CM अशोक गहलोत के मुख्य आर्थिक सलाहकार पर CBI ने दर्ज की FIR

नई दिल्ली। भारतीय करेंसी नोट छापने के लिए दिये जाने वाले ठेके में गड़बड़ी के आरोप में पूर्व वित्त सचिव अरविंद मायाराम के खिलाफ केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) का शिकंजा कस गया है। सरकार की ओर से जरूरी अनुमति मिलने के बाद मंगलवार को CBI अरविंद मायाराम समेत वित्त मंत्रालय, RBI और ब्रिटिश कंपनी डे ला रू के अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज किया है। CBI ने कथित भ्रष्टाचार के एक मामले में राजस्थान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेहद करीबी और सलाहकार पूर्व वित्त सचिव अरविंद मायाराम के आवासों पर गुरुवार को तलाशी ली। अधिकारियों ने यह जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि 1978 बैच के रिटायर्ड IAS अफसर अरविंद मायारामके जयपुर और दिल्ली आवास पर तलाशी ली गई। अरविंद मायाराम राजस्थान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेहद करीबी और सलाहकार माने जाते हैं। कहा जा रहा है कि यह छापा मनमोहन सरकार में केंद्रीय वित्त सचिव रहते हुए नोट छापने के टेंडर से जुड़े मामले को लेकर है। मीडिया रिपोट्स के मुताबिक, CBI की पिछले छह घंटे से छापेमारी चल रही है। सूत्रों की मानें तो CBI की टीम ने छापेमारी में कुछ दस्तावेज भी जब्त किए हैं। फिलहाल, एजेंसी ने अभी तक मामले में कोई बयान नहीं दिया है। CBI ने अपनी प्राथमिकी में आरोप लगाया कि ब्रिटेन की कंपनी डी ला रुए इंटरनेशनल लिमिटेड और वित्त मंत्रालय तथा भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारियों ने कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए आपराधिक साजिश रची। सीबीआई ने दर्ज की प्राथमिकी आपराधिक षड्यंत्र और धोखाधड़ी से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धाराओं और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत CBI ने प्राथमिकी दर्ज की. इसके बाद 1978 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी के दिल्ली और जयपुर स्थित आवासों पर तलाशी ली गई। कुछ दिन पहले ही मायाराम कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए थे। एजेंसी ने वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग के मुख्य सतर्कता अधिकारी की शिकायत पर 2018 में प्रारंभिक जांच शुरू की थी। कंपनी को 2011 में मिला था पेटेंट सच्चाई यह है कि कंपनी ने ठेका मिलने के तीन महीने पहले ही पेटेंट के लिए आवेदन किया था, जिसका प्रकाशन 2009 में हुआ और 2011 में पेटेंट प्रदान किया गया। 2007 में RBI और सिक्यूरिटी प्रिटिंग एंड मिल्टिंग कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SPMCIL) ने वित्त मंत्रालय को इस बारे में सचेत किया था, लेकिन वित्त सचिव के रूप में अरविंद मायाराम ने इसे वित्त मंत्री के सामने पहुंचने ही नहीं दिया और 5 साल का कांट्रैक्ट खत्म होने के बाद भी उसे बार-बार विस्तार दिया जाता रहा। एजेंसी का ये है दावा एजेंसी ने अपनी प्राथमिकी में कहा कि केंद्र सरकार ने 2004 में भारतीय बैंक नोटों के लिए रंग बदलने वाले विशेष सुरक्षा धागों की आपूर्ति के लिए डी ला रुए इंटरनेशन लिमिटेड के साथ पांच साल का करार किया था। 31 दिसंबर, 2015 तक अनुबंध को 4 बार बढ़ाया गया। एजेंसी का दावा है कि तत्कालीन वित्त मंत्री ने भारत सरकार की ओर से विशिष्ट सुरक्षा धागों के आपूर्तिकर्ताओं के साथ विशेष समझौते के लिए भारतीय रिजर्व बैंक को अधिकृत किया था। 4 सितंबर, 2004 को डी ला रुए के साथ समझौते पर दस्तखत किए गए थे। CBI को पता चला कि कंपनी ने 28 जून, 2004 को भारत में पेटेंट के लिए आवेदन किया था, जिसे 13 मार्च, 2009 को प्रकाशित किया गया और 17 जून, 2011 को जारी किया गया, जो दर्शाता है कि समझौते के समय कंपनी के पास वैध पेटेंट नहीं था। एजेंसी का आरोप है कि समझौते पर RBI के कार्यकारी निदेशक पी के बिश्वास ने डी ला रुए के पेटेंट दावे का सत्यापन किये बिना हस्ताक्षर कर दिए थे। उसने कहा, जांच में यह भी पता चला है कि अनुबंध में समाप्त होने का कोई उपबंध नहीं था। मायाराम ने ब्रिटिश कंपनी का बढ़ाया था कांट्रैक्ट CBI की FIR में यह बताया गया है कि डे ला रू का कांट्रैक्ट 2012 में खत्म हो जाने के 5 महीने बाद अरविंद मायाराम ने इसे 3 साल के लिए बढ़ा दिया। जबकि वित्त मंत्रालय के तत्कालीन अधिकारियों ने इसके बारे में अरविंद मायाराम को सचेत भी किया था। यही नहीं, एक बार कांट्रैक्ट खत्म हो जाने के बाद उसे आगे बढ़ाने के लिए गृह मंत्रालय का सिक्यूरिटी क्लीयरेंस भी जरूरी होता है, लेकिन अरविंद मायाराम ने वह नहीं लिया। CBI की प्रारंभिक जांच में खुलासा हुआ कि डे ला रू की ओर से कांट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करने वाले अनिल रघबीर को कंपनी से मिलने वाले पारिश्रमिक के अलावा भी कंपनी के आफशोर इंटीटीज से 8.2 करोड़ रुपये भेजे गए थे। CBI अब इन सभी कडि़यों की जांच करने में जुट गई है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक के एक पूर्व गवर्नर भारत जोड़ो यात्रा में चलते हैं, BJP उन पर हमला करती है। सेना के एक रिटायर्ड जनरल की बदनामी होती है। अब एक पूर्व वित्त सचिव, जो शामिल हुए, उनपर CBI ने मामला दर्ज किया है। मोदी की FDI नीति-भय, मानहानि और धमकी यहां काम कर रही है। यह कायरों की मानसिकता है। उधर, कांग्रेस नेत्री सुप्रिया श्रीनेत ने भी BJP को घेरा है। उन्होंने कहा कि 20 दिसंबर 2022 को पूर्व वित्त सचिव डॉ. अरविंद मायाराम भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए और 23 दिन बाद ही CBI रेड करने पहुंच गई। मायाराम 9 साल पहले वित्त सचिव थे, कितनी घटिया बदले की भावना से ग्रसित हैं आप PM मोदी? पर सच्चे ईमानदार लोग आपसे डरते नहीं हैं। गहलोत के मुख्य आर्थिक सलाहकार आपको बता दें कि साल 2012-14 के बीच अरविंद मायाराम ने भारत के वित्त सचिव के रूप में काम किया हुआ है। इसके साथ ही कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में भी अरविंद मायाराम ने वित्त मंत्री के रूप में पी चिदंबरम के कार्यकाल के दौरान काम किया। इस बीच ग्रामीण विकास मंत्रालय में ट्रांसफर कर दिया गया था। इसके साथ ही 1978 बैच के IAS अधिकारी मायाराम ने राजस्थान के CM अशोक गहलोत सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में भी अपनी सेवाएं दी हैं।

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नई दिल्ली। भारतीय करेंसी नोट छापने के लिए दिये जाने वाले ठेके में गड़बड़ी के आरोप में पूर्व वित्त सचिव अरविंद मायाराम के खिलाफ  केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) का शिकंजा कस गया है। सरकार की ओर से जरूरी अनुमति मिलने के बाद मंगलवार को CBI अरविंद मायाराम समेत वित्त मंत्रालय, RBI और ब्रिटिश कंपनी डे ला रू के अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ FIR दर्ज किया है।

CBI ने कथित भ्रष्टाचार के एक मामले में राजस्थान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेहद करीबी और सलाहकार पूर्व वित्त सचिव अरविंद मायाराम के आवासों पर गुरुवार को तलाशी ली। अधिकारियों ने यह जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि 1978 बैच के रिटायर्ड IAS अफसर अरविंद मायारामके जयपुर और दिल्ली आवास पर तलाशी ली गई। अरविंद मायाराम राजस्थान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेहद करीबी और सलाहकार माने जाते हैं। कहा जा रहा है कि यह छापा मनमोहन सरकार में केंद्रीय वित्त सचिव रहते हुए नोट छापने के टेंडर से जुड़े मामले को लेकर है।

मीडिया रिपोट्स के मुताबिक, CBI की पिछले छह घंटे से छापेमारी चल रही है। सूत्रों की मानें तो CBI की टीम ने छापेमारी में कुछ दस्तावेज भी जब्त किए हैं। फिलहाल, एजेंसी ने अभी तक मामले में कोई बयान नहीं दिया है। CBI ने अपनी प्राथमिकी में आरोप लगाया कि ब्रिटेन की कंपनी डी ला रुए इंटरनेशनल लिमिटेड और वित्त मंत्रालय तथा भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारियों ने कंपनी को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए आपराधिक साजिश रची।

सीबीआई ने दर्ज की प्राथमिकी

आपराधिक षड्यंत्र और धोखाधड़ी से संबंधित भारतीय दंड संहिता की धाराओं और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत CBI ने प्राथमिकी दर्ज की. इसके बाद 1978 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के अधिकारी के दिल्ली और जयपुर स्थित आवासों पर तलाशी ली गई। कुछ दिन पहले ही मायाराम कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए थे। एजेंसी ने वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के विभाग के मुख्य सतर्कता अधिकारी की शिकायत पर 2018 में प्रारंभिक जांच शुरू की थी।

कंपनी को 2011 में मिला था पेटेंट

सच्चाई यह है कि कंपनी ने ठेका मिलने के तीन महीने पहले ही पेटेंट के लिए आवेदन किया था, जिसका प्रकाशन 2009 में हुआ और 2011 में पेटेंट प्रदान किया गया। 2007 में RBI और सिक्यूरिटी प्रिटिंग एंड मिल्टिंग कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (SPMCIL) ने वित्त मंत्रालय को इस बारे में सचेत किया था, लेकिन वित्त सचिव के रूप में अरविंद मायाराम ने इसे वित्त मंत्री के सामने पहुंचने ही नहीं दिया और 5 साल का कांट्रैक्ट खत्म होने के बाद भी उसे बार-बार विस्तार दिया जाता रहा।

एजेंसी का ये है दावा

एजेंसी ने अपनी प्राथमिकी में कहा कि केंद्र सरकार ने 2004 में भारतीय बैंक नोटों के लिए रंग बदलने वाले विशेष सुरक्षा धागों की आपूर्ति के लिए डी ला रुए इंटरनेशन लिमिटेड के साथ पांच साल का करार किया था। 31 दिसंबर, 2015 तक अनुबंध को 4 बार बढ़ाया गया। एजेंसी का दावा है कि तत्कालीन वित्त मंत्री ने भारत सरकार की ओर से विशिष्ट सुरक्षा धागों के आपूर्तिकर्ताओं के साथ विशेष समझौते के लिए भारतीय रिजर्व बैंक को अधिकृत किया था। 4 सितंबर, 2004 को डी ला रुए के साथ समझौते पर दस्तखत किए गए थे।

CBI को पता चला कि कंपनी ने 28 जून, 2004 को भारत में पेटेंट के लिए आवेदन किया था, जिसे 13 मार्च, 2009 को प्रकाशित किया गया और 17 जून, 2011 को जारी किया गया, जो दर्शाता है कि समझौते के समय कंपनी के पास वैध पेटेंट नहीं था। एजेंसी का आरोप है कि समझौते पर RBI के कार्यकारी निदेशक पी के बिश्वास ने डी ला रुए के पेटेंट दावे का सत्यापन किये बिना हस्ताक्षर कर दिए थे। उसने कहा, जांच में यह भी पता चला है कि अनुबंध में समाप्त होने का कोई उपबंध नहीं था।

मायाराम ने ब्रिटिश कंपनी का बढ़ाया था कांट्रैक्ट

CBI की FIR में यह बताया गया है कि डे ला रू का कांट्रैक्ट 2012 में खत्म हो जाने के 5 महीने बाद अरविंद मायाराम ने इसे 3 साल के लिए बढ़ा दिया। जबकि वित्त मंत्रालय के तत्कालीन अधिकारियों ने इसके बारे में अरविंद मायाराम को सचेत भी किया था। यही नहीं, एक बार कांट्रैक्ट खत्म हो जाने के बाद उसे आगे बढ़ाने के लिए गृह मंत्रालय का सिक्यूरिटी क्लीयरेंस भी जरूरी होता है, लेकिन अरविंद मायाराम ने वह नहीं लिया।

CBI की प्रारंभिक जांच में खुलासा हुआ कि डे ला रू की ओर से कांट्रैक्ट पर हस्ताक्षर करने वाले अनिल रघबीर को कंपनी से मिलने वाले पारिश्रमिक के अलावा भी कंपनी के आफशोर इंटीटीज से 8.2 करोड़ रुपये भेजे गए थे। CBI अब इन सभी कडि़यों की जांच करने में जुट गई है।

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट कर कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक के एक पूर्व गवर्नर भारत जोड़ो यात्रा में चलते हैं, BJP उन पर हमला करती है। सेना के एक रिटायर्ड जनरल की बदनामी होती है। अब एक पूर्व वित्त सचिव, जो शामिल हुए, उनपर CBI ने मामला दर्ज किया है।  मोदी की FDI नीति-भय, मानहानि और धमकी यहां काम कर रही है। यह कायरों की मानसिकता है। उधर, कांग्रेस नेत्री सुप्रिया श्रीनेत ने भी BJP को घेरा है। उन्होंने कहा कि 20 दिसंबर 2022 को पूर्व वित्त सचिव डॉ. अरविंद मायाराम भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुए और 23 दिन बाद ही CBI रेड करने पहुंच गई। मायाराम 9 साल पहले वित्त सचिव थे, कितनी घटिया बदले की भावना से ग्रसित हैं आप PM मोदी? पर सच्चे ईमानदार लोग आपसे डरते नहीं हैं।

आपको बता दें कि साल 2012-14 के बीच अरविंद मायाराम ने भारत के वित्त सचिव के रूप में काम किया हुआ है। इसके साथ ही कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में भी अरविंद मायाराम ने वित्त मंत्री के रूप में पी चिदंबरम के कार्यकाल के दौरान काम किया। इस बीच ग्रामीण विकास मंत्रालय में ट्रांसफर कर दिया गया था। इसके साथ ही 1978 बैच के IAS अधिकारी मायाराम ने राजस्थान के CM अशोक गहलोत सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार के रूप में भी अपनी सेवाएं दी हैं।

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