीति और दलगत राजनीति दोनों में बड़ा अन्तर है। राजनीति का आधार न्याय है। जबकि दल का आधार विचार धारा है। एक दल के लिए जो विचार न्याय है वह ,विपक्षी दल के लिए अन्याय है। एक दल के लिए जो अधिकार है वह दूसरे दल के लिए अधिकारों का हनन है। नैतिक रुप से अपने अस्तित्व को स्थापित करना ही राजनीति है।
शक्ति और सामर्थ्य के बिना राजनीति अपना अस्तित्व खो देती है। प्रत्येक व्यक्ति, व्यक्तियों का समूह और कई समूहों का राज्य, और कई राज्यों का देश यह सब राजनीति की कोख से जन्म लेते हैं। मानव जब जन्म लेता है तो, वह केवल एक अबोध शिशु होता है, फिर युवक/ युवती और पुरुष व स्त्री के रुप में जाना जाता है। परन्तु, व्यक्ति की पहचान राजनीति देती है। व्यक्ति से बनता है व्यक्तित्व। जो मानव नैतिक व्यवहार रखते हुए अपने जीवन को दूषित नहीं करता उसी के व्यक्तित्व की समाज प्रशंसा करता है और अनुसरण करता है। समाज ऐसे ही व्यक्ति के हाथों में अपना नेतृत्व भी देता है। उपरोक्त बातें ही राजनीति की मर्यादा है।
शक्ति और सामर्थ्य का संतुलन बिगड़ने से समाज बंट जाता है और वैचारिक मतभेद होने के कारण राजनीति का भी बंटवारा हो जाता है। जाति-धर्म, भाषावाद-क्षेत्रवाद और पूंजीवाद की बातें करने वाले राजनीति से अधिक दलगत राजनीति को महत्व देते हैं। राजनीति का संकुचन व्यक्ति की संकुचित मानसिकता का स्पष्ट उदाहरण है।
राजनीति में शक्ति और सामर्थ्य का संतुलन बिगड़ा
समझौता या सौदेबाजी अपने से कम शक्ति और सामर्थ्य रखने वाले व्यक्ति, राज्य व देश से करनी चाहिए। शक्ति और सामर्थ्य जो अधिक हो उस व्यक्ति, राज्य व देश के साथ समझौता या सौदेबाजी नहीं करनी चाहिए। कमजोर व्यक्ति समझौता नहीं तोड़ता जबकि शक्तिशाली व्यक्ति अपने शक्ति और सामर्थ्य का संतुलन बिगड़ते देख कभी भी समझौते को तोड़ सकते हैं। शक्तिशाली व्यक्ति के लिए नैतिकता का कोई महत्व नहीं है। इसलिए शक्तिशाली से समझौते की बजाय लड़ना ही राजनीति है।
बिहार की राजनीति में एक मंत्री को बर्खास्त कर दिया जाना उपरोक्त बातों का ताजा उदाहरण है। बिहार की राजनीति कुछ कह रही थी और मंत्री मुकेश सहनी कुछ कर रहे थे। शक्तिशाली दल से सौदेबाजी और समझौता मंत्री मुकेश सहनी के लिए भारी पड़ गया। बीजेपी को मुकेश सहनी की मौका परस्ती ठीक नहीं लग रही थी। राजनीति में शक्ति और सामर्थ्य का संतुलन बिगड़ा और मुकेश सहनी का नेतृत्व दफन हो गया।
सूत्रों के अनुसार इसकी सिफारिश गठबंधन की सरकार में सहयोगी बीजेपी के एक ‘लिखित निवेदन’ के बाद राज्यपाल को भेजी गई है। इसमें कहा गया कि विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के संस्थापक प्रमुख सहनी अब एनडीए का हिस्सा नहीं हैं। बीजेपी की सिफारिश पर सहनी को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था। भाजपा ने ही सहनी को विधान परिषद में भेजा था, क्योंकि वह विधानसभा का चुनाव हार गए थे।
बीजेपी ने पासा पलट दिया
उल्लेखनीय है कि वीआईपी के तीन विधायक कुछ दिन पहले ही बीजेपी में शामिल हो गए थे। इसके बाद से अटकलें थीं कि मुकेश सहनी को मंत्रिमंडल से हटाया जा सकता है। लेकिन उन्होंने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था। सहनी ने अरुणाचल प्रदेश में जेडीयू और बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी के विभाजन का उदाहरण दिया था।
सहनी का बिहार विधान परिषद का कार्यकाल जुलाई में खत्म हो रहा था। बीजेपी ने ही उन्हें एक खाली सीट से निर्वाचित होने में मदद की थी लेकिन इस बार बीजेपी ने पासा पलट दिया। सहनी ने बीजेपी के इन दावों को भी खारिज कर दिया कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उन्हें इस शर्त पर एनडीए में शामिल किया गया था कि वह छह महीने के भीतर अपनी पार्टी का विलय भाजपा में कर देंगे। मुकेश सहनी ने उत्तर प्रदेश चुनाव में अपनी पार्टी के उम्मीदवार उतारे थे।
मुकेश सहनी की जरुरत बीजेपी को अब नहीं
बिहार सरकार में पशुपालन एवं मत्स्य विभाग के मंत्री और विकासशील इंसान पार्टी के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने बीजेपी के खिलाफ विधानपरिषद चुनाव में सात सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। लेकिन जेडीयू के खिलाफ नरम रुख दिखाते हुए प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की। मुकेश सहनी ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में भी 53 सीटों पर प्रत्याशियों को उतारा था, जिसके बाद से ही संकेत मिलने लगा था कि जल्द ही बीजेपी उनके खिलाफ पलटवार करेगी।
एनडीए जैसे कई दलों के दलदल में मुकेश सहनी फंस चुके थे। मुकेश सहनी का तेवर और उनकी मांग भारतीय जनता पार्टी को जरुरत से ज्यादा लगी। मुकेश सहनी के साथ वैसा ही हुआ जैसे मई 2019 में उपेन्द्र कुशवाहा के साथ हुआ था। उपेन्द्र कुशवाहा के विधायक भी उनका साथ छोड़कर जेडीयू में शामिल हो गये थे। और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का विलय जेडीयू में इसी तरह हुआ था। बिहार व यूपी का चुनाव खत्म हो चुका है, और सरकार भी बन चुकी है। शक्ति और सामर्थ्य विहिन मुकेश सहनी की जरुरत बीजेपी को अब नहीं थी। और इस तरह दलों के दलदल में फंसे मुकेश सहनी को कैबिनेट से बर्खास्त कर उनके नेतृत्व को दफन करना ही बीजेपी की जरुरत थी।
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