-21% तक बढ़ गया अस्थमा का खतरा,पीएम 2.5 जैसे प्रदूषक तत्वों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से अस्थमा के मामलों में वृद्धि हुई है, जिसके कारण विश्व स्तर पर 1.20 लाख अतिरिक्त मौतें हुई हैं।
नई दिल्ली (एजेंसी)। उत्तर भारत वायु प्रदुषण से जूझ रहा है। वायु प्रदूषण के बढ़ते खतरे के बीच, एक व्यापक वैश्विक अध्ययन ने अस्थमा से होने वाली मौतों में भारी बढ़ोतरी का खुलासा किया है। 68 अध्ययनों की समीक्षा के आधार पर, शोधकर्ताओं ने पाया कि पीएम 2.5 जैसे प्रदूषक तत्वों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से अस्थमा के मामलों में वृद्धि हुई है, जिसके कारण विश्व स्तर पर 1.20 लाख अतिरिक्त मौतें हुई हैं।
भारत, चीन और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में वयस्कों में अस्थमा से होने वाली मौतों की संख्या ज्यादा है। विशेषज्ञों का मानना है कि वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए, नीति निर्माताओं को तत्काल प्रभावी नीतियां लागू करनी चाहिए।
तत्काल सख्त कानून बनाने की जरूरत
शोधार्थियों के मुताबिक साल 2019 में विश्व में अस्थमा के एक तिहाई मामलों की वजह प्रदूषित हवा में मौजूद पार्टीकुलेटेड मैटर 2.5 (पीएम 2.5) के संपर्क में लंबे समय तक रहना था। यह अध्ययन 2019 से 2023 के बीच 22 देशों में किए गए थे जिसमें भारत और चीन के अलावा दक्षिण एशिया के कई देश शामिल हैं। विशेषज्ञों ने निष्कर्षों के आधार पर आगाह करते हुए कहा है कि नीति निर्माताओं को वायु प्रदूषण के प्रभावों से लड़ने के लिए तत्काल सख्त कानून बनाने की जरूरत है।
इन अध्ययनों से पता चलता है कि हवा में प्रदूषण के छोटे कण (पीएम 2.5) जितने ज्यादा होंगे, बड़े बच्चों और बड़ों में अस्थमा होने की संभावना उतनी ही ज्यादा बढ़ जाएगी। हर 10 माइक्रोग्राम क्यूबिक मीटर की बढ़ोतरी से अस्थमा होने का खतरा 21% बढ़ जाता है। अस्थमा होने पर लोगों को सांस लेने में तकलीफ, खांसी और सीने में जकड़न जैसी समस्याएं होती हैं जिससे उनकी जिंदगी बहुत मुश्किल हो जाती है।
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बच्चों के लिए खतरा ज्यादा
इन अध्ययनों के विश्लेषण में पीएम 2.5 के बच्चों पर प्रभावों को लेकर शोधार्थियों ने कई अहम बातें कही हैं। वन अर्थ जर्नल में छपे इनके विश्लेषण में बताया गया कि लंबे समय तक पीएम 2.5 का प्रभाव बच्चों व वयस्कों में अस्थमा के खतरे को बढ़ाता है। विश्व में ऐसे 30 प्रतिशत अस्थमा के मामले इन्हीं से संबंधित हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक किसी शख्स के वयस्क होने से पहले ही उसके फेफड़ों और प्रतिरक्षा प्रणाली का विकास हो जाता है। इसी वजह से बच्चे वायु प्रदूषण के प्रति ज्यादा असुरक्षित होते हैं। लगातार इसके प्रभाव में रहने से उनकी सांस की नली में समस्या हो सकती है।
द मैक्स प्लंक इंस्टीटयूट फार केमेस्ट्री से लेखक रूई¨जग नी के मुताबिक अनुमान है कि 2019 में विश्व में अस्थमा के एक तिहाई मामलों में बड़ी वजह लंबे समय तक पीएम 2.5 के प्रभाव में रहना था। अस्थमा पीडि़त 6.35 करोड़ लोगों में से 1.14 करोड़ नए थे। शोधार्थियों ने बताया कि पिछले शोधों से पता चला है कि पीएम 2.5 के प्रदूषण से बेहद कम आमदनी वाले देशों की जनसंख्या पर इसका ज्यादा बोझ पड़ा है। लेखकों ने इस पर भी गौर किया कि पीएम 2.5 के कम स्तर के बाद भी उत्तरी अमरीका व पश्चिमी यूरोप में भी अस्थमा के मामले बढ़े हैं। द मैक्स प्लंक इंस्टीटयूट फार केमेस्ट्री के निदेशक व सह लेखक याफांग चंग ने कहा कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए व्यक्तिगत स्तर पर उपाय के रूप में मास्क पहनने से भी अस्थमा के खतरे से बचा जा सकता है।
पीएम 2.5 क्या होता है?
पीएम 2.5 दरअसल हवा में तैरते हुए बहुत छोटे-छोटे कण होते हैं, जैसे धूल या धुआं के। ये कण इतने छोटे होते हैं कि इन्हें हम अपनी आंखों से नहीं देख सकते। ये कण हवा में मौजूद प्रदूषण का एक बड़ा कारण होते हैं।