– बालासोर में 3 ट्रेनों के दुर्घटनाग्रस्त होने से अब तक 300 से ज़्यादा की मौत हो चुकी है, स्थानीय निवासी निभा रहे हैं मानव धर्म
नई दिल्ली। ओडिशा के बालासोर में शुक्रवार शाम करीब 7 बजे हुआ ट्रेन हादसा इतना भयानक था कि कोरोमंडल एक्सप्रेस ट्रेन के कई कोच तबाह हो गए। एक इंजन तो मालगाड़ी के रैक पर ही चढ़ गया। टक्कर इतनी भीषण थी कि खिड़कियों के कांच टूट गए और करीब 50 लोग बाहर जाकर गिरे। तीन ट्रेनों के दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद अब तक 288 लोगों की मौत हो चुकी है। इस घटना को लेकर कई संभावित सवाल उठाए जा रहे हैं। शुक्रवार को शाम 6.50 बजे से 7.00 बजे के बीच ओडिशा के बालासोर में तीन ट्रेनों के बीच दो टक्कर हुई, जिससे कई डिब्बे एक दुसरे के ऊपर आ गए।
अंधेरा होने के कारण रोते-बिलखते लोग अपनों को तलाशते रहे। कुछ को धड़ मिला, तो सिर नहीं। लोग चीखते हुए अपनों के टुकड़े बटोरते दिखे। हालात ऐसे थे कि बोगियों में फंसे बच्चों और महिलाओं को कोच से बाहर निकालने के लिए सीढ़ी का सहारा लेना पड़ा। ट्रेन में फंसे हुए लोगों को बाहर निकालने के स्थानीय लोग भी देर रात तक जी-जान से जुटे दिखे। अस्पताल में भी घायलों की मदद के लिए कई लोग खड़े थे।
इस हादसे में अब तक 261 लोगों की मौत हो गई है। वहीं, 900 से ज्यादा लोग घायल हैं। ऐसे में मरने वालों का आंकड़ा और भी बढ़ सकता है। एक्सीडेंट में घायल हुए लोगों ने इस हादसे का जो आंखों-देखा हाल बताया, उससे समझा जा सकता है कि हादसा कितना भयावह था।
एक यात्री ट्रेन, कोरोमंडल शालीमार एक्सप्रेस, एक खड़ी मालगाड़ी से टकराने के बाद पटरी से उतर गई और एक अन्य ट्रेन, यशवंतपुर-हावड़ा सुपरफास्ट, पटरी से उतरे डिब्बों में दुर्घटनाग्रस्त हो गई। टक्कर इतनी जोरदार थी कि पटरियों पर गिरने से पहले डिब्बे हवा में ऊंचे उठ गए। एक कोच उसकी छत पर जा गिरा। दोनों ट्रेनों के 17 डिब्बे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए।
एक पैसेंजर सौम्यरंजन शेट्टी ने बताया कि वे भद्रक ब्लॉक में रहते हैं और बालासोर में नौकरी करते हैं। शाम को घर जाने के लिए उन्होंने 6:40 बजे बालासोर से कोरोमंडल ट्रेन पकड़ी। 6:55 पर बहानगा स्टेशन पर कुछ आवाज आई और ट्रेन पलट गई। तब समझ आया कि ट्रेन का एक्सीडेंट हो गया है। जैसे ही ट्रेन रुकी, तो मैं पहले बाहर निकला। मेरे साथ जो तीन-चार लोग थे, उनका रेस्क्यू किया गया। एक आदमी मुझे पकड़कर नीचे लाया और पानी पिलाया। इसके बाद मुझे एम्बुलेंस में बिठाकर अस्पताल लाया गया।
एक अन्य पैसेंजर ने बताया कि मुझे ट्रेन में नींद आ गई थी। तभी गाड़ी पलट गई। झटके से मेरी नींद खुली। मैं रिजर्व बोगी में था, लेकिन इसमें जनरल बोगी जैसे लोग भरे थे। मेरी आंख खुली तो मैंने देखा कि 10-12 लोग मेरे ऊपर पड़े हुए हैं। जब मैं ट्रेन से बाहर निकला तो देखा कि किसी का हाथ नहीं है, किसी का पैर नहीं है। किसी का चेहरा खराब हो चुका है। मुझे हाथ और गर्दन में चोट आई है।
स्थानीय निवासी निभा रहे हैं मानव धर्म
जागरूक लोग हादसे में शिकार लोगों के बचाव व राहत कार्य में जुट गए हैं। आस -पास के लोग घायलों के लिए रक्तदान भी कर रहे हैं। राहत कार्य में जुटे लोगों का कहना है कि हम लोग पास के रहने वाले हैं हम साथ नहीं ड़ेंगेंगे तो कौन देगा ? ये सभी लोग हमारे अपने हैं।
रेल मंत्रालय ने दुर्घटना के कारणों की जांच के आदेश दिए हैं। एक के बाद एक दुर्घटनाएं कैसे हुईं, इसके एक से अधिक संस्करण हैं, लेकिन यह निश्चित है कि एक ही स्थान पर तीन ट्रेनें और दो टक्करें हुईं। दुर्घटना को लेकर कई सवालों के बीच यह है कि कोरोमंडल शालीमार एक्सप्रेस स्थिर मालगाड़ी के समान ट्रैक पर कैसे थी। यह तकनीकी खराबी थी या मानवीय भूल ? कई ने सिग्नल त्रुटि की संभावना जताई है।