सुप्रीम कोर्ट : दिल्ली सरकार और LG के बीच अधिकारों की जंग में AAP की जीत

अदालत ने कहा, ‘‘यह निश्चित करना होगा कि राज्य का शासन केंद्र के हाथ में ना चला जाए। हम सभी जज इस बात से सहमत हैं कि ऐसा आगे कभी ना हो।’’कोर्ट ने कहा कि दिल्ली भले ही पूर्ण राज्य ना हो, लेकिन इसके पास कानून बनाने के अधिकार हैं। नई दिल्‍ली। दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने आम आदमी पार्टी (आप) नीत सरकार के हक में फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘निर्वाचित सरकार को प्रशासन पर नियंत्रण रखने की ज़रूरत है’’। दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे जनतंत्र की जीत बताया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा। दिल्‍ली में कानून व्यवस्था, पब्लिक आर्डर, जमीन से जुड़े मुद्दे और पुलिस पर केंद्र का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि अगर अधिकारियों को मंत्रियों को रिपोर्ट करने से रोका जाता है तो सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत पर असर पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने कहा कि निर्वाचित सरकार का प्रशासन पर नियंत्रण जरूरी है। उन्‍होंने न्यायाधीश अशोक भूषण के 2019 के फैसले से सहमति नहीं जताई कि दिल्ली के पास सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं है। संविधान पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल रहे। कोर्ट ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली का ‘अद्वितीय' चरित्र है और उसके पास सेवाओं पर विधायी तथा कार्यकारी शक्तियां हैं। दिल्ली देश में अन्य केंद्र शासित प्रदेशों की तरह केंद्र शासित प्रदेश नहीं है। लोकतंत्र, संघीय ढांचा संविधान की मूलभूत संरचना का हिस्सा हैं। केंद्र द्वारा सभी विधायी शक्तियों को अपने हाथ में लेने से संघीय प्रणाली समाप्त हो जाती है। केंद्र सभी विधायी, नियुक्ति शक्तियों को अपने हाथ में नहीं ले सकता। अगर चुनी हुई सरकार अधिकारियों को नियंत्रित नहीं कर सकती तो वो लोगों के लिए सामूहिक दायित्व का निर्वाह कैसे करेगी ? अगर चुनी हुई सरकार के पास ये अधिकार नही रहता तो फिर जवाबदेही की ट्रिपल चेन पूरी नही होती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘दिल्ली दूसरे केंद्र-शासित प्रदेशों से अलग है क्योंकि यहां निर्वाचित सरकार है, लिहाज़ा प्रशासनिक व्यवस्था का ज़िम्मा निर्वाचित सरकार के पास रहेगा।’’ अदालत ने कहा, ‘‘यह निश्चित करना होगा कि राज्य का शासन केंद्र के हाथ में ना चला जाए। हम सभी जज इस बात से सहमत हैं कि ऐसा आगे कभी ना हो।’’कोर्ट ने कहा कि दिल्ली भले ही पूर्ण राज्य ना हो, लेकिन इसके पास कानून बनाने के अधिकार हैं। संसद के पास तीसरी अनुसूची में किसी भी विषय पर कानून बनाने की पूर्ण शक्ति है। यदि केंद्र और राज्य के कानूनों के बीच विरोध होता है, तो केंद्रीय कानून प्रबल होगा। कोर्ट ने कहा कि हम दोहराना चाहते हैं कि दिल्‍ली के उपराज्‍यपाल दिल्ली सरकार की सलाह और सहायता पर काम करेंगे। इसमें सर्विसेज भी शामिल हैं यानि अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग। दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे जनतंत्र की जीत बताया है। केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली के लोगों के साथ न्याय करने के लिए उच्चतम न्यायालय का हार्दिक धन्यवाद। विकास की गति अब कई गुना बढ़ जाएगी। दिल्ली में प्रशासनिक सेवाएं किसके नियंत्रण में होंगी, ये काफी समय से उठ रहा है। मामला कोर्ट में गया तो इस पर सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने 14 फरवरी 2019 को एक फैसला दिया। लेकिन, उसमें दोनों जजों का मत अलग था। 8 साल से अधिकारों की जंग 26 मई 2015: दिल्ली के नौकरशाहों को नियुक्त करने का अधिकार उप राज्यपाल को देने वाली केंद्र की 21 मई की अधिसूचना के खिलाफ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई। 28 मई 2015: दिल्ली सरकार ने उप राज्यपाल की शक्तियों संबंधी केंद्र की अधिसूचना के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया. केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश में अधिसूचना को ‘संदेहास्पद'करार दिए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। 29 मई 2015: हाईकोर्ट ने उप राज्यपाल से कहा कि वह 9 नौकरशाहों का तबादला करने के दिल्ली सरकार के प्रस्ताव पर विचार करें। 10 जून 2015: हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो (ACB) को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना पर रोक लगाने से इनकार किया। 27 जून 2015: दिल्ली सरकार ने उप राज्यपाल द्वारा नियुक्त एसीबी प्रमुख एम के मीणा को भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो के कार्यालय में दाखिल होने से रोकने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 27 जनवरी 2016: केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय से कहा कि दिल्ली केंद्र के अधीन आती है और उसे पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है। 5 अप्रैल 2016: आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने हाई कोर्ट से अनुरोध किया कि दिल्ली के शासन में उप राज्यपाल के अधिकारों को लेकर दायर याचिका वृहद पीठ को भेजी जाए। 6 अप्रैल 2016: दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट में कहा कि सीएनजी फिटनेट टेस्ट के लिए लाइसेंस देने में हुए कथित भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए उसके पास आयोग गठित करने का अधिकार है। 19 अप्रैल 2016: आप सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से वह याचिका वापस ली, जिसमें हाईकोर्ट में बड़ी बेंच गठित करने का अनुरोध किया गया था। 24 मई 2016: दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में नौकरशाहों की नियुक्ति पर राज्यपाल के अधिकारों को लेकर उत्पन्न गतिरोध के संबंध में दायर याचिका पर रोक लगाने संबंधी आप सरकार की अर्जी पर फैसला सुरक्षित रखा। 30 मई 2016: हाईकोर्ट ने आप सरकार के उस अनुरोध को ठुकराया, जिसमें सुनवाई रोकने के लिए दायर अर्जी पर फैसला करने को कहा गया था। 1 जुलाई 2016: सुप्रीम कोर्ट ‘आप' सरकार की उस अर्जी पर सुनवाई को तैयार हुआ, जिसमें हाईकोर्ट को सार्वजनिक कार्य करने के लिए दिल्ली सरकार के अधिकारों के इस्तेमाल संबंधी संभावनाओं और अन्य विषयों पर फैसला देने से रोक लगाने का अनुरोध किया गया था। 4 जुलाई 2016: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे एस खेहर ने दिल्ली सरकार के राज्य के तौर पर अधिकारों की घोषणा संबंधी ‘आप' सरकार की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग किया। 5 जुलाई 2016: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव ने भी दिल्ली सरकार की अर्जी पर सुनवाई से खुद को अलग किया। 8 जुलाई 2016: सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की उस अर्जी पर विचार करने से इनकार कर दिया। इस याचिका में अनुरोध किया गया था कि पहले प्राथमिक मुद्दा यह तय किया जाए कि क्या उसके पास केंद्र और राज्य के बीच विवाद की सुनवाई का न्यायाधिकार है या यह ‘विशेष तौर पर ' शीर्ष न्यायालय में विचारणीय है। 4 अगस्त 2016: हाईकोर्ट ने कहा कि उप राज्यपाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रशासनिक प्रमुख हैं और ‘आप'सरकार का यह दावा कि वह मंत्रिमंडल की सलाह पर कार्य करने को बाध्य हैं ‘बिना किसी तथ्य' के है। 15 फरवरी 2017: सुप्रीम कोर्ट ने शासन को लेकर दिल्ली-केंद्र विवाद को संविधान पीठ को भेजा। 2 नवंबर 2017: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मामले में सुनवाई शुरू की। 8 नवंबर 2017: सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि उप राज्यापाल को दी गई जिम्मेदारियां असीमित नहीं हैं. 14 नवंबर 2017: सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या केंद्र और राज्यों के बीच कार्यकारी शक्तियों के बंटवारे की संवैधानिक व्यवस्था दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश पर भी लागू की जा सकती है. 21 नवंबर 2017: केंद्र सरकार ने आप सरकार के तर्क का सुप्रीम कोर्ट में विरोध करते हुए कहा कि अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली का दर्जा ‘विशेष' है लेकिन इससे यह राज्य नहीं बनती. 6 दिसंबर 2017: दिल्ली-केंद्र के बीच शक्तियों को लेकर दायर याचिकाओं पर 15 दिनों तक सुनवाई करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा. 4 जुलाई 2018: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उप राज्यपाल के पास निर्णय लेने का स्वतंत्र अधिकार नहीं है और वह मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करने को बाध्य हैं. संविधान के अनुच्छेद 239एए की व्याख्या को लेकर दायर अर्जी नियमित पीठ को भेजी गई. 14 फरवरी 2019: दो न्यायाधीशों की पीठ ने अलग-अलग फैसला दिया और प्रधान न्यायाधीश से तीन न्यायाधीशों की पीठ गठित करने की सिफारिश की जो अंतत: राष्ट्रीय राजधानी की सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर फैसला सुनाए. 6 मई 2022: तीन न्यायाधीशों की पीठ ने दिल्ली की सेवाओं के मुद्दे को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को भेजा. 9 नवंबर 2022: पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू की. 18 जनवरी 2023: सुप्रीम कोर्ट ने मामले में फैसला सुरक्षित रखा. 11 मई 2023: सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि के मामले को छोड़कर दिल्ली सरकार का सेवाओं पर विधायी और कार्यकारी अधिकार है. ये भी पढ़ें:- उद्धव ठाकरे के इस्तीफे से शिंदे सरकार पर SC के फैसले तक, जानें- महाराष्ट्र सियासी संकट की पूरी टाइमलाइन SC में AAP सरकार की बड़ी जीत, "चुनी सरकार को अफ़सरों की ट्रांसफ़र-पोस्टिंग का हक"

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अदालत ने कहा, ‘‘यह निश्चित करना होगा कि राज्य का शासन केंद्र के हाथ में ना चला जाए। हम सभी जज इस बात से सहमत हैं कि ऐसा आगे कभी ना हो।’’कोर्ट ने कहा कि दिल्ली भले ही पूर्ण राज्य ना हो, लेकिन इसके पास कानून बनाने के अधिकार हैं। 

नई दिल्‍ली। दिल्ली सरकार बनाम उपराज्यपाल विवाद पर सुप्रीम कोर्ट ने आम आदमी पार्टी (आप) नीत सरकार के हक में फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘निर्वाचित सरकार को प्रशासन पर नियंत्रण रखने की ज़रूरत है’’। दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे जनतंत्र की जीत बताया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अधिकारियों की तैनाती और तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार के पास होगा। दिल्‍ली में कानून व्यवस्था, पब्लिक आर्डर, जमीन से जुड़े मुद्दे और पुलिस पर केंद्र का अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि अगर अधिकारियों को मंत्रियों को रिपोर्ट करने से रोका जाता है तो सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत पर असर पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ ने कहा कि निर्वाचित सरकार का प्रशासन पर नियंत्रण जरूरी है। उन्‍होंने न्यायाधीश अशोक भूषण के 2019 के फैसले से सहमति नहीं जताई कि दिल्ली के पास सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं है। संविधान पीठ में न्यायमूर्ति एम आर शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा भी शामिल रहे।

कोर्ट ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली का ‘अद्वितीय’ चरित्र है और उसके पास सेवाओं पर विधायी तथा कार्यकारी शक्तियां हैं। दिल्ली देश में अन्य केंद्र शासित प्रदेशों की तरह केंद्र शासित प्रदेश नहीं है। लोकतंत्र, संघीय ढांचा संविधान की मूलभूत संरचना का हिस्सा हैं। केंद्र द्वारा सभी विधायी शक्तियों को अपने हाथ में लेने से संघीय प्रणाली समाप्त हो जाती है। केंद्र सभी विधायी, नियुक्ति शक्तियों को अपने हाथ में नहीं ले सकता। अगर चुनी हुई सरकार अधिकारियों को नियंत्रित नहीं कर सकती तो वो लोगों के लिए सामूहिक दायित्व का निर्वाह कैसे करेगी ? अगर चुनी हुई सरकार के पास ये अधिकार नही रहता तो फिर जवाबदेही की ट्रिपल चेन पूरी नही होती।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘दिल्ली दूसरे केंद्र-शासित प्रदेशों से अलग है क्योंकि यहां निर्वाचित सरकार है, लिहाज़ा प्रशासनिक व्यवस्था का ज़िम्मा निर्वाचित सरकार के पास रहेगा।’’ अदालत ने कहा, ‘‘यह निश्चित करना होगा कि राज्य का शासन केंद्र के हाथ में ना चला जाए। हम सभी जज इस बात से सहमत हैं कि ऐसा आगे कभी ना हो।’’कोर्ट ने कहा कि दिल्ली भले ही पूर्ण राज्य ना हो, लेकिन इसके पास कानून बनाने के अधिकार हैं।

संसद के पास तीसरी अनुसूची में किसी भी विषय पर कानून बनाने की पूर्ण शक्ति है। यदि केंद्र और राज्य के कानूनों के बीच विरोध होता है, तो केंद्रीय कानून प्रबल होगा। कोर्ट ने कहा कि हम दोहराना चाहते हैं कि दिल्‍ली के उपराज्‍यपाल दिल्ली सरकार की सलाह और सहायता पर काम करेंगे। इसमें सर्विसेज भी शामिल हैं यानि अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग।

दिल्‍ली के मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसे जनतंत्र की जीत बताया है। केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली के लोगों के साथ न्याय करने के लिए उच्चतम न्यायालय का हार्दिक धन्यवाद। विकास की गति अब कई गुना बढ़ जाएगी।  दिल्ली में प्रशासनिक सेवाएं किसके नियंत्रण में होंगी, ये काफी समय से उठ रहा है। मामला कोर्ट में गया तो इस पर सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने 14 फरवरी 2019 को एक फैसला दिया।  लेकिन, उसमें दोनों जजों का मत अलग था।

8 साल से अधिकारों की जंग 

26 मई 2015- दिल्ली के नौकरशाहों को नियुक्त करने का अधिकार उप राज्यपाल को देने वाली केंद्र की 21 मई की अधिसूचना के खिलाफ उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर की गई।

28 मई 2015- दिल्ली सरकार ने उप राज्यपाल की शक्तियों संबंधी केंद्र की अधिसूचना के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया. केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश में अधिसूचना को ‘संदेहास्पद’करार दिए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

29 मई 2015- हाईकोर्ट ने उप राज्यपाल से कहा कि वह 9 नौकरशाहों का तबादला करने के दिल्ली सरकार के प्रस्ताव पर विचार करें।

10 जून 2015- हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो (ACB) को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना पर रोक लगाने से इनकार किया।

27 जून 2015- दिल्ली सरकार ने उप राज्यपाल द्वारा नियुक्त एसीबी प्रमुख एम के मीणा को भ्रष्टाचार रोधी ब्यूरो के कार्यालय में दाखिल होने से रोकने के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

27 जनवरी 2016- केंद्र सरकार ने उच्च न्यायालय से कहा कि दिल्ली केंद्र के अधीन आती है और उसे पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है।

5 अप्रैल 2016- आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने हाई कोर्ट से अनुरोध किया कि दिल्ली के शासन में उप राज्यपाल के अधिकारों को लेकर दायर याचिका वृहद पीठ को भेजी जाए।

6 अप्रैल 2016- दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट में कहा कि सीएनजी फिटनेट टेस्ट के लिए लाइसेंस देने में हुए कथित भ्रष्टाचार की जांच करने के लिए उसके पास आयोग गठित करने का अधिकार है।

19 अप्रैल 2016- आप सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से वह याचिका वापस ली, जिसमें हाईकोर्ट में बड़ी बेंच गठित करने का अनुरोध किया गया था।

24 मई 2016- दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में नौकरशाहों की नियुक्ति पर राज्यपाल के अधिकारों को लेकर उत्पन्न गतिरोध के संबंध में दायर याचिका पर रोक लगाने संबंधी आप सरकार की अर्जी पर फैसला सुरक्षित रखा।

30 मई 2016- हाईकोर्ट ने आप सरकार के उस अनुरोध को ठुकराया, जिसमें सुनवाई रोकने के लिए दायर अर्जी पर फैसला करने को कहा गया था।

1 जुलाई 2016- सुप्रीम कोर्ट ‘आप’ सरकार की उस अर्जी पर सुनवाई को तैयार हुआ, जिसमें हाईकोर्ट को सार्वजनिक कार्य करने के लिए दिल्ली सरकार के अधिकारों के इस्तेमाल संबंधी संभावनाओं और अन्य विषयों पर फैसला देने से रोक लगाने का अनुरोध किया गया था।

4 जुलाई 2016- सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे एस खेहर ने दिल्ली सरकार के राज्य के तौर पर अधिकारों की घोषणा संबंधी ‘आप’ सरकार की याचिका की सुनवाई से खुद को अलग किया।

5 जुलाई 2016- सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव ने भी दिल्ली सरकार की अर्जी पर सुनवाई से खुद को अलग किया।

8 जुलाई 2016- सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की उस अर्जी पर विचार करने से इनकार कर दिया। इस याचिका में अनुरोध किया गया था कि पहले प्राथमिक मुद्दा यह तय किया जाए कि क्या उसके पास केंद्र और राज्य के बीच विवाद की सुनवाई का न्यायाधिकार है या यह ‘विशेष तौर पर ‘ शीर्ष न्यायालय में विचारणीय है।

4 अगस्त 2016-  हाईकोर्ट ने कहा कि उप राज्यपाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रशासनिक प्रमुख हैं और ‘आप’सरकार का यह दावा कि वह मंत्रिमंडल की सलाह पर कार्य करने को बाध्य हैं ‘बिना किसी तथ्य’ के है।

15 फरवरी 2017- सुप्रीम कोर्ट ने शासन को लेकर दिल्ली-केंद्र विवाद को संविधान पीठ को भेजा।

2 नवंबर 2017- सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मामले में सुनवाई शुरू की।

8 नवंबर 2017- सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि उप राज्यापाल को दी गई जिम्मेदारियां असीमित नहीं हैं ।

14 नवंबर 2017- सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि क्या केंद्र और राज्यों के बीच कार्यकारी शक्तियों के बंटवारे की संवैधानिक व्यवस्था दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश पर भी लागू की जा सकती है।

21 नवंबर 2017-केंद्र सरकार ने आप सरकार के तर्क का सुप्रीम कोर्ट में विरोध करते हुए कहा कि अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में दिल्ली का दर्जा ‘विशेष’ है लेकिन इससे यह राज्य नहीं बनती।

6 दिसंबर 2017- दिल्ली-केंद्र के बीच शक्तियों को लेकर दायर याचिकाओं पर 15 दिनों तक सुनवाई करने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा।

4 जुलाई 2018-सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उप राज्यपाल के पास निर्णय लेने का स्वतंत्र अधिकार नहीं है और वह मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करने को बाध्य हैं। संविधान के अनुच्छेद 239एए की व्याख्या को लेकर दायर अर्जी नियमित पीठ को भेजी गई।

14 फरवरी 2019- दो न्यायाधीशों की पीठ ने अलग-अलग फैसला दिया और प्रधान न्यायाधीश से तीन न्यायाधीशों की पीठ गठित करने की सिफारिश की जो अंतत: राष्ट्रीय राजधानी की सेवाओं पर नियंत्रण को लेकर फैसला सुनाए।

6 मई 2022- तीन न्यायाधीशों की पीठ ने दिल्ली की सेवाओं के मुद्दे को पांच सदस्यीय संविधान पीठ को भेजा।

9 नवंब 2022- पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू की।

18 जनवरी 2023- सुप्रीम कोर्ट ने मामले में फैसला सुरक्षित रखा।

11 मई 2023- सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि के मामले को छोड़कर दिल्ली सरकार का सेवाओं पर विधायी और कार्यकारी अधिकार है।

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