साइबर ठगी को रोकने में सरकारीतंत्र विफल, अब सुप्रीम कोर्ट लेगा निर्णय

17 अक्टूबर को देशभर में ऑनलाइन धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और CBI से जवाब मांगा था। कोर्ट ने कहा था कि ऐसे अपराध सिस्टम में जनता के भरोसे को कम करते हैं।

DrashtaNews

द्रष्टा न्यूज़ डेस्क /नई दिल्ली। देश में साइबर ठगी के दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं। सरकार की उदासीनता नागरिकों की जान माल की रक्षा करने में अब तक विफल रही है।डिजिटल अरेस्ट जैसी डकैती सरकार को चुनौती दे रही है। साइबर ठगी की बढ़ोतरी को रोकने में विफल सरकारीतंत्र पर अब सुप्रीम कोर्ट सुप्रीम कोर्ट निर्णय लेने जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि ऐसे अपराधों की गंभीरता और प्रसारण को देखते हुए इसकी जांच CBI को सौंपने का मन बना रहा है। इस कड़ी में अलग-अलग राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में दर्ज FIR की डिटेल्स मांगी हैं।

जस्टिस सूर्यकांत और जॉयमाल्य बागची की बेंच ने डिजिटल अरेस्ट मामलों पर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया है। इसमें साइबर अपराधियों द्वारा ठगी गईं बुजुर्ग महिला की शिकायत पर खुद से दर्ज किए गए मामलों को 3 नवंबर को सुनवाई के लिए लिस्ट किया।

पुलिस फोर्स में साइबर एक्सपर्ट्स के साथ अन्य रिसोर्स की जरूरत है?
सुप्रीम कोर्ट ने CBI की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों पर ध्यान दिया कि साइबर क्राइम और डिजिटल अरेस्ट के मामले म्यांमार और थाईलैंड जैसी विदेशी जगहों से शुरू हो रहे हैं। कोर्ट ने जांच एजेंसियों को इन मामलों की जांच के लिए एक प्लान के साथ आने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने कहा, “हम CBI जांच की प्रोग्रेस पर नजर रखेगी, जो भी ज़रूरी निर्देश होंगे, वो जारी करेंगे।” बेंच ने CBI से पूछा कि क्या उसे डिजिटल अरेस्ट मामलों की जांच के लिए पुलिस फोर्स में साइबर एक्सपर्ट्स के साथ अन्य रिसोर्स की जरूरत है? बीते 17 अक्टूबर को देशभर में ऑनलाइन धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और CBI से जवाब मांगा था। कोर्ट ने कहा था कि ऐसे अपराध सिस्टम में जनता के भरोसे को कम करते हैं।

पीड़ितों को न्याय दिलाने का उद्देश्य
सुप्रीम कोर्ट ने अंबाला के सीनियर सिटीजन कपल के डिजिटल अरेस्ट से जुड़े मामले का संज्ञान लिया था। जिसमें धोखेबाजों ने कोर्ट और जांच एजेंसियों के जाली आदेशों के आधार पर उनसे 1.05 करोड़ रुपये ऐंठ लिए थे। बेंच ने कहा कि यह कोई मामूली अपराध नहीं है जहां वह पुलिस से जांच में तेजी लाने और मामले को उसके लॉजिकल नतीजे तक पहुंचाने के लिए कह सकती थी, बल्कि यह एक ऐसा मामला है जहां आपराधिक गिरोह के पूरे दायरे का पता लगाने के लिए केंद्र और राज्य पुलिस के बीच कोऑर्डिनेटेड करने की जरूरत है।

साइबर अपराध में वृद्धि का ट्रेंड

2014-2018 – साइबर क्राइम कम थे क्योंकि डिजिटल ट्रांजेक्शन सीमित (UPI 2016 में लॉन्च)। NCRB डेटा से 9,622 केस (2014) से 20,000 (2018) तक वृद्धि। नुकसान न्यूनतम (₹18-35 करोड़/वर्ष), मुख्यतः बैंक फ्रॉड।

2019-2021 – महामारी ने वृद्धि तेज की। I4C डेटा से 2019 में 26,049 केस से 2021 में 4.5 लाख तक। फ्रॉड 75% केस; नुकसान ~₹350 करोड़ कुल।

2022-2023 – NCRB में 24% वार्षिक वृद्धि। 2022 में 65,893 केस, जिनमें 42,710 फ्रॉड। 2023 में I4C के 15 लाख+ केस; नुकसान 7,465 करोड़।

2024 – चरम वर्ष। 22 लाख+ फ्रॉड केस; नुकसान 22,845 करोड़ (206% YoY वृद्धि)। 36 लाख फाइनेंशियल इंसिडेंट; ट्रेडिंग स्कैम से 1,420 करोड़ नुकसान (जनवरी-अप्रैल)।

2025-प्रारंभिक डेटा से 12 लाख केस; CloudSEK रिपोर्ट के अनुसार पूर्ण वर्ष में 25 लाख शिकायतें और 20,000 करोड़ नुकसान। बैंकिंग सेक्टर 41% प्रभावित।

ठगी के प्रमुख प्रकार

इन्वेस्टमेंट/ट्रेडिंग स्कैम- 2024 में 20,000+ केस, 1,420 करोड़ नुकसान।
UPI/OTP फ्रॉड: 2023-24 में 85% केस।

डिजिटल अरेस्ट/सेक्सटॉर्शन-2024 में 4,599 केस, 120 करोड़ नुकसान।
डेटिंग ऐप्स: 1,725 केस, 13 करोड़ नुकसान (जनवरी-अप्रैल 2024)।

आम नागरिकों से अरबों करोड़ रुपये की ठगी

कारण- डिजिटल पेमेंट वृद्धि (2013 में ₹162 करोड़ से 2025 में ₹18 लाख करोड़/माह); जागरूकता की कमी; AI-ड्रिवन स्कैम।
प्रभाव- प्रति मिनट ₹1.5 लाख नुकसान; 1.4 मिलियन संदिग्धों का रजिस्टर। महिलाएं/बुजुर्ग अधिक प्रभावित।
सरकारी कदम- I4C का CFCFRMS (2021 से 10,000+ करोड़ रिकवर),

हेल्पलाइन 1930; साइबर वॉलंटियर्स (54,800) ।

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