Drashta News

महाकुम्भ 2025 तक ‘भारत भाग्य विधाता’ का सफर

DrashtaNews

भारत भाग्य विधाता-1

रविकांत सिंह ‘द्रष्टा’

साल 2025 की शुरुआत हो चुकी है। सूर्यदेव ने भी अपनी दिशा बदल दी है। महाकुम्भ गंगा स्नान के लिए प्रयागराज में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। प्रतिकुल परिस्थितियों में आस्था का यह सैलाब ईश्वर के समक्ष मानव जीवन का प्रदर्शन है।

अनुकुल और प्रतिकुल परिस्थितियों का निर्माण दैविक और मानवीय दोनों हो सकता है परन्तु, इसका निर्णय मानव समाज करता है। और मानव समाज ईश्वर की रचना नहीं हैं अपितु, यह मानव की रचना है। इसलिए समाज में व्याप्त अव्यवस्था, नरकीय जीवन, प्रकृति का विनाश, एक दूसरे से ईर्ष्या, घृणा, द्वेष इन सभी दोषों का जिम्मेदार स्वयं मानव ही है। और मानव समाज में जब तक यह दोष है तब तक महाकुम्भ काल में कोई भी व्यक्ति गंगा स्नान कर ले वह पवित्र नहीं हो सकता है।

मैं द्रष्टा देख रहा हूं कि अज्ञान के ब्लैक होल में समाने के लिए भारत का भाग्य विधाता आगे बढ़ रहा है। अन्धकार से प्रकाश की ओर बढ़ने में व्यक्ति को समय लगता है परन्तु प्रकाश से अन्धकार की ओर बढ़ने में केवल उस व्यक्ति के आत्मसंयम का छूटना ही पर्याप्त है। मानव ने अपनी प्रगति के लिए जिन मूल्यों पर समाज का निर्माण किया है। उन मूल्यों का क्षरण हो रहा है। भारतीय समाज में बहुसंख्यावाद ही अब व्यक्ति के लिए प्राथमिकता है। जबकि बहुमत इस समाज में अब भी अपना स्थान तलाश रहा है।

गोरखपीठ के महंत और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्य नाथ उर्फ अजय बिष्ठ 80 प्रतिशत हिन्दुओं की अगुवाई का काफी दिनों से ढोल पीट रहे हैं। इस उद्देश्य के लिए महाकुम्भ मेले जैसे धार्मिक स्थल पर कैबिनेट मीटिंग में बहुलतावादी विचार रखकर मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने गणतंत्र में बहुसंख्यावाद का स्पष्ट संकेत दे दिया है। मुख्यमंत्री आदित्य नाथ स्वयं ही 80 प्रतिशत हिन्दुओं को अपने पक्ष में और 20 प्रतिशत अहिन्दुओं को अपनी राजनीतिक विपक्षियों की झोली में फेंक रहे हैं। यह स्पष्ट बहुसंख्यावाद का तथ्य है।

26 जनवरी 1950 को नये भारत का जन्म हुआ था। उस दिन सदियों पुरानी कुरितियों, परम्पराओं, जातिधर्म, घृणा, द्वेष और दासत्व से मुक्त होकर भारतीय समाज अपने संविधान के अनुसार जीवन निर्वाह करने के लिए दृढ़ संकल्पित था। 2025 में भारत का गणतंत्र 75 साल का सफर तय कर 76 वें साल मे पहुंच चुका है। परन्तु,भारत का भाग्य विधाता अज्ञान के अन्धकार में गोते लगा रहा है।

आर्थिक असमानता

मैं द्रष्टा देख रहा हूं कि गण और उसका तंत्र इस 75 साल का सफर तय करने के बाद भी आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था को संतुलित रखने में कामयाब नहीं हो सका है। तंत्र की मनमानी गण के लिए मुसीबत बन गई है। आजादी के 78 साल बीत जाने के बाद भी भारत के 81.35 करोड़ नागरिक मुफ्त अनाज पर जीवन यापन कर रहे हैं। दुर्दीनकाल में दी जाने वाली सहायता को केन्द्रिय कैबिनेट ने प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को बढ़ाकर पांच और सालों तक जारी रखने की मंजूरी दे दी है। इसका मतलब है कि देश में 60 प्रतिशत लोग इतने गरीब हैं कि वो अपने खाने का भी इंतजाम नहीं कर पाते हैं।

अवश्य पढ़ें : ‘धन के लिए धर्म को ठुकराने वाले’ जनता के जमीर को मारना जानते हैं

तंत्र की मनमानी के कारण 1951 में सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोगों की देश की आय में हिस्सेदारी जो 37 प्रतिशत थी वह बढ़कर 60 प्रतिशत तक पहुंच गई है। और निचली 50 प्रतिशत आबादी के हिस्से में केवल 15 प्रतिशत आय ही आई है। भारत के 100 सबसे अमीर लोगों की संपत्ति पहली बार करीब 100 लाख करोड़ हो गई है। भारत में इतनी असमानता है कि सबसे अमीर 1% आबादी के पास देश की कुल संपत्ति का 40% से ज्यादा हिस्सा है। और वहीं, आधी आबादी के पास कुल संपत्ति का सिर्फ़ 3% हिस्सा है। 75 सालों में भारत भाग्य विधाता ने अब तक यही आर्थिक असमानता प्राप्त किया है।

सामाजिक असहनशीलता

मानव ने अपनी सुरक्षा के लिए समाज की रचना की। और समाज को संचालित करने के लिए प्रेम, करुणा, दया, सत्य,अहिंसा,त्याग,धैर्य, समर्पण और न्याय आधारित नियमकानून बनाए। जिसे समाज के प्रत्येक व्यक्तियों ने सहमति के साथ धारण किया और इसे ही धर्म कहा।

भारत ने आजादी के बाद अपना संविधान बनाया और 26 जनवरी 1950 को इसे लागू किया। असल में यही संविधान प्रत्येक भारतीय नागरिकों का धर्म ग्रंथ है। गणतंत्र से पहले भारत में निवास करने वाले हिन्दु, मुस्लिम, सिक्ख, जैन ,बौद्ध, ईसाई, पारसी आदि धर्म थे परन्तु गणतंत्रता के बाद इन धर्मो को भारतीय संविधान ने संरक्षित किया है। अब हिन्दु हो या मुसलमान या फिर ईसाई सभी भारतीय नागरिक हैं और उनका धर्म है संविधान का पालन करना है।

 मैं द्रष्टा देख रहा हूं कि भारतीय नागरिकों ने धर्म की स्थापना तो की मगर उस धर्मपथ पर चला कैसे जाए यह सीख सके। गण और तंत्र की इस व्यवस्था में धार्मिक उन्माद भारत में चरम पर है। कुछ नागरिक हिन्दुत्व के नाम पर अधर्म के दलदल में धर्म को धक्का दे रहे हैं। इस अधर्म के दलदल में धर्म को धक्का देने के लिए राजनीतिक तंत्र ऐसे नागरिकों को उकसा रहा है। आजादी के पहले और आजादी के 78 सालों के बाद भी साम्प्रदायिक घृणा और द्वेष नागरिकों के मन में बैठा हुआ है। 2014 के बाद नागरिकों में घृणा और द्वेष से पैदा हुई असहनशीलता ने समाजिकता और नागरिकता की परिभाषा को ही बदल दिया है। 75 सालों बाद गणतंत्र को यह सामाजिक असहनशीलता प्राप्त हुई है।

राजनीतिक असफलता

समाज के प्रत्येक नागरिकों की चहुंमुखी प्रगति और सुरक्षा की जिम्मेदारी ही राजनीति है। नागरिकों को न्याय का अवसर देना, शिक्षा, स्वास्थ्य , प्रति व्यक्ति आय, रोजगार देना और प्राकृतिक संशाधनों का संरक्षण राजनीति की प्राथमिकता है। भारत की प्रति व्यक्ति आय 2.28 लाख रुपए भारत 3.94 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ दुनिया की 5 वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है। हालांकि, टॉप-10 जीडीपी वाले देश में सबसे कम प्रति व्यक्ति आय भारत की है।

गणधर्म के बगैर गणतंत्र दिवस का महत्व

बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था

भारत के 1.3 बिलियन लोगों के लिये देश में सिर्फ 10 लाख पंजीकृत डॉक्टर हैं। इस हिसाब से भारत में प्रत्येक 13000 नागरिकों पर मात्र 1 डॉक्टर मौजूद है। हाल ही में प्रकाशित लैंसेट की रिपोर्ट के मुताबिक हर साल तकरीबन 16 लाख भारतीय घटिया स्वास्थ्य सेवाओं के चलते मौत के मुंह में समा जाते हैं।

सन्1950 में भारत में केवल 2,717 अस्पताल थे। जो अब सरकार के आंकड़ों के मुताबिक देश में कुल 19,817 सरकारी अस्पताल हैं, वहीं प्राइवेट अस्पतालों की संख्या तकरीबन 80,671 है। इनमें से मात्र 536 अस्पताल ही भारतीय गुणवत्ता परिषद के बनाए हेल्थकेयर प्रदाताओं के लिए बने राष्ट्रीय मान्यता बोर्ड से मान्यता प्राप्त हैं। भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में निजी अस्पतालों का योगदान करीब 62% है।

अवश्य पढ़ें :आदमखोर सत्ता के पुजारी

31 मार्च, 2023 तक भारत में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएचसी), सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी), एसडीएच, डीएच, और मेडिकल कॉलेजों में कुल 8,18,661 बेड थे। भारत के निजी अस्पतालों में 1.18 मिलियन बेड, 59,264 गहन देखभाल इकाइयाँ, और 29,631 वेंटिलेटर हैं। साल 2019 में भारत में निजी अस्पतालों की संख्या करीब 30,000 थी, जो साल 2024 में बढ़कर करीब 38,000 हो गई।

रोजगार की समस्या

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार भारत में बेरोजगारी दर 2024 के दिसंबर में 8.30 प्रतिशत हो गई। देश में लगभग 3.62 करोड़ बेरोजगार हैं। इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024 के हिसाब से अगर भारत में 100 लोग बेरोजगार हैं, तो उसमें से 83 लोग युवा हैं। युवाओं में स्किल्स की कमी रिपोर्ट में भारत के युवाओं में बुनियादी डिजिटल लिटरेसी की कमी के बारे में बताया गया है। इस वजह से उनकी रोजगार की क्षमता में रुकावट रही है। 90% भारतीय युवा स्प्रेडशीट में मैथ्स के फॉमूर्ला लगाने में असमर्थ हैं। 60% युवा फाइलें कॉपी और पेस्ट नहीं कर सकते हैं। वहीं 75% युवा किसी अटैचमेंट के साथ ईमेल भेजने में असमर्थ हैं।

भारत में प्रति व्यक्ति आय 13.14 हजार डॉलर यानी करीब 2.28 लाख रुपए है। वहीं, अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय 85.37 हजार डॉलर यानी करीब 71.30 लाख रुपए है।

बदहाल शिक्षा व्यवस्था

केन्द्र सरकार ने बताया है कि 2021-2022 तक देश में कुल 14 लाख 89 हजार 115 स्कूल चल रहे थे। इनमें सरकारी स्कूलों की संख्या 10 लाख 22 हजार 386 थी। इन स्कूलों में करीब 26.5 करोड़ से ज्यादा छात्र पढ़ते हैं। वहीं 2020-2021 और 2021-2022 के बीच सबसे अधिक सरकारी स्कूल मध्य प्रदेश में बंद किए गए।

यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस ये केन्द्रिय शिक्षा मंत्रालय के तहत आता है। UDISE+  की 2020-21 की रिपोर्ट बताती है कि देश में 15 लाख से ज्यादा स्कूल हैं। इनमें सरकारी, अर्द्धसरकारी और प्राइवेट स्कूल शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, देश भर में फिलहाल 10 लाख 32 हजार 49 सरकारी स्कूल हैं, जिनमें से पिछले तीन सालों में 62 हजार 488 स्कूल घटे हैं।

अवश्य पढ़ें : एनडीए के ‘अमृतकाल’ में मणिपुर का सर्वनाश

केन्द्र सरकार ने जुलाई 2019 में लोकसभा में सरकारी स्कूलों की संख्या की जानकारी दी थी। तब स्कूलों की संख्या 10.94 लाख बताई गई थी। सरकार ने ये डेटा (2017-18) की रिपोर्ट के आधार पर ही दी थी । हालांकि सरकार ने अपनी नई रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों के कम होने को लेकर अलग से कोई जानकारी नहीं दी और ना ही इसकी अब तक वजह बताई है।

मैं द्रष्टा देख रहा हूं कि  देश के लाखों क्रांतिकारियों ने जिस भारत भूमि को प्रगति के पावन विचारों के साथ त्याग और बलिदान से सींचा है उस भूमि के लाल अब आजादी के 78 सालों में ही उन क्रान्तिकारियों के पावन विचारों को केवल भूला देना चाहते है बल्कि उनके विचारों के विरोध में भी खड़े दिखाई दे रहे हैं। महात्मा गांधी के सपनों के भारत भाग्य विधाता ने 78 सालों में अब तक यही आर्थिक असमानता, सामाजिक असहनशीलता और राजनीतिक असफलता प्राप्त किया है। द्रष्टा उम्मीद करता है कि 2025 के इस महाकुम्भ में गंगा स्नान करने वालों का कल्याण अवश्य होगा।

………….क्रमशः जारी है

…………..(व्याकरण की त्रुटि के लिए द्रष्टा क्षमाप्रार्थी है )

drashtainfo@gmail.com

अवश्य पढ़ें:

किसानों का स्वर्ग में धरना, देवराज को हटाने की मांग

सांसदों की औक़ात में नहीं था कृषि विधेयक को रोकना

किसान क्रांति: पंचायत के संवैधानिक अधिकारों का दमन करती सरकारें

किसान क्रांति: आपको नागरिक से उपभोक्ता बनाने का षड्यंत्र

बाटी-चोखा के बीच अखिल भारतीय पंचायत परिषद् में कृषि बिल और पंचायत की स्वायत्तता पर चर्चा

पूँजीवादी नौकरशाह और कारपोरेट, क्या प्रधानमंत्री की नहीं सुनते?

किसान क्रांति : गरीबों के निवाले भी सियासत, छीन लेती है -पार्ट 2

गॉव आत्मनिर्भर होते तो, प्रधानमंत्री को माफी नहीं मांगनी पड़ती

कोरोना की आड़ में किसानों के साथ सरकारी तंत्र की साजिश

देश की अधिकांश आबादी आर्थिक गुलामी की ओर

‘आर्थिक मंदी के दौरान बीजेपी की दिन दुगनी और कांग्रेस की रात चौगुनी आमदनी’

 देश के लिए संक्रांति काल

गजनवी की नाजायज औलादें -1

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *