वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने से विवाह नाम की संस्था हो जाएगी अस्थिर- NGO पुरुष आयोग

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध के दायरे में लाने की याचिकाओं पर बड़ा कदम उठाया है। वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध के दायरे में लाया जाए या नहीं, इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है। इस बीच एक गैर सरकारी संगठन ने वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण का विरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है। याचिका में कहा गया है कि अगर वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित कर दिया जाता है तो इससे शादियां अस्थिर हो सकती हैं। बता दें कि यह याचिका एक NGO पुरुष आयोग ने दाखिल की है। एनजीओ पुरुष आयोग की अध्यक्ष बरखा त्रेहन ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने के लिए जो याचिकाएं दाखिल की गई हैं, उनमें कोर्ट हस्तक्षेप करे। याचिका में कहा गया है कि शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत, संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है और किसी कृत्य को अपराध बनाने की शक्ति सिर्फ विधायिका के पास है। याचिका के अनुसार, 'बिना पर्याप्त सबूतों के वैवाहिक दुष्कर्म का मामला शादी खत्म कर सकता है। अगर जबरन शारीरिक संबंध बनाने का कोई सबूत होगा तो सिर्फ पत्नी की गवाही ही होगी। यह आसानी से विवाह संस्था को अस्थिर कर सकता है।' NGO पुरुष आयोग ट्रस्ट द्वारा अपनी अध्यक्ष बरखा त्रेहन के माध्यम से दायर याचिका में मैरिटल दुष्कर्म के अपराधीकरण और भारतीय दंड संहिता (IPC) प्रावधान से संबंधित याचिकाओं के एक बैच में अदालत के हस्तक्षेप की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा है। NGO पुरुष आयोग ने वकील विवेक नारायण शर्मा के माध्यम से यह याचिका दाखिल की है। जिसमें कहा गया है कि देशभर में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां महिला के झूठे आरोपों के बाद व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली। याचिका के अनुसार, ऐसे असंख्य मामले सामने आए हैं, जहां विवाहित महिला ने कानून के प्रावधानों का गलत इस्तेमाल किया। इनमें शारीरिक उत्पीड़न, 498ए और घरेलू हिंसा के मामले शामिल हैं। अगर आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 को हटा दिया जाता है तो यह महिलाओं के लिए अपने पतियों को प्रताड़ित करने का एक आसान टूल बन जाएगा। याचिका में कहा गया है कि पत्नी द्वारा दुष्कर्म का कोई भी आरोप सिर्फ कहने भर से सच मान लिया जाता है। वहीं दूसरी तरफ अधिकतर मामलों में पति अपने बचाव में सबूत पेश नहीं कर पाता। केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कोर्ट में पेश हुए। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि यह मामला कानूनी होने के साथ ही सामाजिक प्रभाव वाला भी है। बता दें कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। कोर्ट ने 15 फरवरी तक इस मामले में सरकार से जवाब मांगा है। इस मामले पर मार्च में सुनवाई होगी।

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नई दिल्ली।  सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध के दायरे में लाने की याचिकाओं पर बड़ा कदम उठाया है। वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध के दायरे में लाया जाए या नहीं, इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब दाखिल करने को कहा है। इस बीच एक गैर सरकारी संगठन ने वैवाहिक दुष्कर्म के अपराधीकरण का विरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है। याचिका में कहा गया है कि अगर वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित कर दिया जाता है तो इससे शादियां अस्थिर हो सकती हैं। बता दें कि यह याचिका एक NGO पुरुष आयोग ने दाखिल की है। एनजीओ पुरुष आयोग की अध्यक्ष बरखा त्रेहन ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने के लिए जो याचिकाएं दाखिल की गई हैं, उनमें कोर्ट हस्तक्षेप करे।

याचिका में कहा गया है कि शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत, संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है और किसी कृत्य को अपराध बनाने की शक्ति सिर्फ विधायिका के पास है। याचिका के अनुसार, ‘बिना पर्याप्त सबूतों के वैवाहिक दुष्कर्म का मामला शादी खत्म कर सकता है। अगर जबरन शारीरिक संबंध बनाने का कोई सबूत होगा तो सिर्फ पत्नी की गवाही ही होगी। यह आसानी से विवाह संस्था को अस्थिर कर सकता है।’

NGO पुरुष आयोग ट्रस्ट द्वारा अपनी अध्यक्ष बरखा त्रेहन के माध्यम से दायर याचिका में मैरिटल दुष्कर्म के अपराधीकरण और भारतीय दंड संहिता (IPC) प्रावधान से संबंधित याचिकाओं के एक बैच में अदालत के हस्तक्षेप की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत संविधान की मूल संरचना का एक हिस्सा है।

NGO पुरुष आयोग ने वकील विवेक नारायण शर्मा के माध्यम से यह याचिका दाखिल की है। जिसमें कहा गया है कि देशभर में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां महिला के झूठे आरोपों के बाद व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली। याचिका के अनुसार, ऐसे असंख्य मामले सामने आए हैं, जहां विवाहित महिला ने कानून के प्रावधानों का गलत इस्तेमाल किया। इनमें शारीरिक उत्पीड़न, 498ए और घरेलू हिंसा के मामले शामिल हैं। अगर IPC की धारा 375 के अपवाद 2 को हटा दिया जाता है तो यह महिलाओं के लिए अपने पतियों को प्रताड़ित करने का एक आसान टूल बन जाएगा।

याचिका में कहा गया है कि पत्नी द्वारा दुष्कर्म का कोई भी आरोप सिर्फ कहने भर से सच मान लिया जाता है। वहीं दूसरी तरफ अधिकतर मामलों में पति अपने बचाव में सबूत पेश नहीं कर पाता। केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कोर्ट में पेश हुए। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि यह मामला कानूनी होने के साथ ही सामाजिक प्रभाव वाला भी है। बता दें कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया है। कोर्ट ने 15 फरवरी तक इस मामले में सरकार से जवाब मांगा है। इस मामले पर मार्च में सुनवाई होगी।

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