नई दिल्ली (एजेंसी)। अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर 18 दिनों तक रहने के बाद भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला आज धरती पर लौट आये। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर हरे चने, मेथी और मूंग के बीज उगाये जो शोध का हिस्सा था। एक्सिओम-4 मिशन के तहत शुभांशु और 3 अन्य अंतरिक्षयात्री- मिशन कमांडर अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री पैगी व्हिटसन, पोलैंड के स्लावोस्ज उजनांस्की-विस्नीवस्की, हंगरी के टिबोर कापू 26 जून को ISS पर पहुंचे थे।
स्टेशन से धरती पर आने में 23 घंटे लगे
एक्सिओम-4 मिशन के अपने 3 सहयोगी अंतरिक्ष यात्रियों के साथ करीब 23 घंटे के सफर के बाद ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट की आज यानी 15 जुलाई को दोपहर 3 बजे कैलिफोर्निया के तट पर लैंडिंग हुई। इसे स्प्लैशडाउन कहते हैं। चारों एस्ट्रोनॉट एक दिन पहले यानी सोमवार की शाम 4:45 बजे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से पृथ्वी के लिए रवाना हुए थे। जानकारी के अनुसार, इन अंतरिक्षयात्रियों ने ISS से जुड़ने के बाद से लगभग 76 लाख मील की दूरी तय करते हुए पृथ्वी के चारों ओर लगभग 433 घंटे या 18 दिन तक 288 परिक्रमाएं कीं।
शोध का हिस्सा
भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला ने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर हरे चने, मेथी और मूंग के बीज उगाए हैं। यह एक शोध का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य यह देखना था कि माइक्रोग्रैविटी (अंतरिक्ष का गुरुत्वाकर्षण) में पौधों के बीज कैसे अंकुरित और विकसित होते हैं।
शुभांशु शुक्ला ने आईएसएस पर मूंग और मेथी के बीजों को पेट्री डिश में अंकुरित किया और फिर उन्हें आईएसएस के एक स्टोरेज फ्रीजर में रख दिया।
इस प्रयोग के तहत, यह भी देखा जाएगा कि इन बीजों से उगे पौधों की आनुवंशिकी, सूक्ष्मजीवी पारिस्थितिकी तंत्र और पोषण प्रोफाइल में क्या बदलाव होते हैं।
-शुभांशु शुक्ला ने एक अन्य प्रयोग में सूक्ष्म शैवाल का भी उपयोग किया है, जिसका उपयोग भोजन, ऑक्सीजन और जैव ईंधन के उत्पादन के लिए किया जा सकता है। यह शोध भविष्य में अंतरिक्ष में टिकाऊ खेती के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है।
-शुभांशु शुक्ला और टीम में शामिल अन्य अंतरिक्ष यात्रियों अंतरिक्ष में 14 दिनों तक कई वैज्ञानिक रिसर्च किए जिसमें अंतरिक्ष में मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करना, जैसे कि जीरो ग्रैविटी में शरीर की प्रतिक्रिया शामिल है।
भारत के लिए क्यों अहम है एक्सिओम मिशन-4
-भारत के लिए यह मिशन इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि देश अपने पहले मानव अंतरिक्ष मिशन ‘गगनयान’ की तैयारी कर रहा है।
-अंतरिक्ष में गए शुभांशु शुक्ला का ये अनुभव और इस मिशन से मिले डेटा गगनयान मिशन के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित होंगे।
-इतना ही नहीं, ये मिशन भारत के करोड़ों युवाओं को विज्ञान और अंतरिक्ष के क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित करेगा।
-यह मिशन यह दिखाएगा कि अब अंतरिक्ष की राह भारतीयों के लिए भी खुल रही है।
-इस मिशन में भारत के साथ हंगरी और पोलैंड भी शामिल हैं, ऐसे में ये मिशन अंतरिक्ष अनुसंधान में बढ़ते वैश्विक सहयोग का प्रतीक भी है।
कुल मिलाकर टीम ने 31 देशों के 60 प्रयोग किए जिसमें विज्ञान और तकनीक को आगे बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रयोग शामिल हैं।
25 जून को दोपहर करीब 12 बजे शुरू हुआ था मिशन 4
सभी एस्ट्रोनॉट 26 जून को भारतीय समयानुसार शाम 4:01 बजे ISS पहुंचे थे। एक्सियम मिशन 4 के तहत 25 जून को दोपहर करीब 12 बजे ये रवाना हुए थे। स्पेसएक्स के फाल्कन-9 रॉकेट से जुड़े ड्रैगन कैप्सूल में इन्होंने कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ान भरी थी। भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला की वापसी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा- मैं पूरे देश के साथ ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला का उनकी ऐतिहासिक अंतरिक्ष यात्रा से पृथ्वी पर वापसी के लिए स्वागत करता हूं। शुभांशु ने अपने समर्पण, साहस से अरबों सपनों को प्रेरित किया है। यह हमारे अपने मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन- गगनयान की दिशा में एक और मील का पत्थर है।
17 अगस्त तक भारत लौट सकते हैं शुभांशु
शुभांशु 17 अगस्त तक भारत लौट सकते हैं। अंतरिक्ष यात्रियों को लैंडिंग के बाद मेडिकल जांच और रिहैबिलिटेशन के लिए आमतौर पर सात दिन लगते हैं, ताकि वे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में फिर से ढल सकें। इसके बाद ही शुभांशु भारत लौटेंगे।
शाम 4:45 बजे ISS से पृथ्वी के लिए निकले थे शुभांशु
14 जुलाई को दोपहर करीब 02:15 बजे क्रू ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट में पहुंचा।
शाम 4:45 बजे स्पेसक्राफ्ट ISS के हार्मनी मॉड्यूल से अनडॉक हुआ।
15 जुलाई को दोपहर करीब 3 बजे कैलिफोर्निया के तट पर स्प्लैशडाउन हुआ।
शुभांशु ने स्पेस स्टेशन में क्या-क्या किया ?
60 वैज्ञानिक प्रयोग: शुभांशु ने मिशन के दौरान 60 से ज्यादा वैज्ञानिक प्रयोगों में हिस्सा लिया। इनमें भारत के सात प्रयोग शामिल थे। उन्होंने मेथी और मूंग के बीजों को अंतरिक्ष में उगाया। स्पेस माइक्रोएल्गी’ प्रयोग में भी हिस्सा लिया। अंतरिक्ष में हड्डियों की सेहत पर भी प्रयोग किए।
प्रधानमंत्री से बात: 28 जून 2025 को शुभांशु ने ISS से पीएम नरेंद्र मोदी के साथ लाइव वीडियो कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष से भारत बहुत भव्य दिखता है। PM ने पूछा कि आप गाजर का हलवा लेकर गए हैं। क्या साथियों को खिलाया। इस पर शुभांशु ने कहा- हां साथियों के साथ बैठकर खाया।
छात्रों से संवाद: 3, 4 और 8 जुलाई को उन्होंने तिरुवनंतपुरम, बेंगलुरु और लखनऊ के 500 से अधिक छात्रों के साथ हैम रेडियो के जरिए बातचीत की। इसका मकसद युवाओं में STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) के प्रति रुचि बढ़ाना था।
ISRO के साथ संवाद: 6 जुलाई को उन्होंने ISRO के चेयरमैन डॉ. वी. नारायणन और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बातचीत की, जिसमें उनके प्रयोगों और भारत के गगनयान मिशन के लिए उनके योगदान पर चर्चा हुई।
पृथ्वी की तस्वीरें: शुभांशु ने ISS के कपोला मॉड्यूल से पृथ्वी की शानदार तस्वीरें खींचीं, जो सात खिड़कियों वाला एक खास हिस्सा है।
41 साल बाद कोई भारतीय अंतरिक्ष में गया
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा और भारतीय एजेंसी इसरो के बीच हुए एग्रीमेंट के तहत भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला को इस मिशन के लिए चुना गया था। शुभांशु इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर जाने वाले पहले और स्पेस में जाने वाले दूसरे भारतीय हैं। इससे 41 साल पहले राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत यूनियन के स्पेसक्राफ्ट से अंतरिक्ष यात्रा की थी।
शुभांशु का ये अनुभव भारत के गगनयान मिशन में काम आएगा। ये भारत का पहला मानव अंतरिक्ष मिशन है, जिसका उद्देश्य भारतीय गगनयात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजना और सुरक्षित रूप से वापस लाना है। इसके 2027 में लॉन्च होने की संभावना है। भारत में एस्ट्रोनॉट को गगनयात्री कहा जाता है। इसी तरह रूस में कॉस्मोनॉट और चीन में ताइकोनॉट कहते हैं।
एक्सियम-4 मिशन का हिस्सा हैं शुभांशु शुक्ला
शुभांशु शुक्ला एक्सियम-4 मिशन का हिस्सा हैं, जिसकी एक सीट के लिए भारत ने 548 करोड़ रुपए चुकाए हैं। यह एक प्राइवेट स्पेस फ्लाइट मिशन है, जो अमेरिकी स्पेस कंपनी एक्सियम, NASA, इसरो और स्पेसएक्स की साझेदारी से हो रहा है।
एक्सियम स्पेस का यह चौथा मिशन है
17 दिन का एक्सियम 1 मिशन अप्रैल 2022 में लॉन्च हुआ था।
08 दिन का एक्सियम का दूसरा मिशन 2 मई 2023 में लॉन्च हुआ था।
18 दिन का तीसरा मिशन 3 जनवरी 2024 में लॉन्च किया गया था।
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन क्या है?
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पृथ्वी के चारों ओर घूमने वाला एक बड़ा अंतरिक्ष यान है। इसमें एस्ट्रोनॉट रहते हैं और माइक्रो ग्रेविटी में एक्सपेरिमेंट करते हैं। यह 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रैवल करता है। यह हर 90 मिनट में पृथ्वी की परिक्रमा पूरी कर लेता है। 5 स्पेस एजेंसीज ने मिलकर इसे बनाया है। स्टेशन का पहला पीस नवंबर 1998 में लॉन्च किया गया था।
उद्देश्य – नासा और इसरो के बीच वैज्ञानिक ज्ञान को बढ़ावा और दीर्घकालिक संबंध
नासा और इसरो के बीच सहयोग से, Axiom मिशन 4, राष्ट्रपति ट्रम्प और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा व्यक्त की गई प्रतिबद्धता को पूरा करने में सक्षम हुआ, जिसमें स्टेशन पर पहला ISRO अंतरिक्ष यात्री भेजने का वादा किया गया था। अंतरिक्ष एजेंसियों ने पाँच संयुक्त विज्ञान अन्वेषणों और दो कक्षा-आधारित विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित प्रदर्शनों में भाग लिया। NASA और ISRO के बीच वैज्ञानिक ज्ञान को आगे बढ़ाने और अंतरिक्ष सहयोग का विस्तार करने के साझा दृष्टिकोण पर आधारित एक दीर्घकालिक संबंध है। इस निजी मिशन ने पोलैंड और हंगरी के पहले अंतरिक्ष यात्रियों को भी अंतरिक्ष स्टेशन पर रहने के लिए भेजा।
अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन, पृथ्वी की निचली कक्षा में अर्थव्यवस्था विकसित करने का एक आधार है। नासा का लक्ष्य पृथ्वी से परे एक मज़बूत अर्थव्यवस्था हासिल करना है जहाँ एजेंसी सूक्ष्म-गुरुत्वाकर्षण में अपने विज्ञान और अनुसंधान उद्देश्यों को पूरा करने के लिए कई ग्राहकों में से एक के रूप में सेवाएँ खरीद सके। पृथ्वी की निचली कक्षा के लिए नासा की व्यावसायिक रणनीति सरकार को कम लागत पर विश्वसनीय और सुरक्षित सेवाएँ प्रदान करती है, जिससे एजेंसी मंगल ग्रह की तैयारी के लिए चंद्रमा पर आर्टेमिस मिशनों पर ध्यान केंद्रित कर सकती है, साथ ही उन गहरे अंतरिक्ष मिशनों के लिए पृथ्वी की निचली कक्षा को प्रशिक्षण और परीक्षण स्थल के रूप में उपयोग करना जारी रख सकती है।