‘एक राष्ट्र, एक चुनाव ‘ लागू करने से पहले चुनौतियां

DrashtaNews

नई दिल्ली (एजेंसी)। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द के नेतृत्ववाली एक उच्च-स्तरीय समिति ने सरकार के ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है, जिसमें लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने का प्रस्ताव है। पिछले साल सितंबर में गठित पैनल ने “अन्य देशों की चुनावी प्रक्रियाओं ” का अध्ययन किया है। साथ ही 39 राजनीतिक दलों, अर्थशास्त्रियों और भारत के चुनाव आयोग से परामर्श भी किया है। इस बाबत करीब 18,000 पन्नों की रिपोर्ट पेश की गई है। मोदी सरकार की काफी लंबे समय से इस प्रस्ताव का समर्थन करती आई है।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च-स्तरीय समिति ने पहले कदम के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की तथा इसके बाद 100 दिनों के भीतर एक साथ स्थानीय निकाय चुनाव कराने की सिफारिश की है। इस समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा कि त्रिशंकु स्थिति या अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी स्थिति में नयी लोकसभा के गठन के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं। समिति ने कहा कि लोकसभा के लिए जब नये चुनाव होते हैं, तो उस सदन का कार्यकाल ठीक पहले की लोकसभा के कार्यकाल के शेष समय के लिए ही होगा।

उसने कहा कि जब राज्य विधानसभाओं के लिए नए चुनाव होते हैं, तो ऐसी नयी विधानसभाओं का कार्यकाल -अगर जल्दी भंग नहीं हो जाएं- लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल तक रहेगा। समिति ने कहा कि इस तरह की व्यवस्था लागू करने के लिए, संविधान के अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि) और अनुच्छेद 172 (राज्य विधानमंडलों की अवधि) में संशोधन की आवश्यकता होगी। समिति ने कहा, ‘इस संवैधानिक संशोधन की राज्यों द्वारा पुष्टि किए जाने की आवश्यकता नहीं होगी।’ उसने यह भी सिफारिश की कि भारत निर्वाचन आयोग राज्य चुनाव अधिकारियों के परामर्श से एकल मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र तैयार करे।

समिति ने कहा कि इस उद्देश्य के लिए मतदाता सूची से संबंधित अनुच्छेद 325 को संशोधित किया जा सकता है। फिलहाल, भारत निर्वाचन आयोग पर लोकसभा और विधानसभा चुनावों की जिम्मेदारी है, जबकि नगर निकायों और पंचायत चुनावों की जिम्मेदारी राज्य निर्वाचन आयोगों पर है। बता दें कि एक राष्ट्र,एक चुनाव प्रस्ताव को पीएम मोदी का पुरजोर समर्थन प्राप्त है. ये 2019 में बीजेपी के घोषणापत्र का हिस्सा था।

सीधे शब्दों में कहें तो इसका मतलब ये है कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में केंद्र और राज्य प्रतिनिधियों को चुनने के लिए भारतीयों को उसी समय या फिर उसी साल वोट करना होगा। वर्तमान में भी कुछ राज्य ऐसे भी हैं, जो उसी समय नई राज्य सरकार के लिए मतदान करने वाले हैं, जब देश नई केंद्र सरकार का चयन कर रहा होता है।दरअसल, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और ओडिशा में अप्रैल/मई में लोकसभा चुनाव के साथ ही मतदान होना है। बता दें कि महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में इस साल के अंत में चुनाव होगा। वहीं केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को सुप्रीम कोर्ट ने राज्य का दर्जा देने और 30 सितंबर तक चुनाव करवाने के निर्देश दिए हैं। कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और तेलंगाना की बात करें तो पिछले साल अलग-अलग समय पर यहां मतदान हुए थे।

लागू करने से पहले चुनौतियां

‘एक देश एक चुनाव’ को लागू करने में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। मसलन, सबसे पहले इसे लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा। लोकसभा का कार्यकाल या तो बढ़ाना होगा या फिर तय समय से पहले इसे खत्म करना होगा। इतना ही नहीं कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाना भी पड़ सकता है। जबकि कुछ विधानसभा का कार्यकाल समय से पहले खत्म करना होगा। इसे लागू करने से पहले सभी दलों में आम राय बनाना जरूरी है। हालांकि, एक देश एक चुनाव को लेकर चुनाव आयोग पहले ही कह चुका है कि वह इसके लिए तैयार है।

देश में ‘एक देश एक चुनाव’ की परंपरा को लागू करने से चुनाव में पैसों की बर्बादी बचेगी। साथ ही राज्यों के मुताबिक- बार-बार चुनाव कराने की चुनौती से भी मुक्ति मिलेगी। जानकारों का मानना है कि ऐसा करने से चुनाव में इस्तेमाल होने वाले काले धन पर भी लगाम लगाई जा सकता है। साथ ही साथ सरकारी संसाधनों का उपयोग सीमित होगा। और इससे देश में विकास कार्यों की रफ्तार पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा।

एक साथ चुनाव होने से पैसे की बचत होगी

पिछले साल रामनाथ कोविंद के नेतृत्व वाले पैनल की घोषणा से पहले केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद को बताया था कि एक साथ चुनाव होने से पैसे की बचत होगी , एक साथ चुनाव करवाने से हर साल कई बार चुनाव अधिकारियों और सुरक्षा बलों की तैनाती में कटौती होगी। इससे सरकारी खजाने पर बोझ और राजनीतिक दलों  पर भी उनके अभियानों पर लगने वाली लागत कम होगी। उन्होंने यह भी बताया था कि हालिया चुनावी प्रक्रिया का मतलब है कि आचार संहिता बार-बार लागू होती है, जो कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन को प्रभावित करती है। चाहे वह केंद्र की हों या राज्य की। सरकार को उम्मीद है कि एक बार चुनाव से मतदान प्रतिशत में भी सुधार होगा, जो वर्तमान में राज्य दर राज्य यहां तक कि आम चुनाव में भी काफी भिन्न होता है।

1970 के बाद ही ‘एक देश, एक चुनाव’ की परंपरा खत्म

अगर केंद्र सरकार देश में ‘एक देश एक चुनाव’ को लागू करती है तो ये कोई पहली बार नहीं होगा जब इसे तरह से देश में चुनाव कराए जाएंगे। इससे पहले वर्ष 1952, 1957, 1962, 1967 में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए गए थे। 1968 और 1969 में कई विधानसभा समय से पहले भंग भी किए गए। वहीं, 1970 में लोकसभा को समय से पहले भंग किया था। 1970 के बाद ही ‘एक देश, एक चुनाव’ की परंपरा खत्म हो गई।  जनवरी में कहा था कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को जनता से लगभग 21,000 सुझाव मिले, जिनमें से 81 प्रतिशत से अधिक इसके पक्ष में थे।

Related post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *