नई दिल्ली। देश की न्यायपालिका बड़ी संख्या में लंबित मामलों की समस्या से जूझ रही है। इसको लेकर ना केवल सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बल्कि कानून मंत्री किरेन रिजिजू तक चिंता जाहिर कर चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट लंबित मामलों की संख्या कम करने के लिए कई योजनाओं पर काम कर रही है। वहीं, मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश अभय एस ओका ने भी इसे लेकर बयान दिया है। उन्होंने पालघर में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि भारत में प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीशों की आवश्यकता है, लेकिन वर्तमान में यह आंकड़ा प्रति दस लाख लोगों पर केवल 21 है। जिससे लंबित मामलों की संख्या बढ़ रही है।
वह रविवार को सामाजिक संगठन “सोबती” की 16वीं वर्षगांठ पर पालघर जिले के वाडा में आयोजित एक समारोह में बोल रहे थे। सामाजिक संगठन “सोबती” नेत्रहीन बच्चों और अन्य विकलांग बच्चों के लिए काम करता है। न्यायमूर्ति ओका ने यह भी कहा कि समाज के सदस्यों को उन संस्थानों की मदद के लिए आगे आना चाहिए जो विकलांग बच्चों को सहायता प्रदान करने के क्षेत्र में काम करते हैं। उन्होंने कहा कि विदेशों में सरकार विशेष बच्चों के परिवारों की मदद करती है, लेकिन दुर्भाग्य से भारत में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
उन्होंने कहा कि विदेश में सरकार दिव्यांग बच्चों के परिवारों की मदद करती है, लेकिन दुर्भाग्य से भारत में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए सरकार समर्थित संस्थागत देखभाल के अभाव में समाज को सोबती और उसके जैसे अन्य संगठनों की मदद के लिए आगे आना चाहिए।
इस अवसर पर, उन्होंने देश में ‘न्यायाधीश जनसंख्या अनुपात’ के बारे में भी बात की। न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि देश में प्रति 10 लाख की आबादी पर 50 न्यायाधीशों की आवश्यकता है, लेकिन प्रति दस लाख लोगों पर केवल 21 न्यायाधीश हैं, इसलिए अदालतों में बड़े पैमाने पर मामले लंबित हैं।