मनी लांड्रिंग गंभीर अपराध – सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में मनी लांड्रिंग को देश की वित्तीय व्यवस्था और संप्रभुता व अखंडता के लिए खतरा बताते हुए कहा है कि यह कोई साधारण अपराध नहीं है। यह एक गंभीर अपराध है।

DrashtaNews

– पटना हाईकोर्ट के “लापरवाह” आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा इसमें व्यक्ति अपने लाभ के लिए राष्ट्र हित की अनदेखी करता है। मनी लॉन्ड्रिंग कोई सामान्य अपराध नहीं है और यह एक गंभीर अपराध है, जिसका देशों की संप्रभुता और अखंडता सहित वित्तीय प्रणालियों पर अंतरराष्ट्रीय प्रभाव पड़ता है।

नई दिल्ली (एजेंसी )। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में मनी लांड्रिंग को देश की वित्तीय व्यवस्था और संप्रभुता व अखंडता के लिए खतरा बताते हुए कहा है कि यह कोई साधारण अपराध नहीं है। यह एक गंभीर अपराध है। सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोपी व्यक्ति को दी गई जमानत खारिज की, क्योंकि हाईकोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम, 2002 (PMLA) की धारा 45 के तहत निर्धारित दो शर्तों को पूरा करने में विफल रहा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मनी लांड्रिंग रोकथाम अधिनियम(पीएमएलए) का उद्देश्य मनी लांड्रिंग रोकना है, जो देश की वित्तीय व्यवस्था के लिए खतरा है। मनी लांड्रिंग एक गंभीर अपराध है, जिसमें व्यक्ति अपना लाभ बढ़ाने के लिए राष्ट्र और समाज हित की अनदेखी करता है। इस अपराध को किसी भी तरह से क्षुद्र प्रकृति का अपराध नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने दोहराया कि धारा 45 में उल्लिखित शर्तों का पालन CrPC की धारा 439 के तहत जमानत के लिए किए गए आवेदन के संबंध में भी करना होगा। साथ ही धारा 24 में प्रावधान है कि धारा 3 के तहत मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में आरोपित व्यक्ति के मामले में प्राधिकरण या न्यायालय, जब तक कि इसके विपरीत साबित न हो जाए, यह मान लेगा कि अपराध की ऐसी आय मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल है। इसलिए यह साबित करने का भार कि अपराध की आय मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल नहीं है, अपराध के आरोपित व्यक्ति पर होगा।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह कानून मनी लांड्रिंग गतिविधियों से निपटने के लिए बनाया गया है। इसमें वित्तीय प्रणाली पर अंतरराष्ट्रीय प्रभाव डालने वाली मनी ला¨ड्रग की गतिविधियां आती हैं, जिसका असर देशों की संप्रभुता और अखंडता पर भी पड़ता है। दुनिया भर में मनी लांड्रिंग को अपराध का गंभीर रूप माना गया है। इसमें शामिल अपराधी को सामान्य अपराधी से अलग वर्ग का माना जाता है।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि मनी लांड्रिंग की गतिविधि में शामिल अपराधी के अपराध की गंभीरता और PMLA की धारा 45 के कठोर प्रविधानों पर विचार किए बगैर अदालतों द्वारा सरसरी तौर पर जमानत दिए जाने को सही नहीं कहा जा सकता। आरोपित व्यक्तियों की जमानत याचिकाओं पर निर्णय करते समय मनी लांड्रिंग रोकथाम कानून में निर्धारित दोहरी शर्तों पर विचार करना अनिवार्य है। PMLA की धारा 45 की दोहरी शर्तों के अनुसार अभियोजक को जमानत याचिका का विरोध करने का अवसर दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह मानने के लिए उचित आधार है कि आरोपित अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर कोई अपराध नहीं करेगा।

इन टिप्पणियों के साथ न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने मनी लांड्रिंग के आरोपित कन्हैया प्रसाद को जमानत देने का पटना हाई कोर्ट का आदेश खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कन्हैया प्रसाद को एक सप्ताह के भीतर समर्पण करने का आदेश दिया है।

मामला आरोपित कन्हैया प्रसाद से जुड़ा

साथ ही मामला नए सिरे से विचार के लिए हाई कोर्ट को वापस भेजा है। यह भी कहा है कि जिस पीठ ने पहले फैसला दिया था उसके अलावा किसी दूसरी पीठ को मामला विचार के लिए सौंपा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश गुरुवार को पटना हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दाखिल ईडी की अपील स्वीकार करते हुए सुनाया है।

पटना हाई कोर्ट ने छह मई, 2024 को कन्हैया प्रसाद की याचिका स्वीकार करते हुए उसे मनी लांड्रिंग मामले में जमानत दे दी थी। मौजूदा मामला मैसर्स बोर्ड सन कमोडिटीज प्राइवेट लिमिटेड और उसके निदेशकों के गैर कानूनी खनन और रेत की गैर कानूनी ढंग से बिक्री से जुड़ा है। इस मामले में आइपीसी, पीएमएलए व अन्य कानूनों के तहत करीब 20 मामले दर्ज हैं। इसमें सरकार को करीब 161 करोड़ रुपये के राजस्व का नुकसान हुआ।

ED के मुताबिक, अपराध से प्राप्त आय का इस्तेमाल संपत्ति खरीदने, परिवारिक ट्रस्ट की अधिकृत संपत्ति में रिनोवेशन का काम कराने में किया गया। इस मामले में ईडी ने 10 नवंबर 2023 को अभियुक्तों के खिलाफ अदालत में शिकायत (आरोपपत्र) दाखिल की और PMLA कोर्ट ने उसी दिन उस पर संज्ञान लिया। पटना हाई कोर्ट ने इसके बाद अभियुक्त को जमानत दे दी थी, जिसके खिलाफ ED सुप्रीम कोर्ट आई थी।

पटना हाईकोर्ट के “लापरवाह” 

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का आदेश रद्द करते हुए फैसले में कहा कि हाई कोर्ट ने बहुत ही कैजुअल तरीके से जमानत दी है। धारा 45 के प्रविधानों पर विचार नहीं किया है। हाई कोर्ट ने अभियुक्त को जमानत देते वक्त आदेश में यह दर्ज नहीं किया कि अभियुक्त के अपराध में दोषी नहीं होने का तर्कसंगत आधार है और जमानत के दौरान उसके अपराध करने की कोई संभावना नहीं है। कोर्ट ने कहा कि धारा 45 की इन जरूरी शर्तों का पालन न करने के चलते हाई कोर्ट का आदेश बना रहने लायक नहीं है। यह  देखते हुए कि मनी लॉन्ड्रिंग कोई सामान्य अपराध नहीं है और यह एक गंभीर अपराध है, जिसका देशों की संप्रभुता और अखंडता सहित वित्तीय प्रणालियों पर अंतरराष्ट्रीय प्रभाव पड़ता है, 

न्यायालय ने कहा कि  “मनी लॉन्ड्रिंग के अपराध में शामिल अपराधी की जमानत याचिका पर विचार करते समय न्यायालय द्वारा कोई भी लापरवाही या सरसरी दृष्टिकोण और अपराध की गंभीरता पर विचार किए बिना और धारा 45 की कठोरता पर विचार किए बिना गुप्त आदेश पारित करके उसे जमानत देना, उचित नहीं ठहराया जा सकता।”

अनुच्छेद 20(3) गवाह के रूप में सम्मन किए गए व्यक्ति पर लागू नहीं होगा

विजय मदनलाल चौधरी एवं अन्य बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 20(3) (आत्म-दोष से उन्मुक्ति) के तहत संरक्षण केवल तभी लागू होगा जब व्यक्ति के खिलाफ औपचारिक आरोप लगाया गया हो, न कि तब जब व्यक्ति को पीएमएलए की धारा 50 के तहत सम्मन किया गया हो।

न्यायालय ने टिप्पणी की,

संविधान का अनुच्छेद 20(3) धारा 50 की उपधारा (2) के तहत जारी किए गए ऐसे समन के अनुसार बयान दर्ज करने की प्रक्रिया के संबंध में लागू नहीं होगा। अनुच्छेद 20(3) में प्रयुक्त वाक्यांश “गवाह बनना” है न कि “गवाह के रूप में पेश होना”। इसका अर्थ यह है कि अभियुक्त को दी जाने वाली सुरक्षा, जहां तक यह “गवाह बनना” वाक्यांश से संबंधित है, कोर्ट रूम में गवाही देने के लिए बाध्यता के संबंध में है। यह उससे पहले प्राप्त की गई बाध्य गवाही तक भी विस्तारित हो सकती है। इसलिए यह उस व्यक्ति को उपलब्ध है, जिसके विरुद्ध किसी अपराध के किए जाने से संबंधित औपचारिक आरोप लगाया गया, जिसके परिणामस्वरूप सामान्य तौर पर अभियोजन हो सकता है।”

मनी लॉन्ड्रिंग स्वतंत्र अपराध

न्यायालय ने प्रतिवादी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि चूंकि वह इस अपराध में आरोपी नहीं है, इसलिए उसे समन नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग का अपराध स्वतंत्र अपराध है।

न्यायालय ने कहा,

“हाईकोर्ट द्वारा पारित विवादित आदेश PMLA की धारा 45 के विपरीत है। साथ ही स्थापित कानूनी स्थिति के विपरीत है, इसलिए हमारा मानना ​​है कि विवादित आदेश रद्द किया जाना चाहिए। मामले को नए सिरे से विचार के लिए हाईकोर्ट को वापस भेजा जाना चाहिए। तदनुसार, विवादित आदेश रद्द किया जाता है। मामले को नए सिरे से विचार के लिए हाईकोर्ट को वापस भेजा जाता है। साथ ही चीफ जस्टिस से अनुरोध किया जाता है कि वह मामले को विवादित आदेश पारित करने वाली पीठ के अलावा किसी अन्य पीठ के समक्ष रखें। हम स्पष्ट कर सकते हैं कि हमने मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं की है।”  तदनुसार, अपील स्वीकार की गई।

केस टाइटल: सहायक निदेशक बनाम कन्हैया प्रसाद के माध्यम से भारत संघ

 

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