-सिंधु जल संधि की भावना मित्रता और सहयोग की थी, लेकिन पाकिस्तान ने आतंकवाद के जरिए इस पर ठोकर मारी है।
नई दिल्ली (एजेंसी) सीजफायर के बाद से भारत लगातार पाकिस्तान को सख्त संदेश दे रहा है। भारत ने पाकिस्तान को दो टूक कह दिया है – ‘अब पानी और खून साथ नहीं बहेंगे!’ सिंधु जल संधि को निलंबित करने के 20 दिन बाद भारत ने मंगलवार 13 मई को पाकिस्तान को साफ संदेश दिया कि आतंक छोड़े, वरना पानी भूले!
ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान को करारा जवाब देने के बाद एक ओर जहां पीएम मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए पाकिस्तान को स्पष्ट शब्दों में भारत के न्यू नॉर्मल से अवगत कराया, वहीं अब विदेश मंत्रालय ने भी पड़ोसी मुल्क की बोलती बंद कर दी है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन “विश्वसनीय और स्थायी रूप से” नहीं छोड़ता, तब तक सिंधु जल संधि पर रोक जारी रहेगी। ये एलान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने मंगलवार को किया। उन्होंने कहा कि सिंधु जल संधि की भावना मित्रता और सहयोग की थी, लेकिन पाकिस्तान ने आतंकवाद के जरिए इस पर ठोकर मारी है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जम्मू-कश्मीर मुद्दा, आतंकवाद पर भारत की जीरो टॉलरेंस नीति समेत कई मुद्दों पर बात की, लेकिन इस दौरान उन्होंने जो बड़ी बात कही वो ये थी कि सिंधु जल समझौता स्थगित रहेगा। भारत के इस रुख से यह साफ हो गया है कि वह पाकिस्तान को अभी राहत देने के मूड में नहीं है।
सिंधु संधी पर क्या कहा विदेश मंत्रालय ने?
विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा कि ‘सीसीएस (सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति) के फैसले के बाद सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया गया है। मैं आपको बताना चाहता हूं कि सिंधु जल संधि सद्भावना और मित्रता की भावना से संपन्न हुई थी, जैसा कि संधि की प्रस्तावना में निर्दिष्ट है। हालांकि, पाकिस्तान ने कई दशकों से सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देकर इन सिद्धांतों का पालन नहीं कर रहा है। अब सीसीएस के फैसले के अनुसार, भारत संधि को तब तक स्थगित रखेगा, जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद के लिए अपने समर्थन को विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से त्याग नहीं देता। कृपया ध्यान दें कि जलवायु परिवर्तन, जनसांख्यिकीय बदलाव और तकनीकी परिवर्तनों ने धरातल पर भी नई वास्तविकताओं को जन्म दिया है।’
भारत ने क्यों रद्द किया समझौता?
22 अप्रैल को पहलगाम आंतकी हमले के बाद भारत ने सबसे पहली जवाबी कार्रवाई करते हुए 23 अप्रैल को CCS की बैठक के बाद 5 बड़े फैसले किए थे, जिसमें सिंधु जल संधि को स्थगित करना सबसे बड़ा फैसला था। दोनों देशों के बीच 4 युद्धों और दशकों से जारी सीमा पार आतंकवाद के बावजूद इस संधि को बरकरार रखा गया था, लेकिन भारत ने इस बार सख्ती दिखाते हुए यह बड़ा फैसला लिया। बता दें कि सिंधु नदी के जल पर पाकिस्तान की 70 फीसदी कृषि निर्भर करती है। कई शहरों के लिए पेयजल की आपूर्ति भी इस नदी से की जाती है।
क्या है सिंधु जल समझौता?
सिंधु जल समझौता तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी मिलिट्री जनरल अयूब खान के बीच कराची में सितंबर 1960 में हुआ था। 65 साल पहले हुई सिंधु जल संधि के तहत भारत को सिंधु और उसकी सहायक नदियों से 20 फीसदी पानी मिलता है, जबकि पाकिस्तान को 80 फीसदी पानी मिलता है। भारत अपने हिस्से में से भी करीब 90 फीसदी पानी ही उपयोग करता है। साल 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु घाटी को 6 नदियों में विभाजित करते हुए इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। इस समझौते के तहत दोनो देशों के बीच प्रत्येक साल सिंधु जल आयोग की बैठक अनिवार्य है। समझौते के तहत पू्र्वी नदियों पर भारत का अधिकार है, जबकि पश्चिमी नदियों को पाकिस्तान के अधिकार में दे दिया गया। इस समझौते की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी।
किस तरह किया गया नदियों का बंटवारा?
भारत को आवंटित 3 पूर्वी नदियां सतलज, ब्यास और रावी के कुल 168 मिलियन एकड़ फुट में से 33 मिलियन एकड़ फीट वार्षिक जल आवंटित किया गया है। भारत के उपयोग के बाद बचा हुआ पानी पाकिस्तान चला जाता है। वहीं, पश्चिमी नदियां जैसे सिंधु, झेलम और चिनाब का लगभग 135 मिलियन एकड़ फीट वार्षिक जल पाकिस्तान को आवंटित किया गया है। सिंधु जल प्रणाली में मुख्य नदी के साथ-साथ 5 सहायक नदियां भी शामिल हैं। इन नदियों में रावी, ब्यास, सतलज, झेलम और चिनाब हैं। रावी, ब्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां, जबकि चिनाब, झेलम और सिंधु को पश्चिमी नदियां कहा जाता है। इन नदियों का पानी भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए महत्वपूर्ण है।
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