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महाकुम्भ में धर्म पर अधर्म का कब्जा

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मैं द्रष्टा केवल इतना जानता हूं कि जो, छूपाया जाय वह पाप है और जो,जताया जाय वह पूण्य कहलाता है।

रविकांत सिंह ‘द्रष्टा’

रामायण के अनुसार, राम की नगरी अयोध्या, धर्म की नगरी कही जाती है। इसी धर्म की नगरी अयोध्या में एक जघन्य पाप हुआ है। कोतवाली अयोध्या क्षेत्र में 1फरवरी को एक युवती का निर्वस्त्र शव गांव के बाहर एक सूखे नाले में मिला है। उसके हाथ-पैर पेड़ की लताओं से बांधे थे। उसके निजी अंगों पर भी गहरे चोट के निशान थे। इससे उसकी दुष्कर्म के बाद हत्या की आशंका जताई गई थी।युवती की हत्या के मामले में पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मामले में चुप्पी साध रखी है।  दुष्कर्म हुआ या नहीं, पोस्टमार्टम के 24 घंटे बाद भी पुलिस नहीं बता रही है।

 इससे पहले महाकुम्भ मेले में आग की घटना और मौनी अमावस्या स्नान के दौरान मची भगदड़ में कई श्रद्धालुओं की जान जा चुकी है। कई बेटों ने अपनी मां को तो कईयों ने अपनी बहन-भाई बेटों को सदा के लिए खो दिया है। कुम्भ मेंले में चीखते चिल्लाते बदहवास श्रद्धालु अपने खोए परिजनों को तलाश रहे हैं। अंतिम संस्कार के लिए कई श्रद्धालु अपनों की लाशें खोज रहे हैं। वीवीआईपी की सेवा में तत्पर शासन-प्रशासन के कुछ अधिकारी निर्दयता ,कटुता, कायरता और निर्लज्जता का अपना परिचय दे रहे थे।

मीडियाकर्मियों को धमकी

 देशदुनिया से सत्य छिपाने के लिए मीडियाकर्मियों को धमकी देने से लेकर प्रशासन मारपीट कर रहा है। दुनिया भर के लोग उत्तर प्रदेश सरकार से प्रश्न कर रहे हैं कि व्यवस्था की बदनामी हो क्या इसके लिए मीडिया से छूपाने का अधर्म सरकार कर सकती है? धर्म के नाम पर हो रहे इस अधर्म को पूरी दुनिया देख रही है।

संवेदनाओं पर चिन्तन

प्रयागराज के धर्मक्षेत्र पर अधर्मियों के कब्जे को देखने वाला मैं द्रष्टा हूं। उत्तर प्रदेश सरकार के मुखिया आदित्यनाथ  लाशों की गिनती, व्यवस्था में शामिल उच्च अधिकारियों के भ्रष्टाचार,श्रद्धालुओं के साथ दुर्व्यवहार,सब कुछ पत्रकारों से छिपाने की कोशिश कर रहे हैं। मैं द्रष्टा केवल इतना जानता हूं कि जो छूपाया जाय वह पाप है और जो जताया जाय वह पूण्य कहलाता है। धर्म की इस परिभाषा को पूरी तरह बदल देने वाले उदण्ड और मोहमाया में लिप्त संन्यासी चोला धारण करने वालों की संवेदनाओं पर चिन्तन कर रहा हूं। क्या यही सनातनी का कृत्य है?

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मैं, द्रष्टा धर्म और अधर्म के विषय में केवल इतना जानता हूं कि व्यक्ति का जीवन दो ही प्रकार का होता है। एक लौकिक और दूसरा पारलौकिक या जीवन। शरीर को आराम देने के लिए धन,संपदा जुटाना, वस्तुओं,सगे सबंधियों, मित्रों, पदप्रतिष्ठा आदि से मोह वाला व्यक्ति लौकिक जीवन जीता है। और इन सब वस्तुओं के होने के बावजूद मोह से रहित होकर सत्य ,अहिंसा, प्रेम, दया, करुणा, न्याय,धैर्य और समर्पण को धारण करने वाला व्यक्ति पारलौकिक या आध्यात्मिक जीवन जीता है। पारलौकिक जीवन जीना ही मोक्ष है।

संगम में ही क्यों स्नान करना चाहते थे श्रद्धालु

इस वर्ष माघ मास की अमावस्या तिथि पर मकर राशि में सूर्य, चंद्रमा और बुद्ध तीनों ग्रह स्थित हो रहे हैं और बृहस्पति ग्रह नवम दृष्टि में है। इस विशिष्ट संयोग को त्रियोग या त्रिवेणी योग कहा जाता है। यह त्रिवेणी योग समुद्र मंथन काल के योग के समान है। इस योग में त्रिवेणी स्नान विशेष फलदायी है। यह मानकर श्रद्धालुओं की संख्या इकठ्ठी हो गयी। एक साथ स्नान के लिए प्रशासन ने भी उकसाया। श्रद्धालुओं की भीड़ बेकाबू हो गई और लोग एक दूसरे को कूचलते हुए निकलने लगे। ऐसी दो जगहों पर घटनाए हुर्इं।

इन घटनाओं में सैकड़ों की तादात में श्रद्धालु घायल हुए और मारे गये। लोगों की उखड़ती हृदय को चीर देने वाली अन्तिम सांसे बचाव के लिए पूकार रही थी। लकिन अफसोस प्रशासन उन्हें बचाने में नाकाम रहा। उल्टे ही शासनप्रशासन इस हृदय विदारक रुदन और क्रंदन को छिपाने में लगा रहा। महाकुम्भ में आने का निमंत्रण देने वाले मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने असमाजिक और अमानवीय व्यवहार का परिचय देते हुए 17 घण्टों तक इस घटना पर चुप्पी साधे रहे। शंकराचार्य स्वामी श्री अविमुक्तेश्वरानन्द ने योगी आदित्यनाथ को इस घटना का जिम्मेदार मानते हुए झूठा, निर्लज्ज, नालायक मुख्यमंत्री बताया और इस्तीफा मांगा है।

धर्म का बिजनेस मॉडल

मैं द्रष्टा, धर्म के नाम पर आस्थावान उन पगलाए महिला और पुरुषों को देख रहा हूं। जिन्हें धर्म का ज्ञान नहीं है फिर भी वे केवल श्रद्धाभाव से मां गगा को समर्पित हैं। और यही समर्पण इन्हें अपनी जमापूंजी को खोकर भी सनातन परम्परा के अनुसार मोक्ष के लिए प्रेरित करता है। यही आस्था इनके लिए धर्म है। और इसी धर्म का धन्धा करने वाले नेताओ में गेरुवा वस्त्रधारी मुख्यमंत्री आदित्यनाथ शामिल हैं।

अंग्रेजों के नाजायज औलादों ने महाकुम्भ को दूषित कर दिया है। वीवीआईपी संस्कृति राजशाही समय से चली रही है। साल 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सासदों, विधायकों और मंत्रियों की गाड़ियों से केवल लाल बत्ती हटवाकर वीवीआईपी संस्कृति को खत्म करने दावा किया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस कदम पर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने पूरे देश में नरेन्द्र मोदी का गुणगान कर भक्ति परम्परा की शुरुआत की।

13 जनवरी 2025 से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ शुरू हुआ है, महाशिवरात्रि के दिन 26 फरवरी 2024 को आखिरी स्नान के साथ कुंभ पर्व का समापन होगा। महाकुंभ में 13 अखाड़ों के साधुसंतों सहित लाखों श्रद्धालु जमा हुए हैं। महाकुम्भ की शुरुआत में ही मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने इसे एक सबसे अधिक फायदेमंद बिजनेस मॉडल बताया था।

 उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 8 जनवरी, 2025 को कहा था कि इस वर्ष 40 करोड़ श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद है और महाकुंभ से 2 लाख करोड़ रुपये तक की आर्थिक वृद्धि होने का अनुमान है। मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने महाकुंभ को एक महान आध्यात्मिक आयोजन बताते हुए कहा था कि यह एक भव्य, दिव्य और डिजिटल रूप से उन्नत समागम है, जहां आस्था और आधुनिकता का संगम होता है।

1918 के महाकुंभ में संगम में डुबकी लगाने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़कर 30 लाख हो गई थी। इस आयोजन का बजट 1.37 लाख रुपए (आज के हिसाब से लगभग 16.44 करोड़ रुपए) था।

साल 2019 में हुए महाकुंभ का बजट 4,200 करोड़ रुपये था। उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार साल 2025 के महाकुंभ का बजट करीब 7,500 करोड़ रुपये है। इस आयोजन के लिए सरकार और प्रशासन ने कई तरह की तैयारियां की है। इस बजट से श्रद्धालुओं के लिए जमीन, इन्फ्रास्ट्रक्चर, ट्रांसपोर्ट, बिजली, पानी, साफसफाई, मेडिकल सर्विसेज, हेल्पडेस्क, कैंप में लाखों लोगों के रहने की व्यवस्था, स्टाल वगैरह के लिए अलगअलग संस्थानों को जगह का अलॉटमेंट किया जाता है।

साल 1906 के कुंभ मेले में ब्रिटिश सरकार ने सिर्फ 10,000 रुपए कमाए थे। 200 सालों से ज्यादा समय में कुंभ का स्वरूप और इससे होने वाली कमाई कई गुना बढ़ गई है।

महाकुंभ 2025 से जुड़ी कुछ और खास बातें-

-महाकुंभ 2025 में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए संगम के पास आधुनिक सुविधाओं से लैस टेंट सिटी बनाई गई थी।

-मेले में बिजली, पानी, और स्वच्छता के लिए अत्याधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल किया गया था।

-मेले की निगरानी के लिए ड्रोन और सीसीटीवी का इस्तेमाल किया गया था।

-महाकुंभ में यातायात व्यवस्था दुरुस्त रखने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया गया था।

-महाकुंभ में श्रद्धालुओं के लिए अस्थायी चिकित्सा शिविर लगाए गए थे।

महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए बजट लॉज से लेकर 3-सितारा होटल के विकल्प थे। महाकुम्भ में आये श्रद्धालु मेला क्षेत्र में व्याप्त असुविधाओं, अव्यवस्था, गंदगी, सुरक्षा, स्वास्थ और वीवीआईपी संस्कृति पर सोशल मीडिया के जरिए शिकायत दर्ज कर रहे हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि सरकार के करोड़ो रुपये खर्च करने के बाद भी हम आम नागरिकों के लिए विश्राम,पानी,भोजन,और मलत्याग के लिए असुविधा है। संगम किनारे लोग शौच कर रहे हैं। महिलाओं के लिए कपड़े बदलने तक का स्थान नहीं है। उन्हें भी खुले में शौच करना पड़ रहा है। इसी शौच मिले गंगा जल से लोग आचमन कर रहे हैं।

आस्था तो मन:स्थित पर निर्भर है

हिन्दुओं के धर्मगुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द ने तथ्यों के साथ स्पप्ट कहा है कि जैन धर्म, बौद्ध धर्म या अशास्त्रीय लोग जिनकी गंगा स्नान में आस्था हों उसे पुण्य नहीं मिल सकता है इसलिए वह व्यक्ति महाकुम्भ में गंगा स्नान के लिए जाए।

व्यक्ति की आस्था तो मन:स्थित पर निर्भर करती है। और मन: स्थिति तो बदलती रहती है। इसीलिए व्यक्ति को हिन्दु से मुसलमान, मुसलमान से हिन्दु और हिन्दु से ईसाई या फिर बौद्ध धर्म में आस्था के साथ परिवर्तन प्रतिदिन देखने को मिल रहा है। क्या कोई व्यक्ति मुसलमान रहते हुए पाप किया है और यदि उसने हिन्दु धर्म अपना लिया हो तो, क्या न्यायालय उसके पाप का दण्ड नहीं देगा ?

क्या हिन्दु व्यक्ति कितना ही परोपकार कर समाज के उत्थान में योगदान दिया हो यदि वह मुसलमान, बौद्ध, जैन, ईसाई धर्म अपना ले तो क्या समाज उस व्यक्ति के योगदान को भूला देगा। और हिन्दु धर्म के अनुसार उसका पुण्य नष्ट हो जायेगा? अवश्य ऐसा नहीं होगा। क्योकि भगवत गीता में कर्म के सिद्धांत का हिन्दु धर्म विरोध नहीं कर सकता है। कर्म का फल व्यक्ति को लौकिक और पारलौकिक जीवन में अवश्य मिलता है।

मानव के समाज विज्ञान के झूठे अहंकार का मैं द्रष्टा हूं। मैं, धर्म को विकृत करने वाले उन तत्वों को देख रहा हूं। आस्था और धर्म को बेचने के लिए बाजार बनाने वाले नेताओं को देख रहा हूं। उस बाजार में आस्था और धर्म का धन्धा कर रहे लोगों को भी देख रहा हूं। संन्यासी चोले में मोहमाया में फंसे व्यक्तियों को देख रहा हूं। राजनेताओं के चाटुकार महामंडलेश्वर धर्मगुरुओं को देख रहा हूं।

मैं द्रष्टा हूं, समाज को पतन के रास्ते ले जाने वाले प्रत्येक व्यक्तियों को देख रहा हूं।  धर्म का धन्धा करने वाले धीरेन्द्रशास्त्री जैसे बहुरुपिए का कहना कि कुचलकर मारे गये श्रद्धालुओं को मोक्ष मिल गया है। यह आप सभी द्रष्टा को समझने के लिए काफी है कि मानव समाज प्रगति का मार्ग छोड़ अज्ञान के अन्धकार में समाता जा रहा है।

………….क्रमशः जारी है

…………..(व्याकरण की त्रुटि के लिए द्रष्टा क्षमाप्रार्थी है )

drashtainfo@gmail.com

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