2023 में चीन से ज्यादा हो जाएगी भारत की आबादी

नई दिल्ली। दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन को जनसंख्या में कमी का सामना कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र के जनसांख्यिकीय अनुमान के मुताबिक, भारत 2023 में चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। चीन ने एक अरब का मील का पत्थर 1980 के दशक की शुरुआत में पार किया, जब भारत की आबादी 80 करोड़ के आसपास थी। तभी से वन-चाइल्ड नीति और तेज आर्थिक वृद्धि ने चीन की जनसांख्यिकीय राह को नाटकीय ढंग से बदल दिया, क्योंकि जन्म दर धड़धड़ाकर नीचे आ गई और आबादी 1.4 अरब के आसपास स्थिर होने लगी। भारत में परिवार नियोजन की नीति पर कमजोर अमल और चीन के मुकाबले धीमी आर्थिक वृद्धि के कारण ऊंची प्रजनन दरें कायम रहीं, जिससे आबादी का अंतर तेजी से मिटने लगा। कुछ अनुमानों के मुताबिक, चीन धमाकेदार जनसांख्यिकीय गिरावट के लिए तैयार है और तेजी से बढ़ता अफ्रीकी देश नाइजीरिया 21वीं सदी के आखिर तक दुनिया के दूसरा सबसे ज्यादा आबादी वाले देश के तौर पर चीन की जगह ले लेगा। भारत अलबत्ता सदी के लिए दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बनने को तैयार है। भारत इस मील के पत्थर तक कैसे पहुंचा, किस स्तर पर आबादी शिखर तक पहुंची और इसके क्या निहितार्थ हैं? ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले 6 दशकों में पहली बार चीन की जनसंख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है। ऐसे में भारत इस साल चीन को पीछे छोड़ते हुए विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। भारत की आबादी 2023 के अप्रैल महीने में 143 करोड़ तक पहुंच आएगी। इसी के साथ जनसंख्‍या के मामले में चीन भारत से पिछड़ जाएगा। भारत की जनसंख्या वृद्धि दर बड़े देशों के मुकाबले काफी ज्यादा है। बीते साल (2022 में) दुनियाभर में 13 करोड़ बच्चे पैदा हुए, जिनमें से करीब 2.50 करोड़ बच्चे अकेले भारत में पैदा हुए। चीन में यह आंकड़ा महज 'लाखों' में रहा। चीन अब गंभीर जनसंख्या संकट से जूझ रहा है। राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के मंगलवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, चीन में पिछले साल 2022 के अंत में 1.41 बिलियन लोग थे, जो 2021 के अंत की तुलना में 850,000 कम थे। यह 1961 के बाद से पहली गिरावट का प्रतीक है। चीन में 2022 में 9.56 मिलियन (90 लाख 56 हजार) लोगों ने जन्म लिया, जबकि मरने वालों की तादाद 10.41 मिलियन (1 करोड़ 41 हजार) दर्ज की गई। चीन को कोरोना से संबंधित मौतों में वृद्धि दिसंबर की शुरुआत में जीरो कोविड पॉलिसी को अचानक छोड़ने के बाद चीन को कोरोना से संबंधित मौतों में वृद्धि का सामना करना पड़ा। इस साल भी चीन में कोविड से मौतें होने की आशंका है, क्योंकि कोरोना का नया वेरिएंट पूरे देश में फैल रहा है। यह प्रकोप इस वर्ष कोविड से मौतों की संख्या को और बढ़ा सकता है। हाल ही में चीन की सरकार ने बताया था कि उनके यहां 8 दिसंबर 2022 से लेकर 12 जनवरी 2023 तक करीब 60 लोगों की कोरोना के कारण मौत हुई है। इससे पहले चीन में निगेटिव जनसंख्या दर 1960 के दशक की शुरुआत में दर्ज की गई थी। यानी पिछले 6 दशक में पहली बार चीन में जन्म लेने वालों से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। चीन में श्रम बल पहले से सिकुड़ा चीन की जनसंख्या में आ रही गिरावट का आर्थिक तौर पर काफी बुरा असर होगा. चीन में कम लोग पैदा हो रहे हैं। साथ ही वहां की आबादी तेजी से बूढ़ी हो रही है। जल्द ही ऐसा समय भी आएगा, जब चीन के पास काम करने वाले युवाओं की कमी होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि ये ट्रेंड नए घरों और सामानों की मांग को धीमा करके आर्थिक विकास पर ब्रेक के तौर पर काम कर सकती है। जनसंख्या में गिरावट के कारण चीनी अर्थव्यवस्था आकार में अमेरिका से आगे निकलने के लिए भी संघर्ष कर सकती है। 2019 तक संयुक्त राष्ट्र भविष्यवाणी कर रहा था कि चीन की आबादी 2031 में चरम पर होगी और फिर घट जाएगी, लेकिन पिछले साल संयुक्त राष्ट्र ने उस अनुमान को संशोधित किया था। चीन में श्रम बल पहले से ही सिकुड़ रहा है। दीर्घकालिक घरों की मांग में और गिरावट आने की आशंका है। चीनी सरकार को अपनी कम निधि वाली राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के भुगतान के लिए भी संघर्ष करना पड़ सकता है। चीन में शिक्षा व्यवस्था महंगी चीन की जन्म दर, या प्रति 1,000 लोगों पर नवजात शिशुओं की संख्या पिछले साल घटकर 6.77 रह गई, जो कम से कम 1978 के बाद का सबसे निचला स्तर है। राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि 62% आबादी कामकाजी उम्र की थी, जिसे चीन 16 से 59 साल की उम्र के लोगों के रूप में परिभाषित करता है। ये एक दशक पहले लगभग 70% से नीचे था। चीन में एक बच्चे पैदा करने की नीति का असर ये हुआ, कि परिवार सिस्टम पर इसका गंभीर असर पड़ा और धीरे- धीरे नई आबादी का शादी और बच्चों से मोहभंग होने लगा। वहीं, चीन में शिक्षा व्यवस्था इतनी ज्यादा महंगी कर दी गई, कि लोगों के लिए दो बच्चों को पढ़ाना अत्यंत ही मुश्किल हो गया, लिहाजा नई पीढ़ी ने बच्चे को जन्म देना ही बंद कर दिया। वहीं, कोरोना वायरस ने चीन की जनसंख्या वृद्धि पर गंभीर असर डाला है और चिकित्सा सुविधाएं इतनी मुश्किल हो गईं, कि लोगों के लिए परिवार बढ़ाना और भी ज्यादा मुश्किल हो गया है। लिहाजा, चीन की जनसंख्या में और भी ज्यादा गिरावट आ गई। हालांकि, चीन की स्थानीय प्रांतीय सरकारों ने 2021 से लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने के उपायों को शुरू किया है, जिसमें टैक्स कटौती, मां बनने वाली महिलाओं को लंबी छुट्टी और उनके लिए घर खरीदने पर सब्सिडी भी शामिल है, लेकिन इन उपायों के बाद भी अभी तक सही परिणाम देखने को नहीं मिल रहे हैं।

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नई दिल्ली। दुनिया की सबसे ज्यादा आबादी वाले देश चीन को जनसंख्या में कमी का सामना कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र के जनसांख्यिकीय अनुमान के मुताबिक, भारत 2023 में चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा। चीन ने एक अरब का मील का पत्थर 1980 के दशक की शुरुआत में पार किया, जब भारत की आबादी 80 करोड़ के आसपास थी। तभी से वन-चाइल्ड नीति और तेज आर्थिक वृद्धि ने चीन की जनसांख्यिकीय राह को नाटकीय ढंग से बदल दिया, क्योंकि जन्म दर धड़धड़ाकर नीचे आ गई और आबादी 1.4 अरब के आसपास स्थिर होने लगी।

भारत में परिवार नियोजन की नीति पर कमजोर अमल और चीन के मुकाबले धीमी आर्थिक वृद्धि के कारण ऊंची प्रजनन दरें कायम रहीं, जिससे आबादी का अंतर तेजी से मिटने  लगा। कुछ अनुमानों के मुताबिक, चीन धमाकेदार जनसांख्यिकीय गिरावट के लिए तैयार है और तेजी से बढ़ता अफ्रीकी देश नाइजीरिया 21वीं सदी के आखिर तक दुनिया के दूसरा सबसे ज्यादा आबादी वाले देश के तौर पर चीन की जगह ले लेगा। भारत अलबत्ता सदी के लिए दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बनने को तैयार है। भारत इस मील के पत्थर तक कैसे पहुंचा, किस स्तर पर आबादी शिखर तक पहुंची और इसके क्या निहितार्थ हैं?

ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 6 दशकों में पहली बार चीन की जनसंख्या में भारी गिरावट दर्ज की गई है। ऐसे में भारत इस साल चीन को पीछे छोड़ते हुए विश्व में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। भारत की आबादी 2023 के अप्रैल महीने में 143 करोड़ तक पहुंच आएगी। इसी के साथ जनसंख्‍या के मामले में चीन भारत से पिछड़ जाएगा। भारत की जनसंख्या वृद्धि दर बड़े देशों के मुकाबले काफी ज्यादा है। बीते साल (2022 में) दुनियाभर में 13 करोड़ बच्चे पैदा हुए, जिनमें से करीब 2.50 करोड़ बच्चे अकेले भारत में पैदा हुए। चीन में यह आंकड़ा महज ‘लाखों’ में रहा।

चीन अब गंभीर जनसंख्या संकट से जूझ रहा है। राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के मंगलवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, चीन में पिछले साल 2022 के अंत में 1.41 बिलियन लोग थे, जो 2021 के अंत की तुलना में 850,000 कम थे। यह 1961 के बाद से पहली गिरावट का प्रतीक है। चीन में 2022 में 9.56 मिलियन (90 लाख 56 हजार) लोगों ने जन्म लिया, जबकि मरने वालों की तादाद 10.41 मिलियन (1 करोड़ 41 हजार) दर्ज की गई।

चीन को कोरोना से संबंधित मौतों में वृद्धि

दिसंबर की शुरुआत में जीरो कोविड पॉलिसी को अचानक छोड़ने के बाद चीन को कोरोना से संबंधित मौतों में वृद्धि का सामना करना पड़ा।  इस साल भी चीन में कोविड से मौतें होने की आशंका है, क्योंकि कोरोना का नया वेरिएंट पूरे देश में फैल रहा है। यह प्रकोप इस वर्ष कोविड से मौतों की संख्या को और बढ़ा सकता है।

हाल ही में चीन की सरकार ने बताया था कि उनके यहां 8 दिसंबर 2022 से लेकर 12 जनवरी 2023 तक करीब 60 लोगों की कोरोना के कारण मौत हुई है। इससे पहले चीन में निगेटिव जनसंख्या दर 1960 के दशक की शुरुआत में दर्ज की गई थी। यानी पिछले 6 दशक में पहली बार चीन में जन्म लेने वालों से ज्यादा लोगों की मौत हुई है।

चीन में श्रम बल पहले से सिकुड़ा

चीन की जनसंख्या में आ रही गिरावट का आर्थिक तौर पर काफी बुरा असर होगा. चीन में कम लोग पैदा हो रहे हैं। साथ ही वहां की आबादी तेजी से बूढ़ी हो रही है। जल्द ही ऐसा समय भी आएगा, जब चीन के पास काम करने वाले युवाओं की कमी होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि ये ट्रेंड नए घरों और सामानों की मांग को धीमा करके आर्थिक विकास पर ब्रेक के तौर पर काम कर सकती है। जनसंख्या में गिरावट के कारण चीनी अर्थव्यवस्था आकार में अमेरिका से आगे निकलने के लिए भी संघर्ष कर सकती है।

2019 तक संयुक्त राष्ट्र भविष्यवाणी कर रहा था कि चीन की आबादी 2031 में चरम पर होगी और फिर घट जाएगी, लेकिन पिछले साल संयुक्त राष्ट्र ने उस अनुमान को संशोधित किया था। चीन में श्रम बल पहले से ही सिकुड़ रहा है। दीर्घकालिक घरों की मांग में और गिरावट आने की आशंका है। चीनी सरकार को अपनी कम निधि वाली राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के भुगतान के लिए भी संघर्ष करना पड़ सकता है।

चीन में शिक्षा व्यवस्था महंगी

चीन की जन्म दर, या प्रति 1,000 लोगों पर नवजात शिशुओं की संख्या पिछले साल घटकर 6.77 रह गई, जो कम से कम 1978 के बाद का सबसे निचला स्तर है। राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के आंकड़ों से पता चलता है कि 62% आबादी कामकाजी उम्र की थी, जिसे चीन 16 से 59 साल की उम्र के लोगों के रूप में परिभाषित करता है। ये एक दशक पहले लगभग 70% से नीचे था।

चीन में एक बच्चे पैदा करने की नीति का असर ये हुआ, कि परिवार सिस्टम पर इसका गंभीर असर पड़ा और धीरे- धीरे नई आबादी का शादी और बच्चों से मोहभंग होने लगा। वहीं, चीन में शिक्षा व्यवस्था इतनी ज्यादा महंगी कर दी गई, कि लोगों के लिए दो बच्चों को पढ़ाना अत्यंत ही मुश्किल हो गया, लिहाजा नई पीढ़ी ने बच्चे को जन्म देना ही बंद कर दिया। वहीं, कोरोना वायरस ने चीन की जनसंख्या वृद्धि पर गंभीर असर डाला है और चिकित्सा सुविधाएं इतनी मुश्किल हो गईं, कि लोगों के लिए परिवार बढ़ाना और भी ज्यादा मुश्किल हो गया है। लिहाजा, चीन की जनसंख्या में और भी ज्यादा गिरावट आ गई। हालांकि, चीन की स्थानीय प्रांतीय सरकारों ने 2021 से लोगों को अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहित करने के उपायों को शुरू किया है, जिसमें टैक्स कटौती, मां बनने वाली महिलाओं को लंबी छुट्टी और उनके लिए घर खरीदने पर सब्सिडी भी शामिल है, लेकिन इन उपायों के बाद भी अभी तक सही परिणाम देखने को नहीं मिल रहे हैं।

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