सीधी। देश भर में विकास के नाम पर भूमिअधिग्रहण का खेल चल रहा है। इस खेल में हर बार आदिवासियों को ही निशाना बनाया जा रहा है। उनके हक़ में लड़ने वालों को पूंजीवादी व्यवस्था खरीद लेती है या सरकार का प्रशासन उन्हें कुचल देता है। 15 अगस्त 2023 में देश दुनिया के लोग जहां आज़ादी के जश्न में डूबे थे वहीं, ग्राम भुमका एवं मूसामूड़ी के आदिवासी अपनी कब्जाई जमीन को हासिल करने के लिए जूझ रहे थे।
मेसर्स आर्यन पावर कंपनी ने आदिवासियों कि जमीन पर साज़िशन कब्ज़ा कर रखा है। किसानों ने बेशकीमती जमीनों की धोखाधड़ी के साथ अधिग्रहण के खिलाफ हल्ला बोल दिया है। जिले के मझौली तहसील अंतर्गत ग्राम भुमका, मूसामूड़ी एवं निधपुरी के प्रभावित किसानों ने 24 जुलाई को धरना-प्रदर्शन किया था।
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ग्राम भुमका, मूसामूड़ी एवं निधिपुरी के किसानों के बैंक खाते में 27 जून 2023 को बगैर किसानों के सहमति से मुआवजा की उनके बैंक खातों में डाल दी गयी। मेसर्स आर्यन पावर कंपनी के मालिक के साथ सांठ-गांठ कर किसानों के खाते में राशि जमा करवाने वाले अनुविभागीय दंडाधिकारी मझौली(भु-अर्जन अधिकारी)के खिलाफ आपराधिक प्रकरण कायम करने की मांग की गयी थी।
टोंको-रोंको-ठोंको क्रांतिकारी मोर्चा के संयोजक उमेश तिवारी ने बताया कि आदिवासियों का विस्थापन और पलायन सदियों से होता रहा है और ये आज भी जारी है। आदिवासियों के जंगलों, जमीनों, ग्रामों, संसाधनों पर कब्जा कर उन्हें दर-दर भटकने के लिए मजबूर करना सरकारों का पूंजीपति परस्त होना ही साबित करता है। ग्राम भुमका एवं मूसामूड़ी के आदिवासियों को उनकी जमीन व संसाधनों से भूमि अधिग्रहण के द्वारा हटाए जाने का षड्यंत्र किया गया है।
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हमारी संस्था ने जमीनों की लूट पर रोक लगाने, आदिवासियों की जमीन वापस किए जाने के लिए कई सालों से आंदोलन कर रही है। साल 2009 से लगातार अब तक आंदोलन और सरकार को आवेदन द्वारा सूचित किया गया लेकिन सरकार एवं उद्योगपति की साझेदारी के कारण स्थिति ज्यों की त्यों ही है। उमेश तिवारी ने विज्ञप्ति में बताया है कि ,ग्राम भुमका एवं मूसामूड़ी के आदिवासियों ने आर्यन पॉवर कंपनी के लिए अपनी अधिग्रहित भूमि को आजाद करने का ऐलॉन किया तथा अपनी अधिग्रहित भूमियों की पत्थलगढ़ी कर सीमा पर अपना अधिकार का बोर्ड लगा दिया है।
बहरहाल, 15 अगस्त को आजादी का उत्सव देश के नागरिकों द्वारा धूमधाम से मनाया जा रहा है। आज़ादी के अमृतमहोत्सव में सड़कों पर रैलियां निकाली जा रही हैं वहीं आदिवासी अपनी कब्जाई ज़मीनों को आज़ाद कराने की लड़ाई लड़ रहे हैं।