पटना। महाराष्ट्र में बीजेपी की तिकड़म वाली राजनीती देख नितीश कुमार सहम गए हैं। बिहार की राजनीती पर महाराष्ट्र के भूत का साया दिख रहा है। बिहार में सत्ताधारी जनता दल यूनाइटेड (JDU) और गठबंधन सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के बीच तनातनी की सबसे बड़ी वजह यही है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लगता है कि सहयोगी पार्टी उन्हें बेदखल करने में जुटी है। नीतीश के करीबी जानकारों के मुताबिक जो हाल उद्धव ठाकरे का हुआ है, उससे नीतीश कुमार घबरा गए हैं। उनकी इस घबराहट को और ज्यादा बढ़ा दिया है हाल ही में बिहार पहुंचे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने। जेपी नड्डा ने यहां पर बोलते हुए कहा था कि क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व नहीं बचेगा। उनके इस बयान के बाद जेडीयू और ज्यादा सतर्क हो गई है। इसलिए कल उनके एक शीर्ष सहयोगी ने सार्वजनिक तौर पर बयान दिया जिसमें बीजेपी पर पार्टी को तोड़ने के लिए काम करने का आरोप लगाया गया। शायद यही वजह है कि जेडीयू ने अपना अस्तित्व बचाने के लिए भाजपा से दूरी बनाने में जुट गई है।
जेडीयू की आशंका की पुष्टि पार्टी के वरिष्ठ नेता उमेश कुशवाहा के बयान से भी होती है। उन्होंने कहा कि नड्डा कह रहे हैं कि क्षेत्रीय पार्टियां नहीं बचेंगी। लेकिन उन्हें इस बात का ख्याल रखना चाहिए था कि हमारे जैसी क्षेत्रीय पार्टियां उनकी सहयोगी की भूमिका में हैं। वहीं आज सुबह नीतीश कुमार ने भाजपा की तरफ से डिप्टी सीएम का पद संभाल रहे तारकिशोर प्रसाद से मीटिंग की है। बताया जाता है कि इस मीटिंग के बाद उन्होंने कहा कि कुछ भी सीरियस नहीं है। अंदरखाने से यह जानकारी आई है कि नीतीश कुमार इस बात को लेकर काफी आशंकित हैं कि बिहार का हाल भी महाराष्ट्र जैसा हो जाएगा। गौरतलब है कि यहां पर महाविकास अघाड़ी गठबंधन के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को सत्ता से बाहर करके भाजपा ने शिवसेना बागियों के साथ सरकार बनाई है। दावा किया जाता है कि महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन का यह सारा खेल भाजपा द्वारा रचा गया था। ठाकरे के एक करीबी ने भी भाजपा पर अपनी पार्टी को तोड़ने का आरोप लगाया है।
गौरतलब है कि उद्धव ठाकरे की तरह नीतीश कुमार भी एक क्षेत्रीय क्षत्रप हैं। भाजपा की लहर के बीच वह खुद का अस्तित्व और सत्ता को बचाने की मुहिम में जुटे हैं। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे सरकार गिराने में उनकी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे की बगावत ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी। भाजपा के करीब रहकर शिंदे ने ऐसा खेल रचा कि मुख्यमंत्री का पद गंवाने के बाद आज उद्धव सुप्रीम कोर्ट में अपनी पार्टी बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। उद्धव ठाकरे की ही तरह नीतीश कुमार का भी भाजपा से काफी पुराना और गहरा रिश्ता रहा है। बस फर्क इतना है कि नीतीश ने 2017 में भाजपा से गठबंधन के लिए अपने सहयोगियों का साथ छोड़ दिया था। जबकि उद्धव ने सरकार बनाने के लिए भाजपा को छोड़ कांग्रेस और एनसीपी का दामन थाम लिया था।
वहीं नीतीश कुमार को बिहार में चल रहे इस खेल के पीछे अमित शाह का हाथ होने की भी आशंका है। नीतीश कुमार का मानना है कि शाह ने उनकी सरकार में अपने करीबी मंत्रियों को प्लांट किया हुआ है। आरसीपी सिंह को भी लेकर नीतीश के मन में समय के साथ संदेह गहरा होता गया है। 2021 में नीतीश ने ही आरसीपी सिंह को जनता दल यूनाइटेड (JDU)की तरफ से केंद्र सरकार में बतौर मंत्री शामिल कराया था। बाद में बिहार में आरसीपी सिंह अमित शाह के कुछ ज्यादा ही करीब होते गए। यहां तक कि वह नीतीश कुमार की पार्टी में रहते हुए भी उनके खिलाफ जहर उगलने लगे थे। करीब दो महीने पहले नीतीश कुमार ने राज्यसभा में उनका कार्यकाल बढ़ाने से इंकार कर दिया था। इसके साथ ही केंद्र सरकार के साथ भी आरसीपी सिंह का कार्यकाल खत्म हो गया। वहीं आरसीपी सिंह ने भी जेडीयू पर तमाम आरोप लगाते हुए पार्टी छोड़ दी थी और कहा था कि नीतीश कुमार सात जन्म तक प्रधानमंत्री नहीं बन पाएंगे। इस पर नीतीश के करीबी ललन सिंह ने कहा था कि आरसीपी भाजपा के इशारे पर काम कर रहे थे। ललन सिंह के मुताबिक आरसीपी सिंह का कहना था कि जेडीयू से एकमात्र वही हैं, जिन्हें अमित शाह बतौर केंद्रीय मंत्री स्वीकार करेंगे।
नीतीश के सहयोगियों को लगता है कि बीजेपी को लेकर सीएम की चिंताएं बेवजह नहीं हैं। वे बीजेपी प्रमुख जेपी नड्डा की हाल की उस टिप्पणी की ओर ध्यान दिलाते हैं कि क्षेत्रीय दल नहीं रहेंगे और केवल बीजेपी ही रहेगी। अब लगभग सब कुछ दो बैठकों पर निभर्र करता हैं- एक जो आज बाद में नीतीश और डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद के बीच निर्धारित है और दूसरी वह जो नीतीश ने कल अपनी पार्टी के विधायकों की बुलाई है।