सुप्रीम कोर्ट में पटवारी सिस्टम खत्म करने की मांग, अंकिता भंडारी कांड से संबंधित अर्जी दाखिल

नई दिल्ली। अंकिता भंडारी कांड से संबंधित अर्जी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई है। इसमें उत्तराखंड में पटवारी सिस्टम खत्म करने की मांग की गई है। चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित ने याचिकाकर्ता से कहा कि वो मंगलवार को इस मामले को इसी कोर्ट के सामने संबंधित सारे दस्तावेजों के साथ मेंशन करे। हस्तक्षेप की अर्जी लगाते हुए देहरादून स्थित एक पत्रकार ने अपनी याचिका में कहा है कि पूरे कांड के लिए पटवारी सिस्टम जिम्मेदार है। क्योंकि इस सिस्टम के जरिए शिकायतें दर्ज होने और फिर उस पर कार्रवाई में काफी समय लग जाता है। पौड़ी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर क्षेत्र के गंगा भोगपुर में वनतारा रिजॉर्ट अंकिता रिसेप्शनिस्ट थी। और 18-19 सितंबर से वह उस रिजॉर्ट से गायब हो गई थी। उसके बाद 24 सितंबर को ऋृषिकेश के पास एक नहर में उसकी लाश मिली। अंकिता के पिता वीरेंद्र सिंह भंडारी ने 19 सितंबर को राजस्व पुलिस चौकी उदयपुर तल्ला में मुकदमा दर्ज कराया था । अंकिता की मौत के सिलसिले में अभी तक भाजपा नेता के बेटे और रिजार्ट का संचालक पुलकित आर्य, मैनेजर सौरभ भास्कर और असिस्टेंट मैनेजर अंकित गुप्ता को गिरफ्तार किया जा चुका है। राज्य के 60 फीसदी इलाके में पटवारी, लेखपाल, कानूनगो जो कि रेवेन्यू अधिकारी होते हैं। वह पुलिस का काम करते हैं।राज्य में प्रति एक लाख आबादी पर 196.87 पुलिस के पद स्वीकृत हैं। लेकिन 188.16 पुलिस ही मौजूद हैं।पूरे राज्य में केवल 159 थाने हैं। जबिक राज्य की इस समय करीब 2.31 करोड़ आबादी है।

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-जब उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इस सिस्टम को 6 महीने में खत्म करने का आदेश दिया

नई दिल्ली। अंकिता भंडारी कांड से संबंधित अर्जी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई है। इसमें उत्तराखंड में पटवारी सिस्टम खत्म करने की मांग की गई है। चीफ जस्टिस उदय उमेश ललित ने याचिकाकर्ता से कहा कि वो मंगलवार को इस मामले को इसी कोर्ट के सामने संबंधित सारे दस्तावेजों के साथ मेंशन करे। हस्तक्षेप की अर्जी लगाते हुए देहरादून स्थित एक पत्रकार ने अपनी याचिका में कहा है कि पूरे कांड के लिए पटवारी सिस्टम जिम्मेदार है। क्योंकि इस सिस्टम के जरिए शिकायतें दर्ज होने और फिर उस पर कार्रवाई में काफी समय लग जाता है। 

पौड़ी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर क्षेत्र के गंगा भोगपुर में वनतारा रिजॉर्ट अंकिता रिसेप्शनिस्ट थी। और 18-19 सितंबर से वह उस रिजॉर्ट से गायब हो गई थी। उसके बाद 24 सितंबर को ऋृषिकेश के पास एक नहर में उसकी लाश मिली। अंकिता के पिता  वीरेंद्र सिंह भंडारी ने 19 सितंबर को राजस्व पुलिस चौकी उदयपुर तल्ला में मुकदमा दर्ज कराया था । अंकिता की मौत के सिलसिले में अभी तक भाजपा नेता के बेटे और रिजार्ट का संचालक पुलकित आर्य, मैनेजर सौरभ भास्कर और असिस्टेंट मैनेजर अंकित गुप्ता को गिरफ्तार किया जा चुका है। 

राज्य के 60 फीसदी इलाके में पटवारी, लेखपाल, कानूनगो जो कि रेवेन्यू अधिकारी होते हैं। वह पुलिस का काम करते हैं।राज्य में प्रति एक लाख आबादी पर 196.87 पुलिस के पद स्वीकृत हैं। लेकिन 188.16 पुलिस ही मौजूद हैं।पूरे राज्य में केवल 159 थाने हैं। जबिक राज्य की इस समय करीब 2.31 करोड़ आबादी है।

 

उत्तराखंड पुलिस एक्ट 2007 लागू हुआ 

इस व्यवस्था के बारे में पढ़ने में आश्चचर्य जरूर होगा, लेकिन हकीकत यही है कि साल 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद,  जब अंग्रेजों ने भारत में नए सिरे कानून व्यवस्था का सिस्टम तैयार किया। तो 1861 में पुलिस एक्ट लागू किया था। जिसके एक खास प्रावधान को आजादी के बाद, जब उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश में शामिल था तो लागू कर दिया गया। उसके बाद जब उत्तराखंड के गठन के बाद उत्तराखंड पुलिस एक्ट 2007 लागू हुआ तो उस प्रावधान को भी सभी सरकारों ने जारी रखा।

हम बात इस कानून के तहत बनी रेवेन्यू पुलिस कर रहे हैं। जिसके तहत उत्तराखंड का करीब 60 फीसदी एरिया। इसी पुलिस के पास आता है। यानी राज्य के 60 फीसदी इलाके में अपराध होने पर, दूसरे राज्यों की तरह पुलिस न तो FIR दर्ज करती है और न ही शुरूआती जांच करती है। और अंकिता के पिता के साथ भी यही हुआ। क्योकि उनका भी घर इसी 60 फीसदी इलाके में आता है।

 

राज्य के 60 फीसदी इलाके में पटवारी, लेखपाल, कानूनगो जो कि रेवेन्यू अधिकारी होते हैं। वह पुलिस का काम करते हैं। उनके पास FIR लिखने, शुरूआती जांच करने और उसके आधार पर आरोपी के गिरफ्तारी का भी अधिकार होते हैं। इस प्रक्रिया के बाद ही मामले को पुलिस के उच्च अधिकारियों के पास भेजा जाता है। अंकिता के माता-पिता ने इसी व्यवस्था के तहत 19 सितंबर को राजस्व पुलिस चौकी उदयपुर तल्ला में मुकदमा दर्ज कराया था । 

कानून के तहत कुमाऊ और गढ़वाल डिविजन की हिल पट्टी,  टेहरी और उत्तर काशी जिले की हिल पट्टी और देहरादून जिले की जौनसार-भाबर क्षेत्र हैं। जहां पर पुलिस का काम रेवेन्यू ऑफिसर करते हैं। साल 2018 में उत्तराखंड हाई कोर्ट भी रेवेन्यू अधिकारी द्वारा पुलिस का काम करने वाली व्यवस्था को खत्म करने के निर्देश दे चुका हैं। लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है।

 

पुराने सिस्टम से न्याय दिलाना मुश्किल

यह व्यवस्था क्यों शुरू हुई इस पर मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, पब्लिक पॉलिसी एक्सपर्ट और उत्तराखंड पर खास तौर से अध्ययन करने वाले अजीत सिंह ने बताया कि अंग्रेजों ने यह व्यवस्था अपनी सुविधा को देखते हुए बनाई थी दूसरी बात यह थी पहाड़ी क्षेत्रों में एक दौर ऐसा था कि अपराध नहीं के बराबर होते थे। लेकिन वह दौर अब नहीं रह गया है। ऐसे में पुराने सिस्टम से न्याय दिलाना मुश्किल होता जा रहा है। पिछले 3 साल के ब्यौरों को देखा जाय, तो एक रिपोर्ट के अनुसार 16 आपराधिक मामले में रेवेन्यू अधिकारी द्वारा ट्रांसफर किए गए। लेकिन उसमें 11 मामलों में आरोपी में सबूतो के अभाव में बरी हो गए। 

 

इस सिस्टम को खत्म करने की जरूरत

साफ है कि अपराध की जांच में प्रोफेशनल रवैया नहीं अपनाया गया। अब कोई लेखपाल, कानूनगो किसी अपराध की जांच करेगा, समझा जा सकता है कि वह इसके लिए कितना योग्य है। इसके अलावा भ्रष्टाचार और मिलीभगत के कारण भी मामलों की लीपापोती की जाती है। और इसका आसान तरीका है कि जांच को लटका कर रखा जाय। ऐसे में इस सिस्टम को खत्म करने की जरूरत है। साफ है कि 60 फीसदी इलाके में न थाना और न चौकी है।

 

साल 2018 में उत्तराखंड हाई कोर्ट भी रेवेन्यू अधिकारी द्वारा पुलिस का काम करने वाली व्यवस्था को खत्म करने के निर्देश दे चुका हैं। लेकिन अभी तक ऐसा नहीं हो पाया है। उत्तराखंड राज्य को तीन क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जा सकता है, जिसमें तीन अलग-अलग अधिनियम लागू होते हैं, जो राजस्व अधिकारियों को गिरफ्तार करने और जांच करने आदि की पुलिस की शक्तियां देते हैं। 

वर्गीकृत तीन क्षेत्र हैं-

(ए) कुमाऊं और गढ़वाल डिवीजन की पहाड़ी पट्टी जो कभी ब्रिटिश भारत का हिस्सा थे.

(बी) टिहरी और उत्तरकाशी जिले की पहाड़ी पट्टी.

(सी) देहरादून जिले का जौनसार-बावर क्षेत्र

 राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट, 2021 में उत्तराखंड में महिलाओं के खिलाफ अपराध और अन्य अपराधों में भारी वृद्धि हुई है। 2019 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले 2541 थे, जो 2020 में बढ़कर 2846 और 2021 में बढ़कर 3431 हो गए। साथ ही, 2019 में हत्या के मामलों की संख्या 199 थी, जो वर्ष 2020 में 160 हो गई और आगे 2021 में बढ़कर 208 हो गई। इसलिए अपराध की संख्या से यह स्पष्ट है कि उत्तराखंड राज्य में गंभीर अपराध में वृद्धि हुई है। 

जब उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इस सिस्टम को 6 महीने में खत्म करने का आदेश दिया

पटवारी, कानूनगो, नायब तहसीलदार और तहसीलदार जैसे राजस्व अधिकारियों को बलात्कार, हत्या, डकैती आदि सहित गंभीर अपराधों की जांच के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है। उनका प्राथमिक कर्तव्य राजस्व मामलों में कर्तव्यों का निर्वहन करना है। वे पहले से ही राज्य के राजस्व शुल्क और करों के संग्रह के बोझ तले दबे हैं। उन्हें अपराध स्थल, जांच, फोरेंसिक, पूछताछ, पहचान, यौन और गंभीर अपराधों को संभालने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है। यह केवल नियमित पुलिस वाले प्रशिक्षित पुलिस अधिकारियों द्वारा ही किया जा सकता है, जिन्हें समय-समय पर कानूनी, वैज्ञानिक और जांच प्रशिक्षण दिया जाता है। 

 

नैनीताल में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने इस सिस्टम को 6 महीने में खत्म करने का आदेश दिया था। उत्तराखंड सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका 2019 में दाखिल की थी। लेकिन अब तक वो सुनवाई के लिए सूचीबद्ध ही नहीं की गई है। उसी याचिका के साथ इस नई अर्जी को जोड़ने की मांग करते हुए कहा गया है कि अंकिता के पिता अपनी शिकायत दर्ज कराने पुलिस के पास गए थे, लेकिन उनको पटवारी के पास शिकायत की तस्दीक यानी संस्तुति के लिए भेज दिया गया। इसके बाद सरकारी महकमों के बीच का खेल शुरू हुआ। 

 

अंकिता के परिजन शिकायत दर्ज कराने को लेकर पुलिस और पटवारी के बीच दौड़ते रहे। जब शिकायत ही दर्ज नहीं हुई तो जांच कैसे शुरू होती। याचिका में कहा गया है कि उत्तराखंड राज्य में सदियों पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था प्रचलित है। कानूनगो, लेखपाल और पटवारी जैसे राजस्व अधिकारियों को अपराध दर्ज करने और जांच करने के लिए पुलिस अधिकारी की शक्ति और कार्य दिया गया है। 

 

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