-अगर आरक्षण के माध्यम से निर्वाचित महिला जन प्रतिनिधि उन्हीं परिवारों से हुईं जिनके पुरुष सदस्य राजनीति में हैं तो महिलाओं के उत्थान करने वाले विधेयक का उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
नई दिल्ली। केंद्र सरकार की ओर से आज यानी 19 सितंबर 2023 को नए संसद भवन में पहला विधेयक महिला आरक्षण बिल पेश कर दिया गया है। संसद के निचले सदन में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने महिलाओं को लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में 33 फीसदी आरक्षण दिलाने वाला ये बिल पेश किया। इस बिल पर कल यानी 20 सितंबर 2023 को लोकसभा में चर्चा होगी। सरकार का दावा है कि विधेयक पर चर्चा के बाद कल ही इसे पारित भी करा लिया जाएगा। अब सवाल ये उठता है कि अगर सरकार की योजना के मुताबिक ये बिल कल लोकसभा से पारित हो जाता है तो क्या 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में 181 संसदीय क्षेत्र महिला प्रत्याशियों के लिए आरक्षित कर दिए जाएंगे?
लोकसभा में मंगलवार को पेश किये गये महिला आरक्षण विधेयक को मूर्त रूप लेने से पहले कई अवरोध पार करने होंगे जिनमें सभी राजनीतिक दलों का समर्थन पाने के साथ जनगणना और परिसीमन की प्रक्रिया जल्द पूरी करना शामिल हैं। महिला आरक्षण से संबंधित ‘संविधान 128वां संशोधन विधेयक’ के प्रावधानों में स्पष्ट है कि इसके कानून बनने के बाद होने वाली जनगणना के आंकड़ों को पूरा करने के बाद परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने या निर्वाचन क्षेत्रों का पुन: सीमांकन होने के बाद ही यह प्रभाव में आएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने संसद भवन में अपने अंतिम भाषण में कहा था कि संसद के दोनों सदनों में अब तक 7,500 से ज्यादा जन प्रतिनिधियों ने अपनी सेवाएं दी हैं। लेकिन, इनमें महिला प्रतिनिधियों की संख्या महज 600 रही है। महिलाओं के योगदान ने हमेशा से सदन की गरिमा बढ़ाने में मदद की है। तभी कायस लगाए जाने लगे थे कि मोदी सरकार संसद में महिलाओं को 33 फीसदी हिस्सेदारी दिलाने वाला महिला आरक्षण विधेयक जल्द पेश कर सकती है। बता दें कि पहली बार 12 सितंबर 1996 को तत्कालीन पीएम एचडी देवगौड़ा की सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के तौर पर ये बिल संसद में पेश किया था। हालांकि, तब विधेयक पारित नहीं हो पाया।
क्या था इस विधेयक में प्रस्ताव?
महिला आरक्षण विधेयक में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव रखा गया था। बिल में प्रस्ताव रखा गया था कि हर लोकसभा चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए।आरक्षित सीटें राज्य या केंद्रशासित प्रदेशों के अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के जरिये आवंटित की जा सकती हैं। बता दें कि मौजूदा समय में पंचायतों और नगर पालिकाओं में 15 लाख से ज्यादा चुनी हुई महिला प्रतिनिधि हैं, जो 40 फीसदी के आसपास होता है। वहीं, लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं की उपस्थिति काफी कम है।
केंद्रीय कैबिनेट ने दी है मंजूरी
महिला आरक्षण विधेयक को केंद्रीय कैबिनेट ने सोमवार को ही मंजूरी दे दी थी। लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने वाला महिला आरक्षण विधेयक साल 1996 में पहली बार संसद में पेश किया गया था। इसके बाद इसे साल 1998 और 1999 में भी पेश किया गया, लेकिन बात नहीं बन पाई। फिर 2008 में भी महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया। इस बार भी बिल पारित नहीं हो पाया। फिर 2010 में राज्यसभा ने 108वें संशोधन विधेयक के तौर पर इसे पास कर दिया। हालांकि, उस समय कुछ सांसदों के विरोध के चलते ये बिल लोकसभा में पारित नहीं हो पाया था।
संविधान विशेषज्ञों के अनुसार
संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि संसद के दोनों सदनों द्वारा विधेयक को पारित किये जाने के बाद इसे कानून का रूप देने के लिए कम से कम 50 प्रतिशत राज्य विधानसभाओं की मंजूरी जरूरी होगी। राज्य विधानसभाओं की मंजूरी आवश्यक है क्योंकि इससे राज्यों के अधिकार प्रभावित होते हैं। संविधान में अनुच्छेद 334 के बाद जोड़ने के लिए प्रस्तावित नए अनुच्छेद 334 ए के अनुसार, ‘‘संविधान 128वां संशोधन, विधेयक 2023 के प्रारंभ होने के बाद की गई पहली जनगणना के संगत आंकड़े प्रकाशित होने के बाद इस उद्देश्य के लिए परिसीमन की कवायद शुरू होने के पश्चात विधेयक प्रभाव में आएगा।”
विशेषज्ञों ने यह बात भी कही है कि महिलाएं प्रतिनिधि तो चुनी जा सकती हैं लेकिन वास्तविक अधिकार उनके पतियों के पास रह सकते हैं जैसा कि पंचायत स्तर पर देखा गया। जानीमानी वकील शिल्पी जैन ने कहा कि अगर आरक्षण के माध्यम से निर्वाचित महिला जन प्रतिनिधि उन्हीं परिवारों से हुईं जिनके पुरुष सदस्य राजनीति में हैं तो महिलाओं के उत्थान करने वाले विधेयक का उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
जनगणना के बिना कैसे होगा लागू?
साल 2011 में जनगणना फरवरी-मार्च में की गयी थी और अनंतिम आंकड़े उस साल 31 मार्च को जारी किये गये थे। संविधान के अनुच्छेद 82 2002 में यथासंशोधित के अनुसार 2026 के बाद की गयी पहली जनगणना के आधार पर परिसीमन प्रक्रिया की जा सकती है। इस लिहाज से 2026 के बाद पहली जनगणना 2031 में होगी जिसके बाद परिसीमन किया जाएगा। सरकार ने 2021 में जनगणना की प्रक्रिया पर कोविड-19 महामारी के मद्देनजर रोक लगा दी थी। 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले महिला आरक्षण को वास्तविक रूप देने के लिए सरकार को इस प्रक्रिया को तेजी से पूरा कराना होगा।
कानून बनने पर कब होगा लागू?
महिला आरक्षण विधेयक अगर 20 सितंबर 2023 को लोकसभा में पारित हो जाता है तो भी इसे लोकसभा चुनाव 2024 में लागू करना मुश्किल है। संसद से पारित होने के बाद महिला आरक्षण बिल को कम से कम 50 फीसदी विधानसभाओं से पारित कराना होगा। वहीं, 2026 के बाद परिसीमन का काम भी होना है। कानून बनने पर भी महिला आरक्षण विधेयक परिसीमन के बाद ही लागू किया जा सकेगा। ऐसे में महिला आरक्षण लोकसभा चुनाव 2029 में लागू हो सकता है। अब सवाल ये उठता है कि कानून बनने के बाद 33 फीसदी महिला आरक्षण कब तक लागू रहेगा? बता दें कि राज्यसभा और विधान परिषदों में महिला आरक्षण लागू नहीं होगा।
कितने समय तक मिलेगा आरक्षण?
साल 1996 में जब ये विधेयक पेश किया गया था, तो इसके प्रस्ताव में स्पष्ट तौर पर लिखा गया था कि इसे सिर्फ 15 साल के लिए ही लागू किया जाएगा। इसके बाद इसके लिए फिर से विधेयक लाकर संसद के दोनों सदनों से पारित कराना होगा। अब सवाल ये उठता है कि अगर ये विधेयक कानून बन जाता है तो इसकी 15 साल की अवधि कब से शुरू होगी ? कानून विशेषज्ञों के मुताबिक, महिला आरक्षण की 15 साल की अवधि लोकसभा में इसके लागू होने के बाद से ही शुरू होगी। अगर ये 2029 में लागू हो जाता है तो ये 2044 तक लागू रहेगा। इसके बाद दोबारा विधेयक संसद में लाना होगा और पूरी प्रक्रिया से गुजरना होगा।