-रासायनिक पदार्थों और खनिजों का भी होगा अध्ययन
बेंगलुरु। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के चंद्रयान-3 मिशन का लैंडर मॉड्यूल सफलता पूर्वक चंद्रमा की सतह पर उतर गया है। लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान से युक्त लैंडर मॉड्यूल ने शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग की है। चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग से भारत ने दुनिया में इतिहास रच दिया है।
इसरो के दृढ़ संकल्प और वैज्ञानिकों के अथक प्रयासों का सुपरिणाम है कि 41 दिन लंबी यात्रा व दिल की धड़कन बढ़ा देने वाली लैंडिंग प्रक्रिया के बाद अंतत चंद्रयान-3 मिशन से भारत चांद पर पहुंचने में सफल रहा। इस सफलता के साथ भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला दुनिया का पहला देश बन गया। इसके साथ ही भारत अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ के बाद चंद्रमा की सतह पर ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ करने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया। चंद्रमा की सतह पर अमेरिका, पूर्व सोवियत संघ और चीन ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कर चुके हैं, हालांकि इनमें से कोई भी देश ऐसा नहीं है जिसकी ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में हुई है। चंद्रयान-3 के लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग में 15 से 17 मिनट लगे। चंद्रयान 3 को 14 जुलाई 2023 को दोपहर 2.30 बजे लॉन्च किया गया था।
चंद्रयान – 3 चांद की सतह की तरफ झुकाते हुए धीरे -धीरे बढ़ रहा था, तो मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों की दृष्टि कंप्यूटर मॉनिटर जमी पड़ी थी। जैसे ही चंद्रयान – 3 के लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग हुई वैज्ञानिक उछल पड़े। तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उंगलियों की विक्ट्री साइन के साथ ख़ुशी का इज़हार कर रहे थे। चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम ने चंद्रमा की सतह की तस्वीरें साझा की हैं।
ऐसे हुई सॉफ्ट लैंडिंग
लैंडिंग प्रक्रिया के अंतिम 20 मिनट को इसरो ने भयभीत करने वाला समय बताया। शाम 5.44 बजे लैंडर के उतरने की प्रक्रिया आरंभ हुई। इसरो अधिकारियों के अनुसार चांद की सतह से 6.8 किलोमीटर की दूरी पर पहुंचने पर लैंडर के केवल दो इंजन का प्रयोग हुआ और बाकी दो इंजन बंद कर दिए गए।
इसका उद्देश्य सतह के और करीब आने के दौरान लैंडर को ‘रिवर्स थ्रस्ट’ (सामान्य दिशा की विपरीत दिशा में धक्का देना, ताकि लैंडिंग के बाद गति कम की जा सके) देना था। चांद की सतह के करीब पहुंचने के क्रम में लैंडर ने अपने सेंसर और कैमरों का इस्तेमाल कर चांद की सतह की जांच कर सुनिश्चित किया कि कहीं कोई बाधा तो नहीं है।
चंद्र दिवस पर अध्ययन करेंगे लैंडर और रोवर
अधिकारियों के अनुसार सॉफ्ट लैंडिंग के बाद रोवर (प्रज्ञान) अपने एक साइड पैनल का उपयोग करके लैंडर के अंदर से चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। इसरो के अनुसार चंद्रमा की सतह और आसपास के वातावरण का अध्ययन करने के लिए लैंडर और रोवर के पास एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के लगभग 14 दिन के बराबर) का समय होगा।
हालांकि, वैज्ञानिकों ने दोनों के एक और चंद्र दिवस तक सक्रिय रहने की संभावनाओं से इन्कार नहीं किया है। चार पहियों वाले लैंडर और छह पहियों वाले रोवर का कुल वजन 1,752 किलोग्राम है। लैंडिंग को सुरक्षित बनाने के लिए लैंडर में कई सेंसर लगाए गए। इनमें एक्सीलरोमीटर, अल्टीमीटर, डाप्लर वेलोसीमीटर, इनक्लिनोमीटर, टचडाउन सेंसर और कैमरे शामिल हैं।
अहम है दक्षिण ध्रुवीय क्षेत्र
चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्र पर्यावरण और उनसे होने वाली कठिनाइयों के कारण बहुत अलग भूभाग हैं और इसलिए अभी अज्ञात बने हुए हैं। विज्ञानियों का मानना है कि इस क्षेत्र के हमेशा अंधेरे में रहने वाले स्थानों पर पानी की प्रचुर मात्रा हो सकती है। इसी कारण चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना बहुत अहम माना जाता है। यहां जमी बर्फ से भविष्य के अभियानों के लिए आक्सीजन, ईंधन और पेयजल मिलने की संभावना भी है।
देश ने देखा ऐतिहासिक क्षण
लोग अपने विज्ञानियों की प्रतिभा पर गौरवान्वित हो रहे हैं। इसरो की वेबसाइट, यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज के साथ दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर इस ऐतिहासिक घटना का प्रसारण हुआ। जिसे देश के कोने-कोने में स्कूलों, कालेजों में भी दिखाया गया। कई स्थानों पर पूजा-हवन हुए, चंद्रयान-3 मिशन की सफलता की प्रार्थना की गई। यूट्यूब पर लैंडिंग को करीब 70 लाख लोगों ने देखा।
कई चरणों में ऐसे पूरा हुआ मिशन
14 जुलाई को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से एलवीएम3-एम4 राकेट चंद्रयान-3 को लेकर रवाना हुआ था। इसके बाद इसरो ने पृथ्वी से दूर कई बार चंद्रयान-3 की कक्षाएं बदली थीं। पृथ्वी की अलग-अलग कक्षाओं में परिक्रमा करते हुए एक अगस्त को स्लिंगशाट के बाद पृथ्वी की कक्षा छोड़कर यान चंद्रमा की कक्षा की ओर बढ़ा था।
पांच अगस्त को इसने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया। छह अगस्त को इसने पहली बार कक्षा बदली। इसके बाद नौ, 14 और 16 अगस्त को कक्षाओं में बदलाव कर यह चंद्रमा के और निकट पहुंचा। 17 अगस्त को चंद्रयान-3 के प्रोपल्शन माड्यूल और लैंडर माड्यूल अलग-अलग हो गए और लैंडर माड्यूल चंद्रमा की सतह की ओर बढ़ा।
18 अगस्त को पहली डीबूस्टिंग (धीमा करने की प्रक्रिया) पूरी हुई। 19-20 अगस्त की मध्यरात्रि दूसरी डीबूस्टिंग के बाद रोवर (प्रज्ञान) को अपने भीतर सहेजे लैंडर (विक्रम) चांद की सबसे करीबी कक्षा में पहुंचा था। इस मिशन में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी का भी सहयोग मिला।
रासायनिक पदार्थों और खनिजों का भी होगा अध्ययन
लैंडर में लगे पेलोड से चांद की सतह का अध्ययन किया जाएगा। इसमें नासा का भी पेलोड लगा है। रोवर कुछ दूरी तक चलकर चांद की सतह का अध्ययन करेगा। रोवर प्रज्ञान में भेजे गए तीन पेलोड में से पहला चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की मिट्टी और चट्टान का अध्ययन करेगा।
दूसरा पेलोड रासायनिक पदार्थों और खनिजों का अध्ययन करेगा और देखेगा कि इनका स्वरूप कब-कितना बदला है ताकि उनका इतिहास जाना जा सके। तीसरा पेलोड ये देखेगा कि चंद्रमा पर जीवन की क्या संभावना है और पृथ्वी से इसकी कोई समानता है भी कि नहीं।
जब क्रैश हो गया था चंद्रयान-2 का लैंडर
सात सितंबर 2019 को चंद्रयान-2 मिशन अंतिम चरण में कामयाबी हासिल करते-करते रह गया था। लैंडर से जब संपर्क टूटा था तो वह अल्टीट्यूड होल्ड चरण और फाइन ब्रेकिंग चरण के बीच था। अंतिम टर्मिनल डिसेंट चरण में प्रवेश करने से पहले ही वह दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
सॉफ्ट लैंडिंग के अहम चरण
पहले से निर्धारित प्रक्रिया के तहत ही चंद्रयान-3 की लैंडिंग हुई। 20 मिनट की प्रक्रिया में 17 मिनट बेहद अहम रहे। इस दौरान लैंडर के इंजन को सही समय और उचित ऊंचाई पर चालू किया गया। उपयुक्त मात्रा में ईंधन का उपयोग सुनिश्चित हुआ। नीचे उतरने के दौरान लैंडर में लगे कैमरे बताते रहे कि सतह कैसी है, यहां उतरा जा सकता है कि नहीं।
लैंडिंग की प्रक्रियाएं
रफ ब्रेकिंग चरण: इस चरण के दौरान चंद्रमा की 25 किमी 3 134 किमी कक्षा में मौजूद चंद्रयान-3 का वेग करीब 1680 मीटर प्रति सेकंड रहा। लैंडर ने 25 किलोमीटर की ऊंचाई से चंद्रमा की सतह पर उतरना शुरू किया। विक्रम लैंडर में लगे चार इंजनों को फायर कर वेग को धीरे-धीरे कम किया गया।
अल्टीट्यूड होल्ड चरण: लगभग 10 सेकंड तक ‘अल्टीट्यूड होल्ड चरण’ की प्रक्रिया पूरी की गई। इस समय लैंडर 3.48 किमी की दूरी तय करते हुए क्षैतिज से ऊध्र्वाधर स्थिति की ओर झुका। ऊंचाई 7.42 किमी से घटाकर 6.8 किमी और वेग 336 मीटर/सेकंड (क्षैतिज) और 59 मीटर/सेकंड (ऊध्र्वाधर) किया गया।
फाइन ब्रेकिंग चरण: यह प्रक्रिया 175 सेकंड चली। इसमें लैंडर पूरी तरह से ऊध्र्वाधर स्थिति में चला गया। ऊंचाई 6.8 किमी से घटाकर 800/1000 मीटर की गई। गति लगभग शून्य मीटर/सेकंड हुई। लगभग 6.8 किमी की ऊंचाई पर पहुंचने पर केवल दो इंजनों का उपयोग किया गया। अन्य दो इंजन बंद कर दिए गए। 150 मीटर से नीचे पहुंचने पर लैंडर ने अपने सेंसर और कैमरों का उपयोग करके सतह को स्कैन किया। यह जांचने के लिए कि नीचे कोई बाधा तो नहीं।
टर्मिनल डिसेंट चरण: जब लैंडर निर्धारित लैंडिंग स्थल से करीब 10 मीटर की ऊंचाई पर था तो इसके सभी इंजन बंद कर दिए गए जिससे यह सीधे अपने पैरों पर नीचे स्थिर हो सका। यह अंतिम चरण था। पूरी प्रक्रिया के दौरान विक्रम लैंडर पर लगे विशेष सेंसर और आनबोर्ड कम्प्यूटर लगातार इसकी दिशा को नियंत्रित करते रहे।