-उपराज्यपाल को दिल्ली विधानसभा को बुलाने, स्थगित करने और भंग करने का भी अधिकार रहेगा
नई दिल्ली, एजेंसी। दिल्ली का बॉस कौन रहेगा ? इसे लेकर बीजेपी और आप में कलह जारी है। बीजेपी की केंद्र में सत्ता है और संसद के दोनों सदनों में समर्थन। केंद्र सरकार ने अपनी ताक़त दिखा दी है। 3 अगस्त को दिल्ली सर्विस बिल को लोकसभा में मंजूरी मिली थी। 7 अगस्त को राज्यसभा से भी मंजूरी के बाद अब उसके कानून बनने का रास्ता साफ हो गया है। महज राष्ट्रपति का दस्तखत बाकी है। अब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन संशोधन विधेयक, 2023 राष्ट्रपति के पास भेजा जाएगा, जहां से मंजूरी मिलने के बाद ये कानून की शक्ल ले लेगा। कानून बनने के बाद दिल्ली में ट्रांसफर और पोस्टिंग समेत कई मामले उपराज्यपाल के पास चले जाएंगे।
दिल्ली सर्विसेज बिल के संसद के दोनों सदनों से पास होने के बाद अब केंद्र सरकार को दिल्ली सरकार के अफसरों और कर्मचारियों से जुड़े नियमों को बनाने की शक्ति मिल जाएगी। इन अफसरों और कर्मचारियों की नियुक्ति और ट्रांसफर का अधिकार केंद्र के हाथ में होगा।
उपराज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा
NCCSA की सिफारिशें बहुमत पर आधारित होंगी और एलजी के पास या तो सिफारिशों को मंजूरी देने, पुनर्विचार करने के लिए कहने की ताकत रहेगी या किसी भी मामले पर मतभेद की स्थिति में एलजी का निर्णय अंतिम होगा। सचिव संबंधित मंत्री से परामर्श करने के लिए बाध्य नहीं होंगे और मामले को सीधे उपराज्यपाल के संज्ञान में ला सकते हैं। यह भारत के राष्ट्रपति को संघ सूची से संबंधित संसद के किसी भी कानून के लिए अधिकारियों, बोर्डों, आयोगों, वैधानिक निकायों या पदाधिकारियों को नियुक्त करने का अधिकार देता है।
नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी (NCCSA) में मुख्यमंत्री, दिल्ली के मुख्य सचिव, दिल्ली के प्रधान गृह सचिव शामिल होंगे। ये अथॉरिटी उपराज्यपाल को अधिकारियों के ट्रांसफर- पोस्टिंग की सिफारिश करेगा। इसके अलावा दोषी अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक मामलों पर भी उपराज्यपाल को ही सिफारिश की जाएगी।
ये बिल उपराज्यपाल को NCCSA की तरफ से की गई सिफारिशों समेत प्रमुख मामलों पर अपने ‘एकमात्र विवेक’ का प्रयोग करने की ताकत देता है। उपराज्यपाल को दिल्ली विधानसभा को बुलाने, स्थगित करने और भंग करने का भी अधिकार रहेगा। NCCSA की सिफारिशें बहुमत पर आधारित होंगी और LG के पास या तो सिफारिशों को मंजूरी देने, पुनर्विचार करने के लिए कहने की ताकत रहेगी या किसी भी मामले पर मतभेद की स्थिति में एलजी का निर्णय अंतिम होगा।
बहरहाल, इस मामले पर अब भी तलवार लटकी है क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली में शासन पर संसद की शक्तियों का अध्ययन करने के लिए पिछले महीने एक संविधान पीठ गठित की थी जिसने अभी तक अपना फैसला नहीं दिया है।
जानकारों की मानें, तो इस बिल के कानून बन जाने के बाद से अब दिल्ली में उपराज्यपाल ‘सुप्रीम’ हो गए हैं, जिसके बाद से अधिकारी या नौकरशाह एलजी की बात को ज़्यादा तवज्जो देंगे। दिल्ली के पूर्व मुख्य सचिव ओमेश सहगल बताते हैं कि जो शक्तियां मुख्यमंत्री के पास थीं, वो अब नहीं रहेंगी।