महिलाओं के लिए बांझपन और जानलेवा कैंसर की समस्या बन सकता है सैनिटरी नैपकिन

महिलाएं संक्रमण से बचने के लिए माहवारी के दौरान सैनिटरी नैपकिन प्रयोग कराती हैं। अब यही सैनिटरी नैपकिन एक अध्ययन में खतरनाक बताया जा रहा है।अध्ययन के अनुसार, भारत में व्यापक रूप से उपलब्ध सैनिटरी पैड में कैंसर पैदा करने वाले रसायन पाए गए हैं। सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल किसी महिला के लिए जानलेवा बन सकता है। इससे बांझपन की समस्या भी आ सकती है।

DrashtaNews

नई दिल्ली। महिलाएं संक्रमण से बचने के लिए माहवारी के दौरान सैनिटरी नैपकिन प्रयोग कराती हैं। अब यही सैनिटरी नैपकिन एक अध्ययन में खतरनाक बताया जा रहा है।अध्ययन के अनुसार, भारत में व्यापक रूप से उपलब्ध सैनिटरी पैड में कैंसर पैदा करने वाले रसायन पाए गए हैं। सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल किसी महिला के लिए जानलेवा बन सकता है। इससे बांझपन की समस्या भी आ सकती है।  

दिल्ली के एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा कराये गए अध्ययन के अनुसार भारत में बिकने वाले प्रमुख सैनिटरी नैपकिन में रसायनों की उच्च मात्रा मिली है जो हृदय संबंधी विकार, मधुमेह और कैंसर से जुड़े होते हैं।यह एक चौंकाने वाला चिंताजनक तथ्य है, खास तौर पर यह देखते हुए कि भारत में हर चार में से लगभग तीन किशोर महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं। 

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, एनजीओ द्वारा किए गए अध्ययन ने पूरे भारत में उपलब्ध 10 ब्रांडों के पैड (जैविक और अकार्बनिक सहित) का परीक्षण किया और सभी नमूनों में थैलेट और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों की मौजूदगी पाई गई। दोनों प्रदूषक रसायनों में कैंसर कोशिकाएं बनाने की क्षमता होती है। टॉक्सिक्स लिंक ने पाया कि विश्लेषण किए गए कुछ पैड में उनकी सांद्रता यूरोपीय विनियमन मानक से तीन गुना अधिक थी। इस मामले में सबसे चिंताजनक बात यह है कि सैनिटरी पैड के माध्यम से हानिकारक रसायनों के शरीर द्वारा अवशोषित होने की संभावना बहुत अधिक होती है। 

एनवायरनमेंटल एनजीओ टॉक्सिक्स लिंक के प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर और जांचकर्ताओं में से एक डॉ. अमित ने कहा कि आम तौर पर उपलब्ध सैनिटरी उत्पादों में कई हानिकारक रसायनों का मिलना चौंकाने वाला है। इसमें कार्सिनोजेन्स, रिप्रोडक्टिव टॉक्सिन्स, एंडोक्राइन डिसरप्टर्स और एलर्जेंस जैसे जहरीले रसायन शामिल हैं।  इस अध्ययन का हिस्सा रहीं टॉक्सिक्स लिंक की कार्यक्रम समन्वयक डॉ. आकांक्षा मेहरोत्रा ने कहा कि एक श्लेष्मा झिल्ली के रूप में योनि, त्वचा की तुलना में अधिक रसायनों को स्रावित और अवशोषित कर सकती है। 

NGO ‘टॉक्सिक लिंक’ के अध्ययन में सैनिटरी नैपकिन के कुल दस नमूनों में थैलेट और अन्य परिवर्तनशील कार्बनिक यौगिक (VOC) पाये गए हैं। इनमें बाजार में उपलब्ध छह अकार्बनिक (इनॉर्गेनिक) और चार कार्बनिक (ऑर्गेनिक) सैनिटरी पैड के नमूने थे। 

थैलेट के संपर्क से हृदय विकार, मधुमेह, कुछ तरह के कैंसर और जन्म संबंधी विकार समेत विभिन्न स्वास्थ्य समस्याएं होने की बात कही गयी है। VOC से मस्तिष्क विकार, दमा, दिव्यांगता, कुछ तरह के कैंसर आदि समस्याएं होने का खतरा होता है। अध्ययन के अनुसार कार्बनिक, अकार्बनिक सभी तरह के सैनिटरी नैपकिन में उच्च मात्रा में थैलेट पाया गया। अध्ययन यह भी कहता है कि सभी कार्बनिक पैड के नमूनों में उच्च स्तर के वीओसी मिलना हैरान करने वाला था, क्योंकि अब तक माना जाता था कि कार्बनिक पैड सुरक्षित होते हैं। 

अध्ययन के अनुसार मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को ऐसे सुरक्षित उत्पादों का इस्तेमाल करना चाहिए जो बिना किसी शारीरिक बाधा के उनकी दैनिक गतिविधियों को करने में सहायक हों. इस समय दुनियाभर में उपयोग कर फेंकने वाले सैनिटरी पैड सर्वाधिक लोकप्रिय हैं। 

सुरक्षा के स्वच्छ साधनों को अपनाने की बजाय भारतीय महिलाओं को सैनिटरी पैड का उपयोग करने के लिए कहा जा रहा है। कार्सिनोजेन्स सहित हानिकारक रसायनों की उपस्थिति महिलाओं के विश्वास के लिए एक बड़ा झटका है। यूरोपीय देशों में सख्त नियम हैं लेकिन सैनिटरी पैड की संरचना, निर्माण और उपयोग पर भारत में कड़े मापदंड नहीं हैं। हालांकि ये बीआईएस मानकों के अधीन हैं, लेकिन इनमें रसायनों पर कुछ भी विशिष्ट निर्देश नहीं है। 

नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण से पता चला है कि 15-24 वर्ष की लगभग 64 प्रतिशत महिलाएं सैनिटरी पैड का उपयोग करती हैं। अनुमान लगाया गया है कि अधिक समृद्ध समाज में पैड का अधिक उपयोग होता है। इस बीच, भारतीय सैनिटरी पैड बाजार 2021 में 618.4 मिलियन डॉलर के मूल्य पर पहुंच गया। IMARC समूह के अनुसार, उम्मीद है कि यह बाजार 2027 तक 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा।   

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