OBC आरक्षण के अनुसार कराए जाएं निकायों के चुनाव – सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई मंगलवार को महाराष्ट्र राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव कराने के लिए अंतरिम आदेश पारित किया, जो अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण के कार्यान्वयन से संबंधित मुकदमे के कारण 2022 से रुके हुए हैं। कोर्ट ने निर्देश दिया कि स्थानीय निकायों के चुनाव OBC आरक्षण के अनुसार कराए जाएं, जो जुलाई, 2022 में बंठिया आयोग की रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पहले मौजूद थे।

D.Suprim Court
DrashtaNews

– देश में जाति आधारित आरक्षण रेलगाड़ी के डिब्बे की तरह हो गया है जो लोग इस डिब्बे में चढ़ते हैं, वे दूसरों को अंदर नहीं आने देना चाहते।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई मंगलवार को महाराष्ट्र राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव कराने के लिए अंतरिम आदेश पारित किया, जो अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए आरक्षण के कार्यान्वयन से संबंधित मुकदमे के कारण 2022 से रुके हुए हैं। कोर्ट ने निर्देश दिया कि स्थानीय निकायों के चुनाव OBC आरक्षण के अनुसार कराए जाएं, जो जुलाई, 2022 में बंठिया आयोग की रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पहले मौजूद थे।
कोर्ट ने कहा, “OBC समुदायों को आरक्षण कानून के अनुसार प्रदान किया जाएगा जैसा कि जेके बंठिया आयोग की 2022 की रिपोर्ट से पहले महाराष्ट्र राज्य में मौजूद था।” मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने कड़ी टिप्पणियां की। उन्होंने कहा कि देश में जाति आधारित आरक्षण रेलगाड़ी के डिब्बे की तरह हो गया है जो लोग इस डिब्बे में चढ़ते हैं, वे दूसरों को अंदर नहीं आने देना चाहते।

जज ने की ये टिप्पणी
सुनवाई के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि इस देश में आरक्षण का धंधा रेलवे की तरह हो गया है। जो लोग बोगी में घुस गए हैं वे नहीं चाहते कि कोई और इसमें एंट्री करें। यही पूरा खेल है। बता दें कि महाराष्ट्र में आखिरी बार 2016-17 में निकाय चुनाव हुए थे। चुनाव टलने का मुख्य कारण ओबीसी उम्मीदवारों के लिए कोटा को लेकर कानूनी लड़ाई में पदों की नियुक्ति में देरी है। सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत कोटा लागू करने के महाराष्ट्र सरकार के अध्यादेश को रद्द कर दिया था।

याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने दी ये दलीलें-
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट को बताया कि परिसीमन के दौरान ओबीसी की पहचान के बावजूद महाराष्ट्र स्थानीय निकाय चुनाव के लिए डेटा का उपयोग नहीं हो रहा है। उन्होंने स्थानीय निकाय चुनावों के लिए जल्द चुनाव कराने की आवश्यकता पर जोर दिया और आरोप लगाया कि राज्य सरकार चुनिंदा अधिकारियों के माध्यम से स्थानीय निकायों को एकतरफा चला रही है।

आदेश में खंडपीठ ने कहा-

“हमारे विचार से स्थानीय निकायों के लिए समय-समय पर चुनावों के माध्यम से जमीनी स्तर पर लोकतंत्र के संवैधानिक जनादेश का सम्मान किया जाना चाहिए और सुनिश्चित किया जाना चाहिए। चूंकि निर्वाचित निकायों का एक निर्धारित कार्यकाल होता है, इसलिए उन लोगों को कोई अपरिवर्तनीय नुकसान नहीं होगा जो कुछ OBC समुदायों को शामिल करने या बाहर करने के लिए मौजूदा कानूनों में उचित संशोधन चाहते हैं। उन सभी मुद्दों पर समय रहते विचार किया जा सकता है, लेकिन इस बीच हमें कोई कारण नहीं दिखता कि महाराष्ट्र राज्य में स्थानीय निकायों के चुनाव क्यों नहीं कराए जाएं।”

कोर्ट ने तय किए तीन स्तरीय परीक्षण
बता दें कि कोर्ट ने ओबीसी आरक्षण के लिए तीन स्तरीय परीक्षण निर्धारित किए हैं। इसमें पहला राज्य के स्थानीय निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति की जांच के लिए आयोग का गठन करना होगा। दूसरा आयोग की सिफारिशों के बाद स्थानीय निकाय में प्रावधान किए गए आरक्षण को अनुपात में बांटना। तीसरा एससी/एसटी और ओबीसी के लिए कुल आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होगा।

जस्टिस कांत ने एसजी से पूछा, “एक बात हम समझ नहीं पा रहे हैं। आपने जो भी कानून बनाया है, गलत या अच्छा- यह हम तय करेंगे। आपने पहले ही OBC के कुछ वर्गों की पहचान कर ली है। याचिकाकर्ताओं की दलीलों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना उस कानून के अनुसार चुनाव क्यों नहीं हो सकते?”

एसजी ने भी सहमति जताई कि चुनाव नहीं रोके जा सकते।

जस्टिस कांत ने कहा,“क्या कोई तर्क है? आज नौकरशाह सभी नगर निगमों और पंचायतों पर कब्जा कर रहे हैं और प्रमुख नीतिगत निर्णय ले रहे हैं। इस मुकदमेबाजी के कारण एक पूरी लोकतांत्रिक प्रक्रिया ठप हो गई है। अधिकारियों की कोई जवाबदेही नहीं है। वर्तमान आंकड़ों के अनुसार चुनाव क्यों नहीं होने दिए जा रहे?”

याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कहा कि बंठिया आयोग की रिपोर्ट के अनुसार चुनाव नहीं होने चाहिए, क्योंकि OBC के लिए निर्धारित 34,000 सीटें अनारक्षित थीं। एसजी ने कहा कि जयसिंह द्वारा प्रस्तावित चुनाव कराने में राज्य को कोई परेशानी नहीं है। सुबह की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मौखिक रूप से चुनाव कराने की आवश्यकता जताई।

जस्टिस कांत ने कहा, “मान लीजिए कि जिसे भी OBC घोषित किया गया, उसके आधार पर चुनाव कराए जाने चाहिए, जो कार्यवाही के परिणाम पर निर्भर करेगा। आखिरकार, यह एक कार्यकाल के लिए चुनाव है। मान लें कि किसी को गलत तरीके से शामिल या बाहर रखा गया तो समावेशन कोई मुद्दा नहीं हो सकता। बहिष्कार से नाराज़गी हो सकती है। मान लें कि कोई गलत बहिष्कार है तो इससे क्या फर्क पड़ेगा? उनके पास एक अवसर [अगले चुनाव] होगा। यह पूरे जीवन के लिए एक स्थायी चुनाव नहीं है।”

सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने कहा कि याचिकाकर्ता भी केवल यही राहत मांग रहे हैं और जोर देकर कहा कि प्रतिनिधि निकायों को प्रतिनिधियों के बिना नहीं छोड़ा जा सकता है।

जयसिंह ने आग्रह किया,”चुनावों को बहुत लंबे समय से रोक दिया गया। वे ग्राम पंचायतों से लेकर जिला परिषदों तक सभी प्रतिनिधि निकायों को केवल अपने चुने हुए नौकरशाहों के माध्यम से चला रहे हैं और प्रमुख नीतिगत निर्णय ले रहे हैं। इसलिए कृपया चुनाव होने दें।” इसके बाद जस्टिस कांत ने कहा कि न्यायालय वर्तमान में पंचायतों को चलाने वाले नौकरशाहों द्वारा उत्पन्न मुद्दों से संबंधित मामलों पर विचार कर रहा है। उन्होंने कहा,”अब क्योंकि निर्वाचित निकाय नहीं हैं, इसलिए नौकरशाहों ने पदों पर कब्जा कर लिया और वे मामलों को चला रहे हैं। उनमें से एक ने, जैसा कि प्रतीत होता है, प्रमुख संपत्तियों को पट्टे पर देना और नीलाम करना शुरू कर दिया है…”

इसके बाद जयसिंह ने बताया कि चुनाव आयोग द्वारा किए गए परिसीमन को महाराष्ट्र राज्य ने अध्यादेश के तहत समाप्त कर दिया। 2025 में दायर नई रिट याचिका के लिए पेश हुए सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि राजनीतिक पिछड़ेपन के किसी अध्ययन के बिना ही OBC सूची में शामिल व्यक्तियों पर आरक्षण स्वतः ही लागू हो गया है।

उन्होंने कहा,”राजनीतिक पिछड़ेपन से संबंधित रिपोर्ट में संविधान खंडपीठ द्वारा कृष्णमूर्ति निर्णय में निर्धारित सिद्धांतों को लागू करना होगा।”
उन्होंने तर्क दिया कि राज्य सरकार द्वारा गठित बंठिया आयोग ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित ‘ट्रिपल टेस्ट’ को पूरा किए बिना OBC की मौजूदा सूची को अपनाया है। शंकरनारायण ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 15(4) और 16(4) के तहत आरक्षण के उद्देश्य से OBC सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन पर आधारित हैं, न कि राजनीतिक आरक्षण के लिए उन्होंने कहा कि राजनीतिक रूप से पिछड़े वर्गों (पीबीसी) का पता लगाने के लिए अलग मानदंड लागू होने चाहिए।

शंकरनारायण ने यह भी सहमति व्यक्त की कि चुनाव नहीं रोके जाने चाहिए और एकमात्र मुद्दा आरक्षण की उचित पहचान के संबंध में है।
राज्य का पक्ष सुनने के लिए सुनवाई दोपहर 12.55 बजे तक के लिए टाल दी गई थी। बाद में दोपहर 1 बजे सॉलिसिटर जनरल की सुनवाई के बाद खंडपीठ ने आदेश पारित किया।

केस टाइटल: राहुल रमेश वाघ बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 19756/2021 (और संबंधित मामले)

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