-सत्यपाल मलिक के आरोपों के आधार पर CBI एक साल पहले ही दो FIR दर्ज कर चुकी है
-सत्यपाल मलिक ने राम माधव, अंबानी और हसीब द्राबू का नाम लेते हुए दोनों घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया था।
नई दिल्ली। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान इन दिनों काफी चर्चा में है। वे एक बार फिर से केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर के हाइडल पास प्रोजेक्ट और इंश्योरेंस स्कीम घोटाले में आरोपितों की पहचान और उनके खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान को CBI काफी अहम मान रही है। CBI ने मलिक को साफ कर दिया कि उनसे सिर्फ गवाह के तौर पर पूछताछ होगी और उनके द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर केस की जांच को आगे बढ़ाया जाएगा।
मलिक ने इन दोनों प्रोजेक्ट में 300 करोड़ रुपये की रिश्वत का आरोप लगाया है, लेकिन इस मामले में जांच एजेंसी को कोई ठोस सबूत मुहैया नहीं कराया है। जबकि राज्यपाल रहते हुए उन्होंने खुद दोनों प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया था। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पिछले दिनों मलिक कुछ यूट्यूब चैनल को दिये साक्षात्कार में राम माधव अंबानी और हसीब द्राबू नाम लेते हुए दोनों घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया था।
लेकिन इससे पहले सीबीआइ की पूछताछ में उन्होंने इनका नाम नहीं लिया था। इसके अलावा इन तीनों के घोटाले में सीधी या बिचौलिये के मार्फत संलिप्तता का कोई सबूत नहीं दिया था। खुद मलिक ने यूट्यूब चैनल पर स्वीकार किया कि उन्हें किसी ने 300 करोड़ का रिश्वत का आफर नहीं किया था और न ही इस सिलसिले में उनसे किसी ने संपर्क किया था। मलिक ने रिलायंस इंश्योरेंस की प्रस्तावित स्कीम के रद्द करने के अगले दिन राम माधव के राजभवन में आकर मिलने का जिक्र किया है। लेकिन साथ ही यह भी जोड़ दिया है कि राम माधव ने उनसे सिर्फ इश्योरेंस स्कीम के संबंध में लिये गए फैसले की जानकारी ही मांगी थी।
राम माधव इस मामले में मलिक को कानूनी नोटिस भेज चुके हैं। CBI के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मलिक के सहयोग के बिना दोनों मामलों में आरोपियों की पहचान और उनके खिलाफ कार्रवाई मुश्किल है। CBI मलिक से जानना चाहती है कि दोनों प्रोजेक्ट में 150-150 करोड़ रुपये की रिश्वत की जानकारी उन्हें कैसे मिली। जिस भी व्यक्ति से उन्हें जानकारी मिली होगी, उसे रिश्वत ऑफर करने वालों के बारे में भी जानकारी होगी। इसी तरह से एक-एक कड़ी जोड़ते हुए घोटाले की साजिश से पर्दाफाश किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि मलिक ने CBI को पूछताछ में सहयोग का वायदा किया है, लेकिन घोटाले से जुड़े लोगों के बारे में कितनी जानकारी देते हैं, यह संदेह के घेरे में है।
मलिक का दावा, 300 करोड़ की रिश्वत की पेशकश मिली
23 अगस्त 2018 से 30 अक्तूबर 2019 तक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने सनसनीखेज दावा किया था कि उन्हें राज्य के दो बडे़ प्रोजेक्ट को मंजूरी देने के लिए 300 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी। पहला प्रोजेक्ट अंबानी समूह से जुड़ा था। उनका दावा था कि दूसरा मामला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े व्यक्ति का है जो महबूबा मुफ्ती की पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार में मंत्री था। उन्होंने कहा था कि रिश्वत की पेशकश के बाद उन्होंने दोनों प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया और मामले की जांच करने को कहा।
सत्यपाल मलिक के आरोपों के आधार पर CBI एक साल पहले ही दो FIR दर्ज कर चुकी है, लेकिन सबूतों के अभाव में उनकी जांच आगे नहीं बढ़ पा रही है। CBI के उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार हाईडल पास प्रोजेक्ट घोटाले के आरोपों पर सत्यपाल मलिक से पहले ही पूछताछ हो चुकी है और मामले से जुड़े तत्कालीन वरिष्ठ अधिकारियों के ठिकानों पर छापे भी मारे गए थे। लेकिन घोटाले से जुड़े कोई ठोस सबूत नहीं मिल सके हैं। यही स्थिति इंश्योरेंस स्कीम घोटाले का भी है।
प्राथमिकी में रिलायंस जनरल इंश्योरेंस और त्रिनिटी री-इंश्योरेंस बुकर्स लिमिटेड, आईएएस अधिकारी और पावर प्रोजेक्ट के पूर्व चेयरमैन नवीन कुमार चौधरी, प्रबंध निदेशक एम एस बाबू और दो निदेशक एम के मित्तल व अरुण मिश्रा के नाम हैं। आरोप है कि बोर्ड मीटिंग में इन अधिकारियों ने मिलीभगत कर ई-टेंडर समेत कई नियमों को अनदेखा कर ठेका पटेल इंजीनियरिंग को दे दिया। इन सभी के आवासों को टीम ने खंगाला।
CBI ने जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक के करोड़ों रुपये की रिश्वत की पेशकश के आरोपों के संबंध में दर्ज दो प्राथमिकी के मामले में वीरवार को छह राज्यों में 14 ठिकानों पर छापेमारी की। इनमें जम्मू, श्रीनगर, दिल्ली, मुंबई, नोएडा, केरल के त्रिवेंद्रम, बिहार के दरभंगा में कार्रवाई की गई। जम्मू में आईएएस अधिकारी नवीन चौधरी (प्रधान सचिव, कृषि उत्पादन और किसान कल्याण) के गांधीनगर स्थित सरकारी आवास पर दबिश दी गई। उनसे कई घंटे पूछताछ की गई और कई दस्तावेज भी बरामद किए गए हैं।
तत्कालीन प्रदेश सरकार ने घटाई थी परियोजना की राशि
यह आरोप लगाया गया कि विस्तृत परियोजना रिपोर्ट को 13 जून, 2016 को अधिकारियों द्वारा 4,640.88 करोड़ की लागत से अनुमोदित किया गया था, जिसे बाद में अनुमति के साथ 4,708.60 करोड़ तक संशोधित किया गया था। तत्कालीन जम्मू-कश्मीर सरकार ने छूट पर विचार करने के बाद राशि को घटाकर 4,287.59 करोड़ कर दिया था। इसमें से 1,166.31 करोड़ रुपये भूमि अधिग्रहण, भवन, संचार, स्थापना और अन्य संबंधित कार्यों के लिए थे। बाकी के संबंध में, 3,121.28 करोड़ की स्वीकृत लागत और 2,994.89 करोड़ की वास्तविक लागत के बीच का अंतर 126.39 करोड़ था। इस प्रकार प्रदान की गई लागत स्वीकृत लागत से चार फीसदी कम थी। इसलिए प्रदान की गई लागत और स्वीकृत लागत के बीच अंतर 151.95 करोड़ का है, जो कि 3.5 फीसदी कम है। यह भी आरोप है कि मुख्य ठेकेदार जिसे परियोजना का 75 फीसदी प्रदान किया गया था, उसने स्वीकृत 7.45 फीसदी की लागत पर अनुबंध लिया। लागत में समग्र कमी इसलिए आई क्योंकि अन्य दो ठेकेदारों ने स्वीकृत लागत से काफी कम कीमत उद्धृत की थी।