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निर्वाचन आयोग चुनावी बॉन्ड मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करेगा – राजीव कुमार

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-EVM पर कोर्ट के फैसले का इंतजार

भुवनेश्वर (एजेंसी)। सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड से मिले चंदे के बारे में डेटा प्रकाशित करने का आदेश दिया है। मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने शनिवार को ओड़िसा दौरे के दौरान चुनावी बॉन्ड पर आयोग का रुख साफ किया।राजीव कुमार ने यहां कहा कि चुनाव आयोग चुनावी बॉन्ड योजना के संबंध में उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का पालन करेगा।

कुमार ने संवाददाताओं से कहा कि आयोग हमेशा सूचना प्रवाह और भागीदारी में पारदर्शिता के आधार पर काम करता है। उन्होंने कहा, ‘‘शीर्ष अदालत को दिए अपने हलफनामे में, आयोग ने कहा कि वह पारदर्शिता के पक्ष में है और जब आदेश जारी किया जाएगा, तो वह उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार कदम उठाएगा।”

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) पर सुप्रीम कोर्ट में लंबित चल रहे मामलों पर राजीव कुमार ने कहा कि कोर्ट के फैसलों का इंतजार है।  मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बड़ी संख्या में मामले थे, जिन पर पहले ही फैसला हो चुका है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग इन निर्देशों के आधार पर काम करता है। जो भी फैसला आएगा और बदलाव की जरूरत होगी, हम उसके अनुसार करेंगे।

उच्चतम न्यायालय ने आगामी लोकसभा चुनाव से पहले बृहस्पतिवार को एक ऐतिहासिक फैसले में चुनावी बॉण्ड योजना को ‘असंवैधानिक’ करार देते हुए निरस्त कर दिया तथा चंदा देने वालों, बॉण्ड के मूल्यों और उनके प्राप्तकर्ताओं की जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।

चुनावी बॉन्ड को कौन खरीद सकता है?

चुनावी बॉन्ड को भारत में कोई भी व्यक्तियों या कंपनी खरीद सकती है। भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की देशभर में फैली 29 शाखाओं को चुनावी बॉन्ड बेचने के लिए अधिकृत किया गया है। चुनावी बॉन्ड को प्रत्येक वर्ष जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में 10 दिनों के लिए बेचा जाता है। खरीदार की पहचान एसबीआई को छोड़कर सभी के लिए गुमनाम रहती है। बॉन्ड विशेष रूप से राजनीतिक दलों को धन के योगदान के लिए जारी किए जाते हैं। ये बॉन्ड एसबीआई द्वारा जारी किए जाते हैं और कम से कम 1,000 रुपये में बेचे जाते हैं जबकि अधिकतम सीमा नहीं है। इस योजना के तहत कॉर्पोरेट और यहां तक कि विदेशी संस्थाओं द्वारा दिए गए दान पर 100% कर छूट मिलती है

पीठ ने बताया था संवैधानिक अधिकारों का ‘उल्लंघन’

प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने 2018 की इस योजना को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं सूचना के संवैधानिक अधिकारों का ‘उल्लंघन’ बताया। शीर्ष अदालत केंद्र की इस दलील से सहमत नहीं थी कि इस योजना का उद्देश्य राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता लाना और काले धन पर अंकुश लगाना था।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का आदेश?

लोकसभा चुनाव से पहले आए इस फैसले में उच्चतम न्यायालय ने इस योजना को तत्काल बंद करने तथा इस योजना के लिए अधिकृत वित्तीय संस्थान ‘भारतीय स्टेट बैंक’ (SBI) को 12 अप्रैल, 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बॉण्ड का विस्तृत ब्योरा 6 मार्च तक निर्वाचन आयोग को सौंपने का भी निर्देश दिया।

इसमें खरीद की तारीख, खरीदार का नाम और वैल्यू शामिल हो। बैंक को यह भी निर्देश दिया गया है कि वह राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए हर एक इलेक्टोरल बॉन्ड की डिटेल तीन हफ्ते के भीतर उपलब्ध कराए. चुनाव आयोग को 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर विवरण प्रकाशित करने के लिए कहा गया है।

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