नई दिल्ली। सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का एलान कर दिया है। यह जनगणना मूल जनगणना के साथ ही कराई जाएगी। कैबिनेट की बैठक के बाद मंत्रिमंडल के फैसलों पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, ‘राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने आज फैसला किया है कि जाति गणना को आगामी जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए।’
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए कायराना नरसंहार के बाद केंद्र सरकार एक्शन मोड में है। इसी कड़ी में केंद्रीय कैबिनेट की एक अहम बैठक बुधवार को नई दिल्ली में हुई। कैबिनेट बैठक में पहलगाम हमले में जान गंवाने वालों की याद में दो मिनट का मौन रखा गया। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई बैठक में बड़े फैसले लिए गए। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल की यह पहली बैठक है।
केंद्र सरकार कराएगी जाति जनगणना
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने मीडिया को कैबिनेट मीटिंग में हुए फैसलों की जानकारी दी। केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसलों के बारे में जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCPA) ने आज फैसला किया है कि जाति गणना को आगामी जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए। अश्विनी वैष्णव ने कहा कि कांग्रेस की सरकारों ने जाति जनगणना का विरोध किया है, 1947 के बाद से जाति जनगणना नहीं हुई है। कांग्रेस ने जाति जनगणना की जगह जाति सर्वे कराया, यूपीए सरकार में कई राज्यों ने राजनीतिक दृष्टि से जाति सर्वे किया है। जाति की जनगणना मूल जनगणना में ही सम्मिलित होना चाहिए। पीएम मोदी के नेतृत्व में राजनीतिक मामलों की कैबिनेट समिति ने जाति की जनगणना को आने वाले जनगणना में सम्मिलित करने का फैसला लिया है।
‘कांग्रेस सरकारों ने हमेशा जाति जनगणना का विरोध किया’
राष्ट्रीय जनगणना में जाति जनगणना को शामिल करने पर केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, ‘कांग्रेस सरकारों ने हमेशा जाति जनगणना का विरोध किया है। 2010 में दिवंगत डॉ. मनमोहन सिंह ने कहा था कि जाति जनगणना के मामले पर कैबिनेट में विचार किया जाना चाहिए। इस विषय पर विचार करने के लिए मंत्रियों का एक समूह बनाया गया था। अधिकांश राजनीतिक दलों ने जाति जनगणना की सिफारिश की है। इसके बावजूद, कांग्रेस सरकार ने जाति जनगणना की जगह जाति सर्वे कराने का फैसला किया। यह अच्छी तरह से समझा जा सकता है कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने जाति जनगणना को केवल एक राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है। कुछ राज्यों ने जातियों की गणना के लिए सर्वेक्षण किए हैं। जबकि कुछ राज्यों ने यह अच्छा किया है, कुछ अन्य ने केवल राजनीतिक दृष्टिकोण से गैर-पारदर्शी तरीके से ऐसे सर्वेक्षण किए हैं। ऐसे सर्वेक्षणों ने समाज में संदेह पैदा किया है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि राजनीति से हमारा सामाजिक ताना-बाना खराब न हो, सर्वेक्षण के बजाय जाति गणना को जनगणना में शामिल किया जाना चाहिए।’
प्रत्येक 10 साल के अंतराल पर होती है जनगणना
जनगणना 1951 से प्रत्येक 10 साल के अंतराल पर की जाती थी, लेकिन 2021 में कोरोना महामारी के कारण जनगणना टल गई थी। राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को भी अपडेट करने का काम बाकी है। अभी तक जनगणना की नई तारीख का आधिकारिक तौर पर एलान भी नहीं किया गया है। सूत्रों के मुताबिक, जनगणना के आंकड़े 2026 में जारी किए जाएंगे। इससे भविष्य में जनगणना का चक्र बदल जाएगा। जैसे 2025-2035 और फिर 2035 से 2045।
क्यों अहम है जनगणना?
जनगणना के आंकड़े सरकार के लिए नीति बनाने और उन पर अमल करने के साथ-साथ देश के संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए बेहद अहम होते हैं। इससे न सिर्फ जनसंख्या बल्कि जनसांख्यिकी, आर्थिक स्थिति कई अहम पहलुओं का पता चलता है। विपक्षी कांग्रेस समेत तमाम सियासी पार्टियां जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं, ताकि देश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की कुल संख्या का पता चल सके।
पहली जनगणना 1872 और आखिरी 2011 में हुई थी
भारत में हर दस साल में जनगणना होती है। पहली जनगणना 1872 में हुई थी। 1947 में आजादी मिलने के बाद पहली जनगणना 1951 में हुई थी और आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी। आंकड़ों के मुताबिक, 2011 में भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ थी, जबकि लिंगानुपात 940 महिलाएं प्रति 1000 पुरुष और साक्षरता दर 74.04 फीसदी था।
मेघालय और असम को जोड़ने वाली बड़ी परियोजना को मंजूरी
केंद्र सरकार ने मेघालय और असम को जोड़ने वाली एक बड़ी हाइवे परियोजना को मंजूरी दे दी है। इस परियोजना के तहत शिलांग (मेघालय) से सिलचर (असम) के बीच एक नया हाइवे कॉरिडोर बनाया जाएगा। यह परियोजना उत्तर पूर्व भारत के लिए एक प्रमुख संपर्क मार्ग (कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट) होगी।
परियोजना के मुख्य बिंदु:
सिलचर मिजोरम, त्रिपुरा, मणिपुर और असम के बराक घाटी क्षेत्र को जोड़ने का प्रवेश बिंदु है।
गुवाहाटी-शिलांग-सिलचर मार्ग सबसे छोटा और यातायात के लिए पसंदीदा रास्ता है।
NH-6 को इस परियोजना के माध्यम से पूरे उत्तर-पूर्व के लिए प्रमुख संपर्क मार्ग बनाया जाएगा।
परियोजना का विवरण:
लंबाई: 166.8 किलोमीटर
लागत: ₹22,864 करोड़
ब्रिज और ढांचे
19 बड़े पुल
153 छोटे पुल
326 कल्वर्ट
22 अंडरपास
26 ओवरपास
34 वायाडक्ट (9 किलोमीटर)
निर्माण मोड: हाइब्रिड एन्युटी मोड
समझौता अवधि: 3 साल का निर्माण काल + 15 साल का संचालन काल
कॉरिडोर प्रकार: 4-लेन हाई स्पीड कॉरिडोर
उत्तर पूर्व भारत की कनेक्टिविटी होगी मजबूत
यह परियोजना उत्तर पूर्व भारत की कनेक्टिविटी को मजबूत करने और आर्थिक विकास को गति देने में अहम भूमिका निभाएगी।
गन्ना किसानों को राहत
केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में गन्ना किसानों को राहत देने का भी फैसला हुआ। केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसलों पर बोलते हुए केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, ‘चीनी सीजन 2025-26 के लिए गन्ने का उचित और लाभकारी मूल्य 355 रुपये प्रति क्विंटल तय किया गया है। यह बेंचमार्क मूल्य है, जिसके नीचे गन्ना नहीं खरीदा जा सकता है।’ यह कदम गन्ना किसानों को उचित लाभ और चीनी उद्योग में स्थायित्व प्रदान करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण निर्णय है।
CACP (कृषि लागत एवं मूल्य आयोग) ने गन्ने के लिए ₹355 प्रति क्विंटल FRP (उचित एवं लाभकारी मूल्य) की सिफारिश की है, जो 10.25% रिकवरी स्तर के आधार पर है।
रिकवरी दर में हर 0.1% की वृद्धि पर FRP में ₹3.46 प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी होगी।
रिकवरी दर में हर 0.1% की कमी पर FRP में ₹3.46 प्रति क्विंटल की कटौती होगी, लेकिन यह कटौती 9.5% रिकवरी स्तर तक ही सीमित रहेगी।
यदि रिकवरी 9.5% या उससे कम होती है, तो FRP ₹329.05 प्रति क्विंटल होगा।
प्रस्तावित FRP, अखिल भारतीय औसत उत्पादन लागत ₹173 प्रति क्विंटल के मुकाबले 105.2% अधिक है।
2023-24 में किसानों को ₹1,11,701 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया। इस अवधि में कुल 3,190 लाख मीट्रिक टन गन्ने की पिराई हुई, और चीनी उत्पादन 320 लाख मीट्रिक टन रहा।