सीजेआई चंद्रचूड़ ने एसजी से कहा, “हमने 2 महीने का समय दिया और अब इसे अगस्त तक बढ़ा दिया, जो इसे 5 महीने कर देता है। यदि आपको कोई वास्तविक कठिनाई है तो हमें बताएं।”
नई दिल्ली। अदाणी समूह पर हिंडनबर्ग की ओर से लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) को जांच के लिए तीन महीने का समय दिया है। अदालत ने सेबी को 14 अगस्त तक स्टेटस रिपोर्ट देने को कहा है। जिससे अमेरिका की शॉर्ट सेलर फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह की कंपनियों के खिलाफ स्टॉक मूल्य हेरफेर के आरोपों की जांच पूरी की जा सके।
11 जुलाई को होगी चर्चा
कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट देखने के बाद 30 सितंबर तक जांच खत्म करने पर आदेश दिया जा सकता है। शेयर बाजार के कामकाज में सुधार पर एक्सपर्ट कमिटी की रिपोर्ट सभी पक्षों को दी जाएगी। 11 जुलाई को इस पर चर्चा होगी। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ मामले की सुनवाई कर रही है। पीठ ने बुधवार को सेबी को जांच स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया। पीठ में जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला भी शामिल हैं।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने सेबी द्वारा दायर आवेदन में आदेश पारित किया, जिसमें जांच पूरी करने के लिए 6 महीने का और समय मांगा गया। सुप्रीम कोर्ट के दो मार्च के आदेश के अनुसार दो महीने का समय मूल रूप से दो मई को समाप्त हो गया।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने एसजी से कहा, “हमने 2 महीने का समय दिया और अब इसे अगस्त तक बढ़ा दिया, जो इसे 5 महीने कर देता है। यदि आपको कोई वास्तविक कठिनाई है तो हमें बताएं।” दो दिन पहले सेबी ने अडानी-हिंडनबर्ग मामले की जांच के लिए और समय मांगने के लिए अतिरिक्त कारण बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में प्रत्युत्तर हलफनामा दायर किया। सेबी ने कहा कि लेनदेन जटिल हैं और जांच के लिए अधिक समय की आवश्यकता है। प्रतिभूति बोर्ड ने याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोप का भी खंडन किया कि वह 2016 से अडानी की जांच कर रहा है।
यह दावा किया गया कि जांच वास्तव में 51 भारतीय सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा ग्लोबल डिपॉजिटरी रसीद जारी करने से संबंधित है, जिसमें अडानी समूह की कोई भी सूचीबद्ध कंपनी शामिल नहीं है। सेबी ने सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ को सूचित किया कि वह न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता (एमपीएस) मानदंडों की जांच के संबंध में अंतरराष्ट्रीय प्रतिभूति आयोग संगठन (आईओएससीओ) के साथ बहुपक्षीय समझौता ज्ञापन (एमएमओयू) के तहत पहले ही ग्यारह विदेशी नियामकों से संपर्क कर चुका है।
सुनवाई के दौरान, हिंडनबर्ग रिपोर्ट की जांच की मांग करने वाले याचिकाकर्ता की ओर से पेश एडवोकेट प्रशांत भूषण ने सेबी के इस दावे पर सवाल उठाया कि वह 2016 से अडानी समूह की कंपनियों की जांच नहीं कर रहा है। भूषण ने तर्क दिया कि सेबी का दावा भारतीय सरकार द्वारा संसद में दिए गए जवाब के विपरीत है। सुनवाई की पिछली तारीख को भूषण ने यह कहकर सेबी की और समय की जरूरत पर सवाल उठाया था कि नियामक 2016 से अडानी कंपनियों की जांच कर रहा है।
मामले में अन्य याचिकाकर्ता एडवोकेट विशाल तिवारी ने भी सेबी की याचिका का विरोध किया। सॉलिसिटर जनरल ने प्रस्तुत किया कि सेबी द्वारा 2016 की जांच अलग मुद्दे पर है, जिसका हिंडनबर्ग रिपोर्ट में आरोपों से कोई संबंध नहीं है। एसजी ने कहा, “2016 में सेबी ने भारत की 51 सूचीबद्ध कंपनियों से संबंधित आदेश पारित किया। इस समूह की कोई भी कंपनी उन 51 कंपनियों का हिस्सा नहीं है। मेरे मित्र चाहते हैं कि 2016 या 2008 के बाद से इस कंपनी के साथ हुई हर चीज की जांच हो। इस याचिका का संदर्भ ऐसा नहीं है। यह याचिका हिंडनबर्ग रिपोर्ट से संबंधित है।” उन्होंने कहा कि इस स्थिति को स्पष्ट करते हुए हलफनामा दायर किया जाएगा।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने भूषण से कहा, “हम हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर हैं और कार्यवाही का प्रेषण कंपनी के खिलाफ एक सतत जांच नहीं है। यह कहा गया कि 2016 की जांच वैश्विक डिपॉजिटरी प्राप्तियों से संबंधित है और 2020 न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता मानदंडों से संबंधित है …।” मामले की पृष्ठभूमि अमेरिका स्थित हिंडनबर्ग ने 24 जनवरी को अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें अडानी समूह पर अपने स्टॉक की कीमतों को बढ़ाने के लिए बड़े पैमाने पर हेराफेरी और दुरुचार करने का आरोप लगाया गया।
अडानी ग्रुप ने 413 पन्नों का जवाब प्रकाशित कर आरोपों का खंडन किया। 2 मार्च 2023 को अदालत ने समिति का गठन किया और समिति के सदस्यों के रूप में निम्नलिखित व्यक्तियों को नियुक्त किया- ओपी भट (एसबीआई के पूर्व अध्यक्ष), सेवानिवृत्त जज जस्टिस जेपी देवधर, केवी कामथ, नंदन नीलाकेणी, सोमशेखरन सुंदरसन। समिति का गठन सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस एएम सप्रे की अध्यक्षता में किया गया। अदालत ने समिति को निर्देश दिया कि वह 2 महीने के भीतर इस अदालत के समक्ष सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट पेश करे। हालांकि, अदालत ने टिप्पणी की कि एक्सपर्ट कमेटी के गठन ने सेबी को भारत में प्रतिभूति बाजार में अस्थिरता की जांच जारी रखने के लिए उसकी शक्तियों या जिम्मेदारियों से वंचित नहीं किया। सेबी को दो महीने की अवधि के भीतर एक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया गया। सेबी ने बाद में आरोपों की जांच पूरी करने के लिए छह महीने के विस्तार की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर किया।
सेबी ने अपने आवेदन में कहा कि जांच जिसके लिए और समय की आवश्यकता होगी, तीन व्यापक श्रेणियों में आएगी: (i) जहां प्रथम दृष्टया उल्लंघन पाए गए हैं और निर्णायक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए 6 महीने की अवधि की आवश्यकता होगी। (ii) जहां प्रथम दृष्टया उल्लंघन नहीं पाया गया, वहां जांच को फिर से सत्यापित करने और निर्णायक निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए 6 महीने की अवधि की आवश्यकता होगी। (iii) ऐसे मामलों में जहां, आगे की जांच की आवश्यकता है और इस उद्देश्य के लिए आवश्यक अधिकांश डेटा उचित रूप से सुलभ होने की उम्मीद है, 6 महीने में निर्णायक निष्कर्ष आने की उम्मीद है।
सुप्रीम कोर्ट ने बनाई थी कमेटी
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने दो मार्च को यूएस शॉर्ट-सेलर हिंडनबर्ग द्वारा अदाणी ग्रुप के खिलाफ स्टॉक हेरफेर के आरोपों की जांच के लिए छह सदस्यीय समिति के गठन का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 11 जुलाई को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।
केस टाइटल: विशाल तिवारी बनाम भारत संघ व अन्य। | रिट याचिका (सिविल) नंबर 162/2023 और अन्य संबंधित मामले