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Study : वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में ADHD का खतरा तेजी से बढ़ रहा है, जानें इसके लक्षण और बचाव

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हरे-भरे और कम प्रदूषित इलाकों में रहने वाले बच्चों में इस बीमारी का खतरा लगभग 50 फीसदी कम हो जाता है।

बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ की रिसर्च के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में ADHD का खतरा तेजी से बढ़ रहा है,
आज के समय में फैक्ट्री, गाड़ियों से निकलने वाला धुआं और अन्य कारणों से वायु प्रदूषण की समस्या तेजी से बढ़ रही है। हाल ही में हुए एक शोध के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण लोगों में तमाम तरह की बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। वायु प्रदूषण की अधिकता वाले इलाकों में रहने वाले बच्चों में भी इसकी वजह से कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ा है।
बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ (ISGlobal) द्वारा किये गए एक शोध के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में एडीएचडी (अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिव डिसआर्डर) का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। रिसर्च में यह कहा गया है कि प्रदूषण के छोटे कण हवा में मौजूद होते हैं जिससे संक्रमित होने के बाद बच्चों में व्यवहार संबंधी बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है। शोध में कहा गया है कि हरे-भरे और कम प्रदूषित इलाकों में रहने वाले बच्चों में इस बीमारी का खतरा लगभग 50 फीसदी कम हो जाता है।

वायु प्रदूषण के कारण बच्चों में ADHD की बीमारी का खतरा (Air Pollutions Can Increase The Symptoms of ADHD in Children)
बार्सिलोना इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ (ISGlobal) के शोधकर्ताओं द्वारा किये गए इस शोध में कहा गया है कि बढ़ता प्रदूषण बच्चों में व्यवहार संबंधी बीमारी ADHD का प्रमुख कारण बन रहा है। ‘एनवायरमेंट इंटरनेशनल’ नामक जर्नल में प्रकाशित इस शोध में कहा गया है कि ऐसे बच्चे जो कम प्रदूषण वाले स्थानों पर रहते हैं उनमें इस बीमारी का खतरा लगभग 50 फीसद कम है। इस शोध में साल 2000 से लेकर 2001 तक जन्में बच्चों के डेटा का अध्ययन किया गया है जिसके बाद इस डेटा को अस्पताल और प्रशासन के रिकॉर्ड से मैच किया गया है।

शोध के मुताबिक पीएम 2.5 कणों के कारण उच्च स्तर के वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों में व्यवहार से जुड़ी बीमारी ADHD का खतरा बढ़ जाता है। यह एक न्यूरोडेवलपमेंटल विकार है जो बच्चों में काफी आम है। एक आंकड़े के मुताबिक यह समस्या लगभग 5 से 10 फीसदी बच्चों को प्रभावित करती है।

क्या है एडीएचडी? (What Is ADHD?)

ADHD यानी अटेंशन डिफिसिट हाइपरएक्टिव डिसऑर्डर, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या है। यह बीमारी बच्चों में ज्यादातर देखी जाती है हालांकि इसकी वजह से बड़े लोगों में भी व्यवहार से जुड़ी समस्याएं होती हैं। चूंकि यह एक दुर्लभ बीमारी है और इसके जांच और इलाज की सुविधा में कमी के कारण बच्चों में यह गंभीर समस्याओं का कारण बनती है। हमारे देश में हुए एक अध्ययन के मुताबिक प्राथमिक स्कूल में पढ़ने वाले 11 प्रतिशत से अधिक बच्चों में यह समस्या है और इसके उपचार के आभाव और जागरूकता की कमी के कारण इसका इलाज सही ढंग से नहीं हो पाता है। इस बीमारी के होने पर आदमी का व्‍यवहार बदल जाता है और याद्दाश्‍त भी कमजोर हो जाती है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो अटेंशन डेफिसिट हायपरएक्टिविटी यानी एडीएचडी का मतलब है, किसी चीज़ पर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता का सही इस्तेमाल नहीं कर पाना। माना जाता है कि कुछ रसायनों के इस्तेमाल से दिमाग की कमज़ोरी की वजह से ये कमी होती है।

एडीएचडी के लक्षण 

किसी भी कार्य को सही ढंग से ना करना।
निर्देशों का पालन करने में कठिनाई होना।
किसी की बात को न सुनना।
अत्यधिक बात करना।
किसी भी बात को याद ना रखना।
हमेशा उदास रहना।
दूसरों को बहुत ज्यादा परेशान करना।

ADHD का इलाज और बचाव

व्यवहार से जुड़ी एस गंभीर बीमारी की जांच के लिए कोई विशेष परीक्षण नहीं है। इसके लक्षणों के आधार पर ही इस बीमारी का इलाज किया जाता है। बच्चों में इस बीमारी के लक्षण दिखने पर सबसे पहले एक्सपर्ट डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। डॉक्टर बच्चे की मेडिकल हिस्ट्री के आधार पर जांच और इलाज की प्रक्रिया अपनाते हैं। डॉक्टर बच्चों की बाद सुनने और देखने की क्षमता, चिंता, अवसाद या अन्य व्यवहार समस्याओं की जांच की जाती है। इसके लिए अपने बच्चे को एक विशेषज्ञ (आमतौर पर मनोवैज्ञानिक, मनोचिकित्सक या न्यूरोलॉजिस्ट) के पास परीक्षण के लिए भेजिए। इसमें बच्‍चे का आईक्‍यू लेवल की भी जांच होती है। इसके लक्षण दिखने पर एक्सपर्ट चिकित्सक से संपर्क जरूर करना चाहिए। अगर आपके बच्चे को एडीएचडी है, या यदि शिक्षक आपको सूचित करें कि आपके बच्चे को पढ़ने में दिक्‍कत है, इसका व्‍यवहार अन्‍य बच्‍चों से अलग है और ध्‍यान देने में दिक्‍कत होती है तो विशेषज्ञ से संपर्क करें। एडीएचडी की समस्या बच्चों में कोई साधारण बात नहीं है बल्कि एडीएचडी के लक्षण दिखाई देने पर माता-पिता को जल्द से जल्द मनोचिकित्सक की सलाह लेनी जरूरी है।

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