नई दिल्ली। गहलोत-पायलट के बीच तकरार जारी है। राजस्थान के सियासी बवंडर में कांग्रेस फंस चुकी है। अशोक गहलोत कैंप के मंत्री शांति धारीवाल ने सचिन पायलट और प्रभारी अजय माकन को गद्दार कहा है। धारीवाल के घर पर विधायकों की हुई बैठक को अनुशासनहीन कहे जाने पर जवाब देते हुए धारीवाल ने कहा कि वह 50 साल से कांग्रेस में है, लेकिन उन पर कभी कोई आरोप नहीं लगा है। शांति ने कहा कि माकन पायलट के पक्ष में विधायकों को एकजुट कर रहे थे, जोकि गद्दार है।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के राजस्थान संकट में मध्यस्थता करने की संभावना है। सूत्रों ने बताया कि कमलनाथ दिल्ली में पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी से मुलाकात करेंगे। अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए नामांकन के साथ ही मुख्यमंत्री पद पर भी बने रहे। हालांकि इस संभावना को राहुल गांधी ने “एक आदमी एक पद” का हवाला देते हुए खत्म कर दिया।
CM अशोक गहलोत किसी भी हाल में सचिन पायलट को CM की कुर्सी सौंपने के मूड में नहीं है। लेकिन पार्टी शीर्ष नेतृत्व पायलट के साथ खड़ी है। यही कारण है कि अब राजस्थान में गहलोत बनाम आलाकमान के बीच तकरार की स्थिति बन गई है। गहलोत समर्थक विधायकों ने स्पष्ट कर दिया है कि वो सचिन पायलट को किसी भी सूरत में स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। साथ ही सूबे में अगले सीएम के तौर पर कुछ नामों की सूची आलाकमान को भेजी गई है, जिसमें सीपी जोशी, गोविंद सिंह डोटासरा, रघु शर्मा, हरीश चौधरी और भंवर सिंह भाटी का नाम शामिल है।
केंद्रीय पर्यवेक्षक मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन को जयपुर भेजा गया, जिन्हें विधायकों के साथ आमने-सामने बातचीत कर संकट का हल निकालने का काम सौंपा गया। दिल्ली जाने से पहले CM अशोक गहलोत ने दोनों पर्यवेक्षकों से एक निजी होटल में मुलाकात की। चर्चा है कि गहलोत ने साफ कह दिया है कि उन्हें पायलट मंजूर नहीं है। गहलोत ने अजय माकन को बतौर CM के लिए 5 नामों की सिफारिश की है। कांग्रेस पर्यवेक्षक सोनिया गांधी को राजस्थान की घटनाक्रम से अवगत कराएंगे। विधायकों से बात कर दोनों आज दिल्ली लौट आए। असंतुष्टों ने केंद्रीय नेताओं से बात करने से इनकार कर दिया, वहीं अधिकांश विधायक नवरात्रा के लिए अपने जिलों में चले गए हैं।
अब पूरे देश की राजनीति के केंद्र में राजस्थान आ खड़ा हुआ है। सीएम गहलोत का करियर दांव पर है। आपको बता दें इससे पहले 2020 में सचिन पायलट की बगावत के बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कुर्सी खतरे में आई थी। उस बगावत से तो गहलोत अपनी राजनीतिक कुशलता से बच गए थे, लेकिन वर्तमान में गहलोत और पायलट के बीच पैदा हुई कड़वाहट ने अब यह साफ कर दिया है कि CM गहलोत, सचिन पायलट को रोकने के लिए किसी भी हद से गुजरने को तैयार हैं। यहां तक कि गहलोत ने अपने 50 सालों के राजनीतिक करियर को भी दांव पर लगा दिया है। ऐसे में भले ही इस कदम से CM गहलोत को अपनी राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी ही क्यों न गंवानी पड़े, वो हर कुर्बानी तक को तैयार नजर आ रहे हैं।
गहलोत कैंप के विधायकों का कहना है कि CM गहलोत को पार्टी अध्यक्ष नहीं बनना चाहिए। उल्लेखनीय है कि CM सीएम गहलोत भी पार्टी अध्यक्ष नहीं बनना चाहते थे। लेकिन कांग्रेस आलाकमान के दबाव में तैयार हुए। वहीं, सवाल यह भी है कि अगर अशोक गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं बनते हैं तो फिर उन्हें किस आधार पर मुख्यमंत्री पद से हटने को कहा जाएगा। CM गहलोत के साथ 70 से अधिक विधायक है। ऐसे में पार्टी आलाकमान सचिन पायलट को सीएम बनाता भी है तो उनके पास बहुमत नहीं होगा। मतलब साफ है कांग्रेस की सरकार अल्पमत में आ जाएगी।