मातृत्‍व अवकाश न देना, मौलिक मानव अधिकारों का उल्लंघन -हिमाचल हाई कोर्ट

-मामला एक प्रतिवादी के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसे प्रति वर्ष 240 दिन काम करने की न्यूनतम आवश्यकता को पूरा करने में विफल रहने के कारण कार्य-प्रभारी स्थिति के परिणामी लाभ से वंचित कर दिया गया था। हालाँकि, एच.पी. प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने उसे डीम्ड मैटरनिटी लीव का लाभ दिया, जिससे न्यूनतम आवश्यकता और संबंधित लाभ पूरे हुए। राज्य ने इस आदेश को मौजूदा याचिका में चुनौती दी थी। हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्‍यूनल ने उसे डीम्ड मैटरनिटी लीव का लाभ दिया था। इससे न्यूनतम आवश्यकता और संबंधित लाभ पूरे हुए। राज्य ने इस आदेश को मौजूदा याचिका में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने जांच के बाद; विभिन्न सम्मेलनों, संधियों और संवैधानिक प्रावधानों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया। हाई कोर्ट की बेंच ने मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 25(2) का उल्लेख किया है। इसके अनुसार, मातृत्व और बचपन दोनों ‘विशेष देखभाल और सहायता’ के हकदार हैं।

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-गर्भवती महिला को कठिन श्रम करने के लिए मजबूर नहीं करना था

-हाई कोर्ट की बेंच ने मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 25(2) का उल्लेख किया है। इसके अनुसार, मातृत्व और बचपन दोनों ‘विशेष देखभाल और सहायता’ के हकदार हैं।

शिमला। मातृत्‍व अवकाश को हिमाचल हाई कोर्ट ने मौलिक मानव अधिकार बताया है। जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस वीरेंद्र सिंह की बेंच ने एक दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी को ‘डीम्ड’ मातृत्व अवकाश के लाभ के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।

मामला एक प्रतिवादी के इर्द-गिर्द घूमता है, जिसे प्रति वर्ष 240 दिन काम करने की न्यूनतम आवश्यकता को पूरा करने में विफल रहने के कारण कार्य-प्रभारी स्थिति के परिणामी लाभ से वंचित कर दिया गया था। हालाँकि, एच.पी. प्रशासनिक ट्रिब्यूनल ने उसे डीम्ड मैटरनिटी लीव का लाभ दिया, जिससे न्यूनतम आवश्यकता और संबंधित लाभ पूरे हुए। राज्य ने इस आदेश को मौजूदा याचिका में चुनौती दी थी।

हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक ट्रिब्‍यूनल ने उसे डीम्ड मैटरनिटी लीव का लाभ दिया था। इससे न्यूनतम आवश्यकता और संबंधित लाभ पूरे हुए।  राज्य ने इस आदेश को मौजूदा याचिका में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने जांच के बाद; विभिन्न सम्मेलनों, संधियों और संवैधानिक प्रावधानों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण किया। हाई कोर्ट की बेंच ने मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा के अनुच्छेद 25(2) का उल्लेख किया है। इसके अनुसार, मातृत्व और बचपन दोनों ‘विशेष देखभाल और सहायता’ के हकदार हैं।

हाईकोर्ट की बेंच ने कहा कि प्रतिवादी, दैनिक वेतन भोगी महिला कर्मचारी है उसे गर्भवती होने के दौरान कठिन श्रम करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए था। ऐसे करने से उसके स्‍वास्‍थ्‍य पर बुरा असर होता साथ ही उस बच्‍चे के लिए भी ऐसा करना ठीक नहीं था। इससे महिला को खतरा हो सकता था जबकि होने वाले बच्‍चे की भलाई और विकास से भी समझौता होगा। कोर्ट ने कहा कि ‘प्रतिवादी के ‘मौलिक मानव अधिकार’ के रूप में मातृत्व अवकाश से इनकार नहीं किया जा सकता था, जिससे याचिकाकर्ता के कार्यों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 29 और 39D का उल्लंघन माना जाता है।’

केस का नाम: हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य। बनाम सीता देवी

केस नंबर: सीडब्ल्यूपी नंबर 647 ऑफ 2020

बेंच: जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस वीरेंद्र सिंह

आदेश दिनांक: 12.06.2023

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