-SBI को 31 मार्च तक चुनावी बॉन्ड का डेटा साझा करने का निर्देश। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बीजेपी के लिए ये बहुत ही बड़ा झटका है।
नई दिल्ली। पापा की कमाई का आधार चुनावी बांड योजना को आज सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया है। चुनावी बांड योजना को राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के लिए राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में 2018 में लाया गया था। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बीजेपी के लिए ये बहुत ही बड़ा झटका है। कोर्ट ने कहा, “काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है. चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 15 फरवरी को इस मामले में अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया। राजनीतिक दलों के द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है।” प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले साल दो नवंबर को मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
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उक्त फैसले में कहा गया कि गुमनाम इलेक्टोरल बॉन्ड संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। तदनुसार, इस योजना को असंवैधानिक करार दिया गया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की एक संविधान पीठ ने नवंबर में फैसला सुरक्षित रखने से पहले, तीन दिनों की अवधि में विवादास्पद इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को चुनौती देने वाले मामलों की सुनवाई की।
अदालत सर्वसम्मत से निर्णय पर पहुंची। इसमें सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने मुख्य फैसला सुनाया, जस्टिस खन्ना ने थोड़े अलग तर्क के साथ सहमति व्यक्त की। दोनों निर्णयों ने दो प्रमुख सवालों के जवाब दिए। पहला, क्या इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के अनुसार राजनीतिक दलों को स्वैच्छिक योगदान पर जानकारी का गैर-प्रकटीकरण और लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 29 सी, धारा 183 (3) में संशोधन, कंपनी अधिनियम, आयकर अधिनियम की धारा 13ए(बी) संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है, दूसरा, क्या धारा में संशोधन द्वारा राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग की परिकल्पना की गई है, यह कंपनी अधिनियम की धारा 182(1) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है।
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सीजेआई चंद्रचूड़ ने खुले शासन के महत्व पर जोर देते हुए शुरुआत में ही कहा, “मतदान के विकल्प के प्रभावी अभ्यास के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानकारी आवश्यक है।” जस्टिस गवई, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस मिश्रा की ओर से राय लिखते हुए सीजेआई ने महत्वपूर्ण रूप से माना कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम ने संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) का उल्लंघन किया है। उन्होंने कहा, “प्राथमिक स्तर पर, राजनीतिक योगदान योगदानकर्ताओं को मेज पर सीट देता है, यानी, यह विधायकों तक पहुंच बढ़ाता है।
यह पहुंच नीति निर्माण पर प्रभाव में भी तब्दील हो जाती है। वैध संभावना यह भी है कि किसी राजनीतिक दल को पैसे और राजनीति के बीच घनिष्ठ संबंध के कारण बदले की व्यवस्था में वित्तीय योगदान के लिए नेतृत्व मिलेगा। इलेक्टरोल बांड स्कीम और विवादित प्रावधान इस हद तक कि वे इलेक्टरोल बांड के माध्यम से योगदान को अज्ञात करके मतदाता की जानकारी के अधिकार का उल्लंघन करते हैं, जो अनुच्छेद 19(1))(ए) का उल्लंघन है।”
कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड तुरंत रोकने के आदेश दिये हैं। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी कर कहा, “स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) चुनावी बांड के माध्यम से अब तक किए गए योगदान के सभी विवरण 06 मार्च तक चुनाव आयोग को दे।” साथ ही कोर्ट ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि वह 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर जानकारी साझा करे।
याचिकाएं निम्नलिखित मुद्दे उठाती हैं
A- क्या संशोधन अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत सूचना के अधिकार का उल्लंघन है?
B- क्या असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है?
मुद्दे 1 पर अदालतों ने माना है कि नागरिकों को सरकार को जिम्मेदार ठहराने का अधिकार है। सूचना के अधिकार के विस्तार का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह केवल राज्य के मामलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सहभागी लोकतंत्र के लिए आवश्यक जानकारी भी शामिल है। राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में प्रासंगिक इकाइयां हैं। चुनावों के लिए राजनीतिक दलों की फंडिंग की जानकारी जरूरी है।
किसने उठाए थे चुनावी बॉन्ड योजना पर सवाल
संविधान पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल रहा। पीठ ने पिछले साल 31 अक्टूबर को कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर याचिकाओं सहित चार याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की थी।
सुप्रीम कोर्ट की प्रमुख टिप्पणियां
चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द करना होगा। चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लंघन है।
फैसला सुनाते हुए सीजेआई ने कहा, “काले धन को रोकने के लिए इलेक्ट्रोल बॉन्ड के अलावा भी दूसरे तरीके हैं। हमारी राय है कि कम से कम प्रतिबंधात्मक साधनों से परीक्षण संतुष्ट नहीं होता। उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए चुनावी बॉन्ड के अलावा अन्य साधन भी हैं।
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सभी राजनीतिक योगदान सार्वजनिक नीति को बदलने के इरादे से नहीं किए जाते हैं। छात्र, दिहाड़ी मजदूर आदि भी योगदान देते हैं। केवल इसलिए कि कुछ योगदान अन्य उद्देश्यों के लिए किए गए हैं, राजनीतिक योगदानों को गोपनीयता की छतरी न देना अस्वीकार्य नहीं है।
किसी कंपनी का राजनीतिक प्रक्रिया पर व्यक्तियों के योगदान की तुलना में अधिक गंभीर प्रभाव होता है। कंपनियों द्वारा योगदान पूरी तरह से व्यावसायिक लेनदेन है। धारा 182 कंपनी अधिनियम में संशोधन स्पष्ट रूप से कंपनियों और व्यक्तियों के साथ एक जैसा व्यवहार करने के लिए मनमाना है।
संशोधन से पहले घाटे में चल रही कंपनियां योगदान नहीं दे पाती थीं। संशोधन घाटे में चल रही कंपनियों को बदले में योगदान करने की अनुमति देने के नुकसान को नहीं पहचानता है। धारा 182 कंपनी अधिनियम में संशोधन घाटे में चलने वाली और लाभ कमाने वाली कंपनियों के बीच अंतर न करने के लिए स्पष्ट रूप से मनमाना है।
केस टाइटल- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य। | 2017 की रिट याचिका (सिविल) संख्या 880
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