
मताधिकार नागरिकों का सतीत्व है। मताधिकार, सामाजिक जीवन की दशा और दिशा तय करने के लिए यह नागरिकों का राजनीतिक वीटो पावर है। नागरिकों के मताधिकार के बगैर लोकतांत्रिक सत्ता का कोई महत्व नहीं है।
सरकार की शक्तियां जन अधिकारों को कुचल रही हैं। संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक कर्तव्यों व अधिकारों से नागरिकों को रोका जा रहा है। कर्म प्रधान व्यक्तियों पर सरकारी तंत्र ने लगाम बांध रखी है। सरकारी स्कूलों को बंद कर देश का भविष्य निर्माण करने वाली पीढ़ी को खत्म करने की कोशिश की जा रही है।
धर्म-जाति, क्षेत्र-भाषा आधारित भेदभाव चरम पर है। बीजेपी के समर्थक किसी को काट रहे हैं तो किसी मस्जिद में घूसकर तोड़फोड़ कर रहे हैं। और यह सब होते हुए हिन्दु हृदय सम्राट नरेन्द्र मोदी, धृष्टराष्ट्र की तरह अनभिज्ञ होने का तमाशा कर रहे हैं। पूरी दुनिया जानती है कि इस घृणा को फैलाने वाले सत्ताधीश नरेन्द्र मोदी और बीजेपी है।
द्रष्टा सन् 2014 से इस व्यक्ति के बयानों और भाषणों को ध्यान से सुन रहा है। फूटपथिया भाषाशैली में भाषण देने वाले भारतीय जनता पार्टी के नरेन्द्र मोदी भारतीय नागरिकों को लुभाने में कामयाब हो गये थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने समर्थकों को संविधान और देश विरोधी काम करने के लिए स्वछंद छोड़ दिया। हिन्दुत्व और जय श्री राम के नाम पर नरेन्द्र मोदी के समर्थक देश में घृणा-द्वेश फैलाने, हिंसा भड़काने, खुलेआम कत्लेआम और मॉबलिंचिग का काम कर असहनशीलता के बिष वृक्ष को सींच रहे हैं।
अवश्य पढ़ें: नागरिकों को द्रष्टा करेगा भ्रम और भय से मुक्त
2019 के बाद नरेन्द्र मोदी और भारत के आम नागरिक दोनों ही इस बिष वृक्ष का फल खा रहे हैं। इस बिष वृक्ष से 2019 में नरेन्द्र मोदी को मिला दूसरी बार सत्ता का फल तो नागरिकों को मिला अन्धकारमय भविष्य। प्रधानमंत्री के पहले कार्यकाल में नरेन्द्र मोदी ने नागरिकों का विश्वास छीना, दूसरे कार्यकाल में स्वाभिमान छीना और अबकी बार तीसरे कार्यकाल में वे नागरिकों के संवैधानिक अधिकार ही छीनने की कोशिश कर रहे हैं।
नरेन्द्र मोदी नागरिक अधिकारों का दमन अवश्य करते-
स्पष्ट है कि यदि भारतीय जनता पार्टी की सीटें 2024 में 400 पार होतीं तो नरेन्द्र मोदी संविधान बदलकर नागरिक अधिकारों का दमन अवश्य करते। चुनाव के दौरान नरेन्द्र मोदी ने खुद को अजन्मा और नॉन बायोलाजिकल बताया है और वह अब भी अपनी इसी बात पर कायम हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी नरेन्द्र मोदी के इस बयान पर तंज कसते हुए कहा है कि कुछ लोग खुद को भगवान समझने लगे हैं।
विश्व खुशी रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग
15 अगस्त 2025 को देश 79 वां स्वतंत्रता दिवस मनायेगा। आजाद भारत के 78 साल बीत चुके है। लेकिन आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक समस्याएं घटने की बजाय बढ़ने लगी हैं। आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के वेलबीइंग रिसर्च सेंटर ने विश्व खुशी रिपोर्ट ( WHR ) 2025 में बताया कि लगातार 8 वें वर्ष सबसे खुशहाल देश फिनलैंड , उसके बाद डेनमार्क, आइसलैंड और स्वीडन है।
2025 की रिपोर्ट में भारत की रैंकिंग 118 वीं है जबकि 2024 में 126 वीं रैंकिंग थी। जबकि पड़ोसी देश पाकिस्तान 109 वें और नेपाल 92 वें रैंकिंग पर है। वेलबीइंग रिसर्च का आधार प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, सामाजिक समर्थन, स्वस्थ जीवन प्रत्याशा, स्वतंत्रता, उदारता और भ्रष्टाचार की धारणा है। विश्वास, सामाजिक संबंध, साझा भोजन और सामुदायिक दयालुता खुशी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जो अक्सर धन से भी अधिक महत्वपूर्ण होती है।
मताधिकार नागरिकों का सतीत्व है। मताधिकार, सामाजिक जीवन की दशा और दिशा तय करने के लिए यह नागरिकों का राजनीतिक वीटो पावर है। नागरिकों के मताधिकार के बगैर लोकतांत्रिक सत्ता का कोई महत्व नहीं है।
संविधान की धारा 13 में-
यह स्पष्ट किया गया है कि नागरिक के मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियां शून्यवत मानी जायेंगी। सर्वोच्च न्यायालय स्पष्ट कर चुका है कि नागरिक को वोट देने का अधिकार सिर्फ कानूनी ही नहीं, बल्कि संवैधानिक भी है। हमने लोकतांत्रिक गणराज्य स्थापित करने का भारतीय संविधान के उद्देषिका में संकल्प किया है। यह संविधान भारत के लोगों ने अंगीकृत और अधिनियमित कर आत्मार्पित किया है।
लोकतंत्र का आधार मुक्त, स्वतंत्र तथा न्यायसंगत चुनाव प्रक्रिया है। इस चुनाव प्रक्रिया की बुनियाद नागरिक का मताधिकार है। नागरिक इसी मताधिकार द्वारा लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में सहभागी होता है। इसलिए निष्पक्ष, न्यायोचित और मुक्त चुनाव -प्रणाली और इस प्रक्रिया में नागरिक का मताधिकार भी संविधान का बुनियादी अंग है। संविधान की धारा 19 अ के अनुसार भारतीय नागरिकों के मूल अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विपरीत संसद भी कानून नहीं बना सकती है। मूल अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार केवल न्यायालय को है।
अवश्य पढ़ें: ED सभी सीमाएं लांघ रहा है, ‘TASMAC’ के खिलाफ जांच पर रोक- सुप्रीम कोर्ट
ऐसा कानून जरूरी नहीं-
बिहार में चुनाव आयोग ने सघन मतदाता पुनरीक्षण (SIR) के दौरान 65 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूचि से हटा दिये। ADR के पूछने पर 9 अगस्त को चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दे कर कहा है कि वह कानूनी तरीके से अपना काम कर रहा है। ऐसा कानून जरूरी नहीं कि ड्राफ्ट लिस्ट से हटे नामों की लिस्ट सार्वजनिक की जाए।
चुनाव आयोग के पास केवल कानूनी अधिकार है जिससे नागरिकों के मूल संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की जा सके। लेकिन बीजेपी की सरकार में चुनाव आयोग पक्षपाती बनकर नागरिक अधिकारों को रौंद रहा है। लोकतंत्रात्मक गणराज्य में मताधिकार नागरिकों का सतीत्व है। और किसी भी राजनीतिक दल और राजनेता के बगैर अपने सतीत्व की रक्षा स्वयं करना ही नागरिकों के लिए श्रेयस्कर है।
नागरिक धर्म
भारतीय नागरिकों में न्याय की समझ अन्धकार की ओर भाग रही है। जिस तरह दूर दृष्टि दोष में पास की वस्तुए दिखाई नहीं देती उसी प्रकार ईर्ष्या, लोभ, लालच से भरे हुए असहनशील व्यक्ति के अक्ल को भी अपने आस-पास के शुभचिंतकों की बातें न सुनाई देती है और ना ही उनकी अच्छाई दिखाई देती है। राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक मदद के लिए दूसरों पर निर्भरता ने नागरिकों के बुद्धी और विवेक को कमजोर कर दिया है। व्यक्ति अपना नागरिक धर्म ही भूल चुका है।
7 अगस्त 2025 को नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी अपने नगरिक धर्म का पालन करते हुए चुनाव आयोग की चोरी को सबूतों के साथ पकड़ा है। इस चोरी को सैकड़ों पत्रकारों के बीच में वीडियो प्रेजेंटेशन के जरिये समझाया और उनके सवालों के जबाब दिया। पत्रकारिता के नाम पर दलाली कर रहे सत्ता के चाटुकारों ने राहुल गांधी के द्वारा चुनाव आयोग पर फेंके गये ‘एटम बम’ पर पानी फेंकने की बहुत कोशिश की। कुछ हिन्दी के अखबारों ने खबर को महत्वहीन कर छापा । भाजपा के प्रवक्ता टीवी पर अनाप-शनाप बातें कर नागरिक अधिकारों को कुचलने का कुचक्र रचा। लेकिन इस बार बीजेपी नागरिकों की आंखों में धूल झोंकने में कामयाब न हो सकी।
राहुल गांधी ने चुनाव आयोग से 5 सवाल किये हैं।
1. विपक्ष को डिजिटल वोटर लिस्ट क्यों नहीं मिल रही? क्या छिपा रहे हो?
2. सीसीटीवी और वीडियो सबूत मिटाए जा रहे हैं क्यों? किसके कहने पर?
3. फर्जी वोटिंग और वोटर लिस्ट में गड़बड़ी की गई- क्यों?
4. विपक्षी नेताओं को धमकाना, डराना – क्यों?
5. साफ-साफ बताओ- क्या चुनाव आयोग अब बीजेपी का एजेंट बन चुका है?
मैं द्रष्टा विश्वास से कह सकता हूं कि यह न केवल राहुल गांधी के प्रश्न है बल्कि आम नागरिकों के भी प्रश्न हैं। चुनाव आयोग के अधिकारी यदि संविधान को मानते हैं तो, इन प्रश्नों का उसे स्पष्ट जबाब देना ही होगा। अन्यथा राहुल गांधी ने कहा है कि ” मैं इलेक्शन कमीशन और उनके अधिकारियों को साफ कह रहा हूं आप जो कर रहे हो गलत कर रहे हो यह राजद्रोह है यह मत भूलिए, टाईम आयेगा, हम आपको पकड़ेंगे,बचने वाले नहीं हो, यह महत्वपूर्ण है कि हम वोट चोरियों को सामने लायेंगे “।
अवश्य पढ़ें: NDA के खिलाफ INDIA का संकल्प
300 सांसदों का ऐतिहासिक मार्च
11 अगस्त 2025 को ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ नारे के साथ चुनाव आयोग के खिलाफ 300 सांसदों ने संसद से चुनाव कार्यालय तक ऐतिहासिक मार्च किया। आजाद भारत में चुनाव आयोग के खिलाफ सांसदों का ऐसा मार्च इससे पहले कभी नहीं हुआ था। मार्च के दौरान अखिलेश ने बैरिकेडिंग फांदकर आगे बढ़ने की कोशिश की। जब सांसदों को आगे नहीं जाने दिया गया तो वे जमीन पर बैठ गए। प्रियंका, डिंपल समेत कई सांसद “वोट चोर गद्दी छोड़’ के नारे लगाते दिखे।
अवश्य पढ़ें : कोरोना की आड़ में किसानों के साथ सरकारी तंत्र की साजिश
यह घटना लोकतंत्र पर हावी हो रही नौकरषाही का ताजा उदाहरण है। विपक्षी नेताओं कहना है कि मोदी सरकार सत्ता में बने रहने के लिए विपक्ष को निशाना बनाने और राजनीतिक दबाव बनाने के लिए जांच एजेंसियों जैसे इनकम टैक्स, सीबीआई और ईडी का दुरुपयोग कर रही है।
-असंवैधानिक इलेक्ट्रोरल बांड कानून बनाकर अवैध धन उगाही करना।
-पहलगाम में आतंकियों द्वारा 22 नागरिकों की हत्या की जिम्मेदारी न लेना।
-सुरक्षा में लापरवाही, आतंकियों को न पकड़ पाना।
– अमेरिकी राष्ट्रपति के कहने पर ऑपरेशन सिंदूर को बीच में रोक देना।
– डोकलाम में चीन से विवाद और भारत की जमीन कब्जे पर स्पष्ट जबाब न देना।
– मणिपुर में 2 सालों से हो रही हिंसा को न रोक पाना।
– कई किसानों के मरने के बाद कृषि बिल-2020 को वापस लेना।
– गौतम अडानी को अनैतिक तरीके से व्यापारिक लाभ पहुंचाना।
– मुकेश अम्बानी की रिलायंस की तेल कम्पनी को अनैतिक लाभ पहुंचाना।
-सरकारी कम्पनियों को एक साजिस के तहत प्राईवेट कम्पनियों के हाथों में देना।
इस प्रकार के अनगिनत नागरिक विरोधी असंवैधानिक कार्य करने के लिए बीजेपी ने जांच एजेंसियों की सहायता से विपक्षी नेताओं को मजबूर कर सत्ता को मजबूत हाथों से पकड़ रखा है। भारतीय लोकतंत्र खतरे में आ चुका है। राहुल गांधी का एटम बम केवल लोगों को जागरुक करेगा। विपक्षी दलों और आम नागरिकों को अब ‘ जेल भरो आन्दोलन’ की शुरुआत करनी पड़ेगी।
अवश्य पढ़ें:
किसानों का स्वर्ग में धरना, देवराज को हटाने की मांग
सांसदों की औक़ात में नहीं था कृषि विधेयक को रोकना
किसान क्रांति: पंचायत के संवैधानिक अधिकारों का दमन करती सरकारें
किसान क्रांति: आपको नागरिक से उपभोक्ता बनाने का षड्यंत्र
बाटी-चोखा के बीच अखिल भारतीय पंचायत परिषद् में कृषि बिल और पंचायत की स्वायत्तता पर चर्चा
पूँजीवादी नौकरशाह और कारपोरेट, क्या प्रधानमंत्री की नहीं सुनते?
किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 2
गॉव आत्मनिर्भर होते तो, प्रधानमंत्री को माफी नहीं मांगनी पड़ती
कोरोना की आड़ में किसानों के साथ सरकारी तंत्र की साजिश
देश की अधिकांश आबादी आर्थिक गुलामी की ओर
‘आर्थिक मंदी के दौरान बीजेपी की दिन दुगनी और कांग्रेस की रात चौगुनी आमदनी’