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पाप की कमाई का आधार चुनावी बांड की संवैधानिक वैधता मामले में आज होगा सुप्रीम फैसला

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सत्ता के विपक्ष में विचार रखने वाले चुनावी बांड को पाप की कमाई का आधार बताते है।चुनावी बांड की संवैधानिक वैधता मामले में आज फैसला सुनाएगा सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली। देश के भविष्य के लिए खतरा बने चुनावी बांड की वैधता पर आज सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाएगा। सत्ता के विपक्ष में विचार रखने वाले चुनावी बांड को पाप की कमाई का आधार बताते है। राजनीतिक दलों और गैर सरकारी संगठनों की ओर से चुनावी बांड की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर तीन दिनों तक मामले की सुनवाई के बाद 2 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाकर्ताओं के अनुसार, चुनावी बांड से जुड़ी गुमनामी राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करती है और मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है।

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याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि इस योजना में शेल कंपनियों के माध्यम से योगदान करने की अनुमति दी गई है. केंद्र सरकार ने इस योजना का बचाव यह सुनिश्चित करने की एक विधि के रूप में किया कि ‘सफेद’ धन का उपयोग उचित बैंकिंग चैनलों के माध्यम से राजनीतिक वित्तपोषण के लिए किया जाए.

सरकार ने आगे तर्क दिया कि दानदाताओं की पहचान गोपनीय रखना जरूरी है, ताकि उन्हें राजनीतिक दलों से किसी प्रतिशोध का सामना न करना पड़े. सुनवाई के दौरान, पीठ ने योजना के बारे में केंद्र सरकार से कई प्रासंगिक सवाल उठाए, उसकी “चयनात्मक गुमनामी” को चिह्नित किया और यह भी पूछा कि क्या वह पार्टियों के लिए रिश्वत को वैध बना रही है।

पीठ ने कहा कि सत्ताधारी दल के लिए दानदाताओं की पहचान जानना संभव है, जबकि विपक्षी दलों को ऐसी जानकारी नहीं मिल सकती।  ⁠पीठ ने इस शर्त को हटाने पर भी सवाल उठाया कि कंपनियां अपने शुद्ध लाभ का अधिकतम 7.5% ही राजनीतिक दलों को दान कर सकती हैं। सुनवाई समाप्त करते हुए, पीठ ने भारत के चुनाव आयोग को 30 सितंबर तक चुनावी बांड के माध्यम से सभी राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त योगदान का विवरण सीलबंद लिफाफे में अदालत को सौंपने का भी निर्देश दिया।

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संविधान पीठ ने तीन दिनों तक मामले की सुनवाई के बाद 2 नवंबर को मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था। याचिकाकर्ता -एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), डॉ. जया ठाकुर – वित्त अधिनियम 2017 द्वारा पेश किए गए संशोधनों को चुनौती देते हैं, जिसने चुनावी बांड योजना का मार्ग प्रशस्त किया।

इलेक्टोरल बांड यानि पाप की कमाई को कानूनी मान्यता

इलेक्टोरल बांड अर्थात् हिन्दी में ‘चुनावी बंधन’ पत्र के जरिये पाप की कमाई को राजनीतिक दल खुलेआम चंदा के रुप में लेते है। चुनावी चंदा की व्यवस्था में सुधार के नाम पर फाइनेंस एक्ट 2017 के द्वारा इलेक्टोरल बांड योजना मोदी सरकार द्वारा लाया गया था। जिसे तत्कालीन एनडीए की मोदी सरकार ने 2 जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था। देश की जहां अधिकतर योजनाएं कागजों पर सफल हो रही हैं वहीं राजनीतिक दलों के लिए ‘चुनावी बंधन’ पत्र नरेन्द्र मोदी सरकार की सबसे व्यवहारिक, निर्विवाद और एक सफल योजना साबित हो रही है।

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इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती हैं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भूनाकर रकम हासिल करते हैं। महज 1 प्रतिशत वोट पाने वाली पार्टियां भी इस योजना का लाभ उठा सकती हैं यदि उनका साठगांठ देशी-विदेशी पूंजीपतियों से हो तो। राजनीति के नाम पर हरामखोरी की दुकान चलाने वाले इलेक्टोरल बांड जैसी भ्रष्ट योजना का विरोध भला, वो किस प्रकार कर पाते ? इस योजना पर कुछ नेता बोलने की कोशिश किये लेकिन नैतिक बल के अभाव में उनकी सांसे टूट गयी।

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जनवरी 2018 में लिखा था, ‘इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना राजनीतिक फंडिंग की व्यवस्था में ‘साफ-सुथरा’ धन लाने और ‘पारदर्शिता’ बढ़ाने के लिए लाई गई है ‘ ।

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