राज्य विद्युत नियामक आयोगों को सुप्रीम कोर्ट ने दिया निर्देश, बिजली दरें तय करने के बनाएं नियम

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य विद्युत नियामक आयोगों को तीन महीने के भीतर टैरिफ के निर्धारण के लिए नियम और शर्तों पर विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 181 के तहत नियम बनाने का निर्देश दिया। कोर्ट ने आगे निर्देश दिया कि टैरिफ के निर्धारण पर इन दिशानिर्देशों को तैयार करते समय, आयोग विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 61 के तहत निर्धारित सिद्धांतों का पालन करेगा, जिसमें राष्ट्रीय विद्युत नीति और राष्ट्रीय टैरिफ नीति भी शामिल है। जहां राज्य आयोगों ने पहले से ही इस तरह के नियमों को तैयार कर लिया है, उन्हें टैरिफ निर्धारित करने के तौर-तरीकों को चुनने के लिए मानदंड के प्रावधानों को शामिल करने के लिए संशोधित किया जाएगा, अगर वे शामिल नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य विद्युत नियामक आयोगों को तीन महीने के भीतर कानून में तय सिद्धांतों के मुताबिक बिजली की दरें तय करने के नियम बनाने का आदेश दिया है। ये आदेश सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बिजली अपीलीय ट्रिब्युनल के फैसले को चुनौती देने वाली टाटा पावर कंपनी की अपील खारिज करते हुए दिए। भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने निर्देश दिया कि आयोग को राज्य में बिजली विनियमन के लिए एक स्थायी मॉडल को प्रभावी बनाने के लिए विद्युत अधिनियम के उद्देश्य का पालन करना चाहिए। नियामक आयोग इन विनियमों को बनाते समय राज्य की विशिष्ट आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखेगा।

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य विद्युत नियामक आयोगों को तीन महीने के भीतर टैरिफ के निर्धारण के लिए नियम और शर्तों पर विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 181 के तहत नियम बनाने का निर्देश दिया। कोर्ट ने आगे निर्देश दिया कि टैरिफ के निर्धारण पर इन दिशानिर्देशों को तैयार करते समय, आयोग विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 61 के तहत निर्धारित सिद्धांतों का पालन करेगा, जिसमें राष्ट्रीय विद्युत नीति और राष्ट्रीय टैरिफ नीति भी शामिल है। जहां राज्य आयोगों ने पहले से ही इस तरह के नियमों को तैयार कर लिया है, उन्हें टैरिफ निर्धारित करने के तौर-तरीकों को चुनने के लिए मानदंड के प्रावधानों को शामिल करने के लिए संशोधित किया जाएगा, अगर वे शामिल नहीं हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्य विद्युत नियामक आयोगों को तीन महीने के भीतर कानून में तय सिद्धांतों के मुताबिक बिजली की दरें तय करने के नियम बनाने का आदेश दिया है। ये आदेश सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बिजली अपीलीय ट्रिब्युनल के फैसले को चुनौती देने वाली टाटा पावर कंपनी की अपील खारिज करते हुए दिए।

भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने निर्देश दिया कि आयोग को राज्य में बिजली विनियमन के लिए एक स्थायी मॉडल को प्रभावी बनाने के लिए विद्युत अधिनियम के उद्देश्य का पालन करना चाहिए। नियामक आयोग इन विनियमों को बनाते समय राज्य की विशिष्ट आवश्यकताओं को भी ध्यान में रखेगा।

“इसके अलावा, बनाए गए विनियम विद्युत अधिनियम 2003 के उद्देश्यों के अनुरूप होने चाहिए, जो कि बिजली नियामक क्षेत्र में निजी हितधारकों के निवेश को बढ़ाना है ताकि टैरिफ निर्धारण की एक स्थायी और प्रभावी प्रणाली तैयार की जा सके जो लागत-कुशल हो ताकि इसका लाभ अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचे।”

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पार्डीवाला की पीठ ने बुधवार को टाटा की याचिका खारिज कर दी जिसमें अदाणी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई इन्फ्रा लिमिटेड (AEMIAL) को बिजली ट्रांसमिशन लाइसेंस देने को सही ठहराने वाले बिजली अपीलीय ट्रिब्युनल के आदेश को चुनौती दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि वे सभी राज्यों के विद्युत नियामक आयोगों को निर्देश देते हैं कि वे कानून की धारा 181 के तहत तय शर्तों में बिजली दरें तय करने के लिए तीन महीने में नियम बनाएं। कोर्ट ने कहा कि नियामक आयोग बिजली दरें तय करने के नियम बनाते वक्त कानून की धारा 61 में तय सिद्धांतों और नेशनल इलेक्टि्रसिटी पालिसी और नेशनल टैरिफ पालिसी का पालन करें।

कोर्ट ने कहा कि जिन आयोगों ने पहले से ही नियम तय कर रखे हैं वे दरें तय करने के तौर तरीके चुनने संबंधी प्रविधान शामिल करने के लिए उनमें संशोधन करेंगे अगर उन्होंने ऐसा पहले नहीं किया है तो। कोर्ट ने कहा है कि आयोग जिन नियमों को तय करे वे विद्युत कानून 2003 के उद्देश्यों से मेल खाते हों। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अदाणी समूह को बड़ी राहत मिली है। टाटा पावर कंपनी ने महाराष्ट्र इलेक्टि्रसिटी रेगुलेटरी कमीशन के फैसले पर सवाल उठाते हुए दलील दी थी कि टैरिफ आधारित कंपटेटिव बिडिंग प्रक्रिया का पालन किए बगैर इतने बड़े इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट का लाइसेंस कैसे दिया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि महाराष्ट्र इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन का इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की धारा 62 के तहत रेगुलेटरी टैरिफ मोड (RTM) को चुनने का निर्णय गलत नहीं कहा जा सकता। बड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट कंपटेटिव बिडिंग को छोड़ कर नामिनेशन बेसिस पर दिया जा सकता है कि नहीं, इस पर कोर्ट ने फैसले में कहा है कि ऐसा किया जा सकता है। कानून में इन्ट्रास्टेट ट्रांसमिशन सिस्टम के लिए राज्य को पर्याप्त फ्लेक्सिबिलिटी दी गई है। इसमें राज्य आयोग को दर तय करने और नियमित करने का अधिकार है।

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