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चुनाव आयोग ने की इलेक्ट्रोरल बांड की जानकारी सार्वजनिक

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-SBI चेयरमैन ने कहा- हमने ECI को पेन ड्राइव में दो फाइलें दी हैं। एक फाइल में बॉन्ड खरीदने वालों की डिटेल्स हैं। इसमें बॉन्ड खरीदने की तारीख और रकम का जिक्र है। दूसरी फाइल में बॉन्ड इनकैश करने वाले राजनीतिक दलों की जानकारी है। लिफाफे में 2 PDF फाइल भी हैं। ये PDF फाइल पेन ड्राइव में भी रखी गई हैं, इन्हें खोलने के लिए जो पासवर्ड है, वो भी लिफाफे में दिया गया है।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार SBI ने चुनावी चंदे (इलेक्ट्रोरल बांड) की जानकारी 12 मार्च को चुनाव आयोग को दे दिया था। चुनाव आयोग को सुप्रीम कोर्ट से 15 मार्च को शाम 5 बजे से पहले विवरण प्रकाशित करने का निर्देश मिला था। चुनाव आयोग तय समय सीमा से एक दिन पहले गुरुवार 14 मार्च को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर दिया। वेबसाइट पर 763 पेज की दो लिस्ट अपलोड की गई है। एक लिस्ट में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी है। दूसरी में राजनीतिक दलों को मिले बॉन्ड की डिटेल है।

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ADR  व अन्य याचिकाकर्ताओं की सुप्रीम कोर्ट में चली कानूनी लड़ाई से प्राप्त परिणाम अब जनता के सामने है। चुनावी चंदे के इन आंकड़ों का मीडिया और के लोग अध्ययन करने में लग गए हैं।  इन आंकड़ों के अनुसार, 12 अप्रैल 2019 से जनवरी 2024 तक 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे गए हैं। राजनीतिक पार्टियों को सबसे ज्यादा चंदा देने वाली कंपनी फ्यूचर गेमिंग और होटल सर्विसेज पीआर है, जिसने 1,368 करोड़ के बॉन्ड खरीदे।

-दूसरे नंबर पर मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड है, जिसने 966 करोड़ रुपए का बॉन्ड खरीदा।

-तीसरे नंबर पर 410 करोड़ के बॉन्ड क्विक सप्लाई चेन प्राइवेट लिमिटेड

-वेदांता लिमिटेड 400 करोड़ के साथ चौथे नंबर पर

-हल्दिया एनर्जी लिमिटेड 377 करोड़ के साथ 5वें नंबर पर है।

-छठे नंबर पर भारती ग्रुप ​​​​​ने 247 करोड़

-7वें नंबर पर एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड ने 224 करोड़

-8वें नंबर पर वेस्टर्न यूपी पावर ट्रांसमिशन कंपनी लिमिटेड ने 220 करोड़

– 9वें नंबर पर केवेंटर फूडपार्क इंफ्रा लिमिटेड ने 195 करोड़ और 10वें नंबर पर मदनलाल लिमिटेड ने 185 करोड़ का दान दिया है। ​​​​​​​

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चुनाव आयोग ने SBI द्वारा दी गई चुनावी बॉन्ड की जानकारी को दो भागों में रखा है। चुनाव निकाय के आंकड़ों के मुताबिक, इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाली कंपनियों में ग्रासिम इंडस्ट्रीज, मेघा इंजीनियरिंग, पीरामल एंटरप्राइजेज, टोरेंट पावर, भारती एयरटेल, डीएलएफ कमर्शियल डेवलपर्स, वेदांता लिमिटेड, अपोलो टायर्स, लक्ष्मी मित्तल, एडलवाइस, पीवीआर, केवेंटर, सुला वाइन, वेलस्पन, और सन फार्मा शामिल हैं। खास बात ये है कि चुनावी बॉन्ड खरीदने वाली कंपनियों में अडानी, टाटा और अंबानी की कंपनियां शामिल नहीं हैं।

चुनावी बॉन्ड कैश कराने वाली पार्टियां

आंकड़ों के मुताबिक, चुनावी बॉन्ड कैश कराने वाली पार्टियों में बीजेपी, कांग्रेस, AIADMK, बीआरएस, शिवसेना, टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस, डीएमके, जेडीएस, एनसीपी, टीएमसी, जदयू, राजद, आप और समाजवादी पार्टी शामिल हैं।

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ECI को पेन ड्राइव में दो फाइलें

सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को 15 मार्च तक यह डेटा सार्वजनिक करने का आदेश दिया था। इससे पहले स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के चेयरमैन दिनेश कुमार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट फाइल की। इसमें बताया गया कि सुप्रीम कोर्ट के 11 मार्च के निर्देश के मुताबिक इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़ी उपलब्ध जानकारी चुनाव आयोग को दे दी गई है।

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SBI चेयरमैन ने कहा- हमने ECI को पेन ड्राइव में दो फाइलें दी हैं। एक फाइल में बॉन्ड खरीदने वालों की डिटेल्स हैं। इसमें बॉन्ड खरीदने की तारीख और रकम का जिक्र है। दूसरी फाइल में बॉन्ड इनकैश करने वाले राजनीतिक दलों की जानकारी है। लिफाफे में 2 PDF फाइल भी हैं। ये PDF फाइल पेन ड्राइव में भी रखी गई हैं, इन्हें खोलने के लिए जो पासवर्ड है, वो भी लिफाफे में दिया गया है। SBI के हलफनामे के अनुसार, एक अप्रैल 2019 से 15 फरवरी 2024 तक 22 हजार 217 इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदे गए। इनमें से 22,030 बॉन्ड का पैसा राजनीतिक पार्टियों ने कैश करा लिया है। पार्टियों ने 15 दिन की वैलिडिटी के भीतर 187 बॉन्ड को कैश नहीं किया, उसकी रकम प्रधानमंत्री राहत कोष में ट्रांसफर कर दी गई।

कोई भी भारतीय KYC देकर खरीद सकता था

सुप्रीम कोर्ट के तत्काल रोक लगाने से पहले चुनावी बॉन्ड SBI की चुनी हुई 29 ब्रांच में मिल रहे थे। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता था। बशर्ते बॉन्ड पाने वाली पार्टी इसके काबिल हो। खरीदने वाला हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता था। इसके लिए उसे बैंक को अपनी पूरी KYC देनी होती थी। जिस पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट किया जाता, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट मिलना अनिवार्य था।

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डोनर के बॉन्ड डोनेट करने के 15 दिन के अंदर, बॉन्ड पाने वाला राजनीतिक दल इसे चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवा लेता था। नियमानुसार कोई भी भारतीय इसे खरीद सकता है। बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है। इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट भी मिलती है। ये बॉन्ड जारी करने के बाद 15 दिन तक वैलिड रहते हैं।

चुनावी बॉन्ड स्कीम क्यों हुई विवादित

2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। वहीं, विरोध करने वालों का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं।

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बाद में योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई।

बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।

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क्यों रद्द हुई चुनावी बॉन्ड योजना ?

सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक और RTI के खिलाफ बताते हुए इसे रद्द कर दिया था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड जारी करने वाली SBI बैंक को अप्रैल 2019 से स्कीम जारी रहने तक पार्टियों को मिले चंदे की जानकारी चुनाव आयोग को देने का आदेश दिया था। कोर्ट ने चुनाव आयोग को यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करने के लिए कहा था।

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