असंवैधानिक इलेक्टोरल बॉन्ड : डिटेल्स देने के लिए SBI ने सुप्रीम कोर्ट से मांगी 30 जून तक की मोहलत

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट से चुनावी बॉन्ड की जानकारी देने के लिए 30 जून तक की मोहलत मांगी है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया था।

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-इलेक्टोरल बांड में गोपनीयता बनाए रखने और पहचान उजागर न होने के लिए कड़े उपाय किए गए थे। ऐसे में इलेक्टोरल बांड की डिकोडिंग और उसका वास्तविक दानकर्ता से मिलान करना एक जटिल प्रक्रिया है।

नई दिल्ली। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट से चुनावी बॉन्ड की जानकारी देने के लिए 30 जून तक की मोहलत मांगी है। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया था। शीर्ष अदालत ने SBI को 6 मार्च 2024 तक इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को देने को कहा था।

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SBI ने क्या कहा?

SBI का कहना है कि इलेक्टोरल बांड में गोपनीयता बनाए रखने और पहचान उजागर न होने के लिए कड़े उपाय किए गए थे। ऐसे में इलेक्टोरल बांड की डिकोडिंग और उसका वास्तविक दानकर्ता से मिलान करना एक जटिल प्रक्रिया है।

दानकर्ता की जानकारी गोपनीय रखने के लिए एसबीआइ ने इलेक्टोरल बांड की खरीद और भुगतान के संबंध में देशभर में अपनी 29 अधिकृत शाखाओं (जहां से पहले इलेक्टोरल बांड जारी होते थे) के लिए एक स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसिजर (एसओपी) तय किया था। इसमें कहा गया था कि गोपनीयता बनाए रखने के लिए इलेक्टोरल बांड खरीदने वाले के बारे में कोई भी ब्योरा यहां तक कि KYC भी कोर बैंकिंग सिस्टम में नहीं डाली जाएगी।

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SBI ने कहा है कि शाखाओं के जरिए खरीदे गए इलेक्टोरल बांड का ब्योरा केंद्रीयकृत ढंग से एक जगह नहीं रखा जाता। बांड खरीदने और उसके भुगतान की तिथि से जुड़ा ब्योरा दो भिन्न सिलोस में रखा जाता है।

इस संबंध में कोई केंद्रीय डाटाबेस नहीं। ऐसा दानकर्ता के बारे में गोपनीयता बनाए रखने के लिए किया जाता है। दूसरी ओर प्रत्येक राजनैतिक दल को SBI की अधिकृत 29 शाखाओं में से किसी में खाता खोलना होता है जिसमें प्राप्त बांड जमा करके उन्हें भुनाया जाए। जब बांड भुनाया जाता है तो मूल बांड और पे-इन-स्लिप एक सील्ड लिफाफे में रखकर एसबीआइ की मुंबई शाखा भेज दी जाती हैं।

ऐसे में जानकारी के दोनों सेट अलग अलग सुरक्षित रखे जाते हैं। इसलिए दोनों का मिलान करना बड़े प्रयास का काम है। इस प्रक्रिया में समय लगेगा। गोपनीयता बनाए रखने के लिए सारा ब्योरा डिजिटली नहीं रखा जाता। SBI ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में 12 अप्रैल 2019 से लेकर अंतिम फैसले 15 फरवरी 2024 तक की जानकारी सार्वजनिक करने का आदेश दिया है। इस अवधि के दौरान 22, 217 इलेक्टोरल बांड का उपयोग राजनैतिक दलों को चंदा देने के लिए हुआ। भुगतान कराए गए बांड का ब्योरा प्रत्येक चरण की अंतिम तय तिथि पर सील कवर मुंबई की मुख्य शाखा में जमा कराया गया था।

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डिकोड करके किया जाएगा मिलान

पूरी जानकारी दो अलग-अलग सिलोस में है यानी कुल 44,434 जानकारियों के सेट हैं, जिन्हें डिकोड करके मिलान किया जाएगा। ऐसे में कोर्ट द्वारा जानकारी सार्वजनिक करने के लिए दी गई तीन सप्ताह की समय सीमा पर्याप्त नहीं है। कोर्ट थोड़ा समय बढ़ा दे। कोर्ट बैंक को आदेश का पालन करने के लिए 30 जून तक का समय दे दे।

SC ने क्या कहा था?

CJI डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने 15 फरवरी 2024 को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को असंवैधानिक और RTI का उल्लंघन करार देते हुए तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी थी। इसमें देने के बदले कुछ लेने की गलत प्रक्रिया पनप सकती है। चुनावी चंदा देने में लेने वाला राजनीतिक दल और फंडिंग करने वाला, दो पार्टियां शामिल होती हैं। ये राजनीतिक दल को सपोर्ट करने के लिए होता है या फिर कंट्रीब्यूशन के बदले कुछ पाने की चाहत हो सकती है।

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CJI की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने SBI को अप्रैल 2019 से अब तक मिले चंदे की जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को देने के लिए कहा था। कोर्ट ने चुनाव आयोग से 13 मार्च तक यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर अपलोड करने के लिए कहा था। अदालत ने कहा कि राजनीतिक चंदे की गोपनीयता के पीछे ब्लैक मनी पर नकेल कसने का तर्क सही नहीं। यह सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। निजता के मौलिक अधिकार में नागरिकों के राजनीतिक जुड़ाव को भी गोपनीय रखना शामिल है।

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