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जनता की गाढ़ी कमाई से सांसद-विधायक को दोहरी-तिहरी पेंशन

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माननीय सांसदों और विधायकों की बातों में हर वक्त सेवा का राग रहता है, लेकिन पेंशन की मेवा से किसी अमीर नेता को भी ऐतराज नहीं है। भले ही उम्र भर सरकारी नौकरी वाले को पेंशन न मिले, लेकिन एक दिन के विधायक के लिए पेंशन तो पक्की है। आलम ये है कि कर्मचारियों को पेंशन के अधिकार लेकर संघर्ष करना पड़ता है, लेकिन नेताओं को उम्र भर आराम मिलता है। पूरे देश में सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन बहाली की लड़ाई लड़ रहे हैं, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की राज्य सरकारों ने इसको लेकर ऐलान भी कर दिया है, लेकिन केंद्र फिलहाल इस मूड में नहीं दिखता। हालांकि अपने पूर्व सांसदों पर खर्च करने के मामले में सरकारी तिजोरी में कभी पैसों की कमी आड़े नहीं आती।

सूचना के अधिकार के तहत वो बताते हैं कि कैसे 2020-21 में पूर्व सांसदों के पेंशन के रूप में लगभग 100 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ है। इससे किसी को ऐतराज नहीं है। इस फेहरिस्त में देश के कई नामी उद्योगपति, फिल्म कलाकार और करोड़पति शामिल हैं। 2679 पूर्व सांसदों के नाम की ये वो फेहरिस्त है, जिसमें देश के बड़े कारोबारी, वर्तमान में राज्यपाल, मंत्री, सिनेमा जगत के बड़े कलाकार सब हैं, इनको सिर्फ पेंशन के रूप में 2020-21 में 99.22 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ है।

आरटीआई कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौर का कहना है कि इसमें कुछ अरबपति कारोबारी हैं, अभिनेता हैं, नौकरशाह हैं, राजपरिवार से जुड़े लोग हैं कुछ नाम संपत्ति के शिखर पर बैठे हैं, लेकिन तलहटी का मोह नहीं छोड़ रहे हैं, लोगों से घरेलू गैस छोड़ने की अपील हो रही है, सीनियर सिटीजन को रेल किराये की रियायत बंद है, लेकिन पूर्व सांसद को फर्स्ट एसी, किसी के साथ यात्रा पर सेकेंड एसी की यात्रा फ्री है। सुरेंद्र कुमार ने 35 साल से ज्यादा सरकारी नौकरी की, अब 2234 रुपये हर महीने पेंशन मिलती है, राजेश कुमार वित्त विभाग से सेवानिवृत्त हैं।

सुरेंद्र कुमार ने कहा, ये बड़ी विसंगति है पार्षद, विधायक, सांसद एक दिन के लिये भी चुने जाएं तो पात्रता हो जाती है दूसरी तरफ सरकारी कर्मचारियों की पेंशन बहुत कम है। सेवानिवृत्त कर्मचारी राजेश कुमार दीक्षित का कहना है कि ये विधानसभा है, बढ़ाना-घटाना उनके हाथ में है वो अपने लिये कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन वहीं संसद में एक दिन भी बतौर सांसद जाते तो ताउम्र कम से कम पेंशन 25,000 रुपये की पेंशन मिलती है। मध्य प्रदेश विधानसभा के सेक्शन 6 A के तहत हर महीने 20 हजार रुपये की पेंशन पूर्व विधायक को मिल जाती है, फिर चाहे 5 साल का कार्यकाल पूरा किया हो या नहीं। पेंशन में हर साल 800 रुपये हर महीने के हिसाब से इजाफा भी होता है।

छत्तीसगढ़ में 35,000 रुपये और सबसे ज्यादा मणिपुर में 70,000 रुपये हर महीने मिलते हैं। पूर्व विधायक की मृत्यु की तारीख से उसके पति/पत्नी, या आश्रित को हर महीने 18 हजार रुपये की फैमिली पेंशन मिलती है। इसमें हर साल 500 रुपये जुड़ते हैं,हर महीने 15000 का मेडिकल भत्ता भी मिलता है।

ऐसे लगभग 600-650 विधायक हैं. हालांकि मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष को लगता है इसमें कुछ गलत नहीं है। स्पीकर गिरीश गौतम का कहना है कि यह सब कानून के तहत संसद-विधानसभा से हुआ होगा। बड़े-बड़े सिने जगत से लोकसभा, राज्यसभा सदस्य बनते हैं, उनको पेंशन नहीं लेना चाहिए, लेकिन ऐसे भी लोग हैं जिनको पेंशन का ही सहारा है। एक कानून बना दिया जाए तो ये ठीक नहीं है। कुछ सांसद और पूर्व सांसद भी इस मामले में एक राय रखते हैं।

सांसद ढाल सिंह बिसेन ने कहा, वहां जो निर्णय होता है वो सामूहिक होता है। ये पेंशन उतनी ज्यादा नहीं है, जितनी अपेक्षा करते हैं। इन्होंने जीवन के 40-50 साल राजनीतिक क्षेत्र में काम किया है तो उनको दोनों जगह की पेंशन मिलती है ये सत्य है। पूर्व सांसद गजेंद्र सिंह राजूखेड़ी के मुताबिक, एक बार व्यक्ति या सांसद बन जाते हैं तो लोगों की उम्मीदें बहुत बढ़ जाती हैं। नियमों के मुताबिक अगर कोई नेता पूर्व सांसद या विधायक की पेंशन ले रहा है और फिर से मंत्री बन जाता है तो उसे मंत्री पद के वेतन के साथ ही पेंशन भी मिलती है। अगर कोई विधायक बाद में सांसद बन जाए तो उसे दोनों की पेंशन मिलती है। 20 राज्य अपने पूर्व विधायकों को सांसद से ज्यादा पेंशन देते हैं। सदस्य की मौत के बाद पत्नी या आश्रितों को आधी पेंशन मिलती है। वैसे ये डबल पेंशन का मामला अब मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच में पहुंच गया है।

याचिकाकर्ता पूर्वा जैन का कहना है कि टेन्योर फिक्स किया जाए, क्योंकि एक दिन भी विधायक रहे तो पेंशन मिलती है, ये एक से ज्यादा पेंशन ले सकते हैं। उसके खिलाफ याचिका लगाई है उसमें मांगा है कि एक ही पेंशन लें. सांसदों के लिए भी याचिका लगाई है। सैलरी अलाउंस 8ए 1 और 3 को हटाने की मांग की है एक से ज्यादा पेंशन ना लें। अब ये भी जान लेते हैं कि जनसेवा की दुहाई देकर सार्वजनिक क्षेत्र में जीवन बिताने राजनीति में आने वाले लोग जब जनता के लिये नियम तय करते हैं तो सोच क्या रहती है।

केंद्र इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के अंतर्गत प्रति माह 200 रुपये की सहायता देता है। इतनी पेंशन राशि में तो रोज एक कप चाय भी नहीं आती है। विधवा पेंशन के 300 रुपये प्रतिमाह की राशि पाने की उम्र 40-79 वर्ष है। जबकि देश में लड़की के विवाह की आयु 18 वर्ष है। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय दिव्यांगता पेंशन में भी 18-79 उम्र के गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले हितग्राहियों को 300 रुपये प्रति माह पेंशन दी जाती है।

एक वाकया है कि 2010 में लालू यादव गुस्से में सदन से बाहर आ गए थे, उनकी मांग थी सांसदों को कम से कम 1 लाख रुपये की पेंशन मिले। वहीं पश्चिम बंगाल के स्पीकर हाशिम अब्दुल हलीम जैसे लोग भी थे, जिन्होंने पूछा था कि जब लोगों के पास खाने के लिए नहीं है, तब क्या जनता के प्रतिनिधि को राजा की तरह रहना चाहिए ? वैसे पेंशन की मांग पर हमें सर्वदलीय चुप्पी मिली, कई नेताओं ने कैमरे पर तो नहीं लेकिन अनौपचारिक बात में कहा ये वर्ग हित का मामला है। वैसे 2004 से सरकारी कर्मचारियों के लिए नई पेंशन प्रणाली है। इसमें बीमा प्रीमियम की तरह उन्हें अंशदान करना होता है, केंद्र इसे क्रांतिकारी मानता है। तो सवाल ये है कि इस क्रांति से माननीय क्यों अछूते रहें उन्हें भी नई पेंशन ही मिले।

सूचना के अधिकार के तहत रिपोर्ट

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