नोएडा। नोएडा के सेक्टर 93ए में बने सुपरटेक के ट्विन टॉवर रविवार को ध्वस्त कर दिए गए। ट्विन टावर को गिराने के लिए 3500 किलोग्राम से अधिक विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया। कुतुब मीनार से ऊंचे बने टॉवर को गिराने के लिए करीब 20 करोड़ रुपए का खर्चा आया है। दोनों टॉवर की ऊंचाई 100 मीटर से थोड़ी अधिक थी। टावर को गिराने के लिए वाटरफॉल इम्प्लोजन तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। जिसकी वजह से यह बिल्डिंग जिस जगह बनी थी उसी जगह ताश के पत्तों की तरह धाराशाही हो गई।
विस्फोट के लिए लगाए गए बटन और बिल्डिंग को गिरने की पूरी प्रक्रिया करीब 9 सेकेंड में पूरी हो गई। वो अलग बात है कि पूरा इलाका धूल के गुबार में तब्दील हो गया था। नोएडा में सुपरटेक ट्विन टावर रविवार को 3,700 किलोग्राम विस्फोटक की मदद से लगभग नौ सेकेंड के भीतर जमींदोज हो गए, इस प्रकार नौ साल लंबी चली कानूनी लड़ाई अब समाप्त हो गई। 32 और 29 मंजिला ये टावर कुतुब मीनार से ऊंचे थे। टावरों को गिराने के लिए किए गए धमाके के साथ इमारत नीचे गिरते ही आसपास के इलाके में धूल का भारी गुबार छा गया और इस तरह आसपास का वातावरण प्रदूषित हो गया।
रियल्टी सेक्टर में बड़े पैमाने पर व्याप्त भ्रष्टाचार का आलम यह है कि दिल्ली NCR ही नहीं देश के अन्य शहरों में बनी सोसाइटियों के फ्लैट बायर्स की मुश्किलें खत्म नहीं हो रही हैं। अक्सर देखा जाता है कि बिल्डर से अपनी मांगों को लेकर फ्लैट बायर्स परेशान रहते हैं। जीवन की सारी जमा पूंजी लगाने के बाद अपने हक से वंचित फ्लैट बायर्स को मजबूरी में अदालतों के चक्कर लगाने पड़ते हैं।
होमबॉयर्स निकाय FPCE ने इस एक्शन को फ्लैट मालिकों के लिए एक बड़ी जीत करार दिया है। FPCE का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर हुई इस ध्वस्तीकरण की कार्रवाई ने बिल्डरों के साथ विकास प्राधिकरण के अधिकारियों के अहंकार को भी जमींदोज कर दिया है। हालांकि बहुत से सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब मिलने बाकी हैं।
होमबॉयर्स के हित में काम करने वाली संस्था फोरम फॉर पीपुल्स कलेक्टिव एफर्ट्स (Forum For People’s Collective Efforts, FPCE) ने कहा कि भ्रष्टाचार का प्रतीक बन चुके ट्विन टॉवर (Twin Tower) के निर्माण के इस मामले में विकास प्राधिकरण के अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए थी।
समाचार एजेंसी PTI की रिपोर्ट के मुताबिक रियल्टी सेक्टर की कंपनी सुपरटेक का कहना है कि उसने ट्विन टॉवर का निर्माण नोएडा विकास प्राधिकरण की ओर से मंजूर की गई बिल्डिंग योजना के तहत ही किया था। कंपनी की दलील है कि नोएडा विकास प्राधिकरण की स्कीम में किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया था। ऐसे में बड़ा सवाल यह कि कानून के लिहाज से जब यह कंस्ट्रक्शन अवैध था तो टावरों का निर्माण कैसे हो गया।
पूरे प्रकरण पर नजर डालें तो फ्लैट बायर्स आरोप लगाते रहे हैं कि विकास प्राधिकरण के अधिकारी भी इन इमारतों के निर्माण में उतने ही गुनहगार हैं जितना की बिल्डर कंपनी। FPCE के अध्यक्ष अभय उपाध्याय कहते हैं कि दुर्भाग्य से सुप्रीम कोर्ट बिल्डरों के इशारे पर नोएडा प्राधिकरण के अधिकारियों और भ्रष्टाचार में शामिल पर्दे के पीछे के किरदारों की पहचान करने और उनकी जवाबदेही सुनिश्चित करने में विफल रहा है।
FPCE के अध्यक्ष अभय उपाध्याय ने कहा कि बेहतर होता कि अदालत ने इस भ्रष्टाचार में शामिल सभी लोगों का पता लगाने के लिए सीबीआई जांच का आदेश दिया होता। वैसे यह निश्चित रूप से घर खरीदारों के लिए एक बड़ी जीत है। यह न केवल इमारत वरन बिल्डरों के उस सोच का विध्वंस है कि वे जैसा चाहें वैसा कर सकते हैं। यह प्रकरण बदलते बिल्डर-खरीदार समीकरण का भी संकेत है। यह कार्रवाई दिखाती है कि बाहुबल अब घर खरीदारों के हक की लड़ाई को नहीं कुचल सकती।