न्यायाधीश बीआर गवई बने भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिलाई शपथ

शिष्टाचार के दायरे से बाहर जज के किसी राजनेता या नौकरशाह की प्रशंसा करने से पूरी न्यायपालिका में लोगों का भरोसा प्रभावित हो सकता है।-न्यायाधीश बीआर गवई

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DrashtaNews

नई दिल्ली। न्यायाधीश भूषण रामकृष्ण गवई ने आज भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू न्यायाधीश गवई को मुख्य न्यायाधीश (CJI)पद की शपथ दिलाई। मौजूदा मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना का कार्यकाल 13 मई को खत्म हो चुका है। CJI खन्ना के बाद वरिष्ठता सूची में जस्टिस गवई का नाम था। इसलिए जस्टिस खन्ना ने उनका नाम आगे बढ़ाया। हालांकि, उनका कार्यकाल सिर्फ 6 महीने का है। CJI गवई देश के दूसरे दलित और पहले बौद्ध चीफ जस्टिस हैं।

इस अवसर पर सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस एजी मसीह, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस बेला त्रिवेदी आदि भी मौजूद थे। 52वें सीजेआई के रूप में उत्तराधिकार प्राप्त करने वाले जस्टिस गवई अनुसूचित जाति समुदाय से संबंधित दूसरे सीजेआई हैं, इससे पहले जस्टिस केजी बालकृष्णन 2010 में सीजेआई के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। वह देश के सीजेआई बनने वाले पहले बौद्ध जज भी हैं। उन्हें 24 मई, 2019 को बॉम्बे हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर दिए प्रोफाइल के मुताबिक, जस्टिस गवई 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में प्रमोट हुए थे। उनके रिटायरमेंट की तारीख 23 नवंबर 2025 है। राष्ट्रपति भवन में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ​​​​​​, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह समेत कई केंद्रीय मंत्री भी मौजूद रहे।

मेहनत और सेवा का मिला फल

CJI गवई की मां कमलताई ने कहा, ‘मैंने हमेशा चाहा था कि मेरे बच्चे अपने पिता के रास्ते पर चलें और समाज की सेवा करें। भूषण ने बचपन से ही कठिन परिस्थितियों का सामना किया और मेहनत से आज इस ऊंचे पद तक पहुंचे हैं।’ उन्होंने बताया कि CJI ने एक साधारण स्कूल में पढ़ाई की और हमेशा जरूरतमंदों की मदद करते रहे हैं, चाहे वह आर्थिक सहायता हो या इलाज का खर्च।

जस्टिस गवई ने 1985 में कानूनी करियर शुरू किया

जस्टिस गवई का 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में जन्म हुआ था। उन्होंने 1985 में कानूनी करियर शुरू किया। 1987 में बॉम्बे हाईकोर्ट में स्वतंत्र प्रैक्टिस शुरू की। इससे पहले उन्होंने पूर्व एडवोकेट जनरल और हाईकोर्ट जज स्वर्गीय राजा एस भोंसले के साथ काम किया।

1987 से 1990 तक बॉम्बे हाईकोर्ट में वकालत की। अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में सहायक सरकारी वकील और एडिशनल पब्लिक प्रॉसीक्यूटर के रूप में नियुक्त हुए। 14 नवंबर 2003 को बॉम्बे हाईकोर्ट के एडिशनल जज के रूप में प्रमोट हुए। 12 नवंबर 2005 को बॉम्बे हाईकोर्ट के परमानेंट जज बने।

दूसरे दलित CJI होंगे जस्टिस गवई, डिमॉनेटाइजेशन को सही बताया था। जस्टिस गवई देश के दूसरे दलित CJI होंगे। उनसे पहले जस्टिस केजी बालाकृष्णन भारत के मुख्य न्यायाधीश बने थे। जस्टिस बालाकृष्णन साल 2007 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बने थे।

सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में जस्टिस गवई कई ऐतिहासिक फैसलों में शामिल रहे हैं। उनमें मोदी सरकार के 2016 के डिमॉनेटाइजेशन के फैसले को बरकरार रखना और चुनावी बॉण्ड योजना को असंवैधानिक घोषित करना शामिल है। जस्टिस गवई के बाद जस्टिस सूर्यकांत वरिष्ठता सूची में आते हैं। संभावना है कि उन्हें 53वां चीफ जस्टिस बनाया जाएगा।

लोगों का भरोसा हटा तो भीड़ का न्याय अपनाने लगेंगे लोग

जस्टिस गवई 19 अक्टूबर 2024 को गुजरात के अहमदाबाद में न्यायिक अधिकारियों के वार्षिक सम्मेलन में शामिल हुए थे। तब उन्होंने कहा था कि पद पर रहते हुए और शिष्टाचार के दायरे से बाहर जज के किसी राजनेता या नौकरशाह की प्रशंसा करने से पूरी न्यायपालिका में लोगों का भरोसा प्रभावित हो सकता है।

चुनाव लड़ने के लिए किसी जज का इस्तीफा देना निष्पक्षता को लेकर लोगों की धारणा को प्रभावित कर सकता है। ज्यूडिशियल एथिक्स और ईमानदारी ऐसे बुनियादी स्तंभ हैं जो कानूनी व्यवस्था की विश्वसनीयता को बनाए रखते हैं। न्यायपालिका में जनता के विश्वास को बरकरार रखना जरूरी है। अगर विश्वास कम हुआ तो वे ज्यूडिशियल सिस्टम के बाहर न्याय तलाश करेंगे। न्याय के लिए लोग भ्रष्टाचार, भीड़ के न्याय जैसे तरीके अपना सकते हैं। इससे समाज में कानून और व्यवस्था का नुकसान हो सकता है।

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