यूक्रेन संकट पर भारत चिंतित , रूस-अमेरिका के सुलह में ही देश का हित

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नई दिल्ली। रूस और अमेरिका के विदेश मंत्रियों के बीच एक दिन पहले हुई सकारात्मक बातचीत से भारत को दोनों के बीच यूक्रेन को लेकर सुलह की उम्मीद है। भारत पिछले कई महीनों से यूक्रेन के घटनाक्रम पर पैनी निगाह रखे हुए है लेकिन कोई बयान जारी नहीं किया है। दरअसल, रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के हालात पैदा होने के बाद जिस प्रकार नाटो देशों ने रुस की घेराबंदी की है और आगे टकराव बढ़ने के संकेत मिले हैं, उससे भारत के अमेरिका, यूरोप, रूस से कूटनीतिक संबंध प्रभावित होने की आशंका तो है ही, चीन के मोर्चे पर भी मुश्किलें बढ़ सकती हैं।

विदेश मामलों के एक जानकार का कहना है कि रूस और अमेरिका के बीच यूक्रेन को लेकर लंबे समय से बातचीत चल रही है और यह अभी भी जारी है। ऐसे में रूस और अमेरिका के बीच भिड़ंत की आशंकाएं नहीं हैं। अमेरिका की तरफ से यह संकेत दिए गए हैं कि वह रूस की सुरक्षा चिंताओं को लेकर गंभीर है। रूस को सबसे ज्यादा चिंता यूक्रेन और जार्जियां जैसे पड़ोसी देशों के पश्चिमी यूरोप का हिस्सा बनने और नाटो में शामिल होने को लेकर है, इसलिए वह यूक्रेन में ऐसी सरकार स्थापित करने के पक्ष में है जो नाटो से दूरी बनाए। माना जा रहा है कि अगले सप्ताह रूस और अमेरिका के बीच यूक्रेन को लेकर कोई फार्मूला निकल सकता है जिसमें यूक्रेन को नाटो में शामिल करने की बजाय जरूरत पड़ने पर सैन्य मदद तक सीमित रखा जा सकता है। लेकिन यह सैन्य मदद किन परिस्थितियों में होगी इसे लेकर रूस से बातचीत हो रही है।

जानकारों का कहना है कि रूस से टकराव में अमेरिका की चीन विरोधी मुहिम को झटका लग सकता है। यदि रुस और यूक्रेन में युद्ध होता है और नाटो सेनाएं (अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन के अलावा 27 यूरोपीय देश) यूक्रेन का साथ देती है तो ऐसे में रूस के पास चीन से मदद लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा। रूस-चीन की रणनीतिक साझेदारी से अमेरिका की चिंताएं बढ़ेंगी। इसलिए यह माना जा रहा है कि इस मामले में अमेरिका का पूरा जोर इस बात पर रहेगा कि रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध को टाला जाए। लेकिन यह तभी संभव हो सकता है जब अमेरिका रूस की सुरक्षा चिंताओं पर ध्यान दे।

रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध होने और अमेरिका तथा यूरोप का रुस से टकराव बढ़ने की स्थिति में भारत के लिए हर तरफ कूटनीतिक मुश्किल पैदा होगी। रूस भारत का पुराना मित्र है लेकिन उसकी चीन से मजबूत रणनीति साझेदारी एलएसी पर भारत की मुश्किलें बढ़ा सकती हैं। दूसरे, भारत के किसी रुख से अमेरिका, यूरोप, ब्रिटेन आदि देशों से भी भारत के मौजूदा संबंध प्रभावित होंगे। खुद यूक्रेन के साथ भारत के तीन दशक पुराने व्यापारिक रिश्ते हैं तथा वहां करीब दस हजार भारतीय भी रहते हैं। इसलिए भारत का हित इसी में है कि यह टकराव टल जाए।

सूत्रों ने कहा कि भारत रुस-अमेरिका, रुस-यूक्रेन के बीच बढ़ रहे घटनाक्रम पर पैनी निगाह रखे हुए है। भारत की मुश्किल यह है कि वह रूस पर महत्वपूर्ण सैन्य उपकरणों को लेकर निर्भर है। इसी प्रकार अमेरिका, यूरोप पर भी उसकी कई क्षेत्रों में निर्भरता बनी हुई है। जबकि पिछले दो साल के दौरान चीन से बिगड़ रहे संबंधों के बीच भारत सावधानी पूर्वक अमेरिका और रूस के साथ सूझबूझ के साथ अपने संबंधों को मजबूत बनाए हुए है। लेकिन संभावित टकराव इस स्थिति को बिगाड़ सकता है।

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