नीच मनुष्य कौन है ?

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विद्वानों और विचारकों की सभा लगी हुई है। भगवान वेदव्यास सभापति के आसन पर आसीन हैं। प्रश्न उपस्थित होता है कि ‘नीच कौन है?’ कई सभासद अपने अपने विचार प्रकट करते हैं।

एक कहता है-मेरा विश्वास है कि ‘गुणहीन जनो जघन्यः’ जो मनुष्य गुणहीन है वह नीच है।

दूसरा कहता है- जो कला रहित है वह नीच है। कहा भी है- ‘संगीत साहित्य कला विहीनः साक्षात् पशु पुच्छ विषाणहीनः’ अर्थात् जो संगीत साहित्य कला से रहित है वह बिना सींग पूँछ का साक्षात् पशु है।
तीसरा कहता है- सकल उच्चताएं धन से मिलती हैं, इसलिए जिसके पास धन नहीं वह नीच है।

तानीन्द्रियाणि सकलानि तद्वेनामः
साबुद्धिरप्रतिहता वचनम् तदेव।
अथोष्मणा विरहितः पुरुष स एव,
वाह्यः क्षणेन् भवतीति विचित्रमेतत्।।

अर्थात्- वही इन्द्रियाँ है, सबों के नाम भी वही है, वही तीक्ष्ण बुद्धि है, वही मधुर वचन है। परन्तु जो पहले था-वह एक धन नहीं है। उसी एक के न रहने से मनुष्य और का और दिखाई पड़ता है। यह है धन की महिमा। जिस के पास धन नहीं वह नीच ही तो गिना जाता है। इसी प्रकार और भी अनेकों सभासदों ने अपने अपने भिन्न भिन्न मत प्रकट किये। विवाद बढ़ता जाता था-मतैक्य का कोई लक्षण दिखाई न देता था, निदान-फैसला सभापति जी के ऊपर छोड़ा गया।
भगवान् वेदव्यास ने कहा-मेरा विश्वास है कि- गुण, कला और धन के बिना कोई नीच नहीं बनता और न इसके होने से सच्चे अर्थों में कोई ऊँच बन सकता है। मेरा मत है कि- ‘नारायणस्मरण हीन जनो जघन्यः।’ जो लोग परमात्मा का स्मरण नहीं करते वे नीच हैं।परमात्मा के स्मरण से मनुष्य अपने भीतर बाहर सर्वत्र सर्व व्यापक सत्ता को देखता है। उसके नियमों आशाओं पर चलने के लाभ और उल्लंघन के दंड को भली प्रकार समझता है।”