भारतीय लोकतंत्र को मुठ्ठी में करने की एक और कवायद

भारतीय लोकतंत्र को मौजूदा सत्ता हड़पने की पुरजोर कोशिश में लगी है। भारतीय जनता पार्टी के नेता प्रपंचों और संविधान विरोधी गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं।

DrashtaNews
रविकांत सिंह ‘द्रष्टा’

भारतीय लोकतंत्र को मौजूदा सत्ता हड़पने की पुरजोर कोशिश में लगी है। भारतीय जनता पार्टी के नेता प्रपंचों और संविधान विरोधी गतिविधियों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। विपक्षी दलों की कमजोरी का फायदा उठाकर बीजेपी मतदाताओं के अधिकारों पर बार -बार कुठाराघात कर रही है। कर्नाटक हिमाचल और पंजाब के विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी सत्ता से बेदखल हो चुकी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जादू अब बेअसर हो रहा है।

कांग्रेस समर्थित गठबंधन का नाम इंडिया रखे जाने पर बीजेपी नेताओं की बौखलाहट इस बात पर है कि कैसे इस गंठबंधन का विरोध किया जाय? संसद के मानसून सत्र के दौरान उनके मंत्रियों की अनाप-शनाप बयानबाजी जारी है। विपक्षी दलों के गठबंधन इंडिया के खिलाफ एनडीए नेताओं के बयान उनकी मन:स्थित की बेचैनी को व्यक्त कर रहा है। इस बेचैनी और डवांडोल मन: स्थिति में सत्ता में बने रहने का त्वरित जुगाड़ खोज ली है।

केंद्र सरकार के कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 10 अगस्त गुरुवार को राज्यसभा में चुनाव आयुक्तों की सेवा की नियुक्ति शर्तें और कार्यकाल विधेयक, 2023 पेश किया। बिल में कहा गया है कि आयुक्तों की नियुक्ति तीन सदस्यों का पैनल करेगा। जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष का नेता और कैबिनेट का मंत्री शामिल होंगे। विधेयक पेश होने के साथ ही कांग्रेस और आप सहित विपक्षी दलों ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई। विपक्षी दल के नेताओं ने कहा कि सरकार संविधान पीठ के आदेश को कमजोर करना चाहती है।

चुनाव प्रक्रिया में घपलेबाजी 

देश की आम जनता चुनावी प्रक्रिया से असंतुष्ट है। देश के लाखों मतदाताओं ने वर्तमान चुनावी प्रक्रिया और चुनाव आयुक्तों के कामकाज को पक्षपाती बताते रहे हैं। चुनावी चन्दे (इलेक्ट्रोरल बॉण्ड) का कानून बनाकर बीजेपी की नरेन्द्र मोदी सरकार ने देश-दुनिया के सामने अपनी नियत स्पष्ट कर दी। पाप की कमाई को पचाने के लिए कानून का जामा पहना दिया। कालेधन के कुबेरों ने जमकर हजारो करोड़ का चन्दा बीजेपी को दिया।

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मध्य प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, छत्तिसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र में जनता के बहुमत से चुनी गई सरकारों को हटाकर बीजेपी अपनी सत्ता स्थापित करने की भारी कोशिश की। मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में जनमत के खिलाफ सरकार बनाने में बीजेपी सफल भी हुई।  लोकसभा चुनावों में इवीएम व राज्यों में चुनाव आयोग, ईडी और सीबीआई के जरिए बीजेपी ने अपनी सत्ता स्थापित की है।

सत्ता का अहंकार

जनमत के विरोध में कब्जाई सत्ता ने बीजेपी का अहंकार बढ़ा दिया। बगैर विदेशी प्रतियोगिता में शामिल हुए सत्ता पाने की सफलता में चूर बीजेपी स्वयं को विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक दल घोषित करने लगी। बीजेपी से जुड़े नेताओं और अ•िानेताओं के साथ-साथ चमचों में सत्ता का अहंकार बढ़ने लगा। पाप की कमाई पाप ही कराती है। 2014 में विकास के नाम पर बनी सरकार का रुख असहनशीलता ने ले लिया। और मॉब लिचिंग, लव जेहाद, साम्प्रदायिकता के नाम पर कत्लेआम का खुला नंगा नाच देश देख रहा है।

द्रष्टा सरकार की बद्नीयती लिखत-लिखते बोर हो चुका है। 2019 में राम के सहारे हिन्दुत्व की नींव पर दूसरी बार मतदाताओं ने एक बार फिर बीजेपी सत्ता स्थापित की। एनडीए सरकार के नौ साल पूरे हो चुके हैं। लेकिन बेरोजगारी, आर्थिक असमानता, आदिवासियों और किसानों की पीड़ा कम नहीं हो पायी है। पूजीपतियों के जरिए मीडिया संस्थानों पर सरकार ने कब्जा किया।

चुनाव आयोग ने एक न सुनी

इलेक्ट्रोरल बांड कानून बनाया और काली कमाई का प्रयोग कर गैर बीजेपी शासित राज्य सरकारों के विधायकों मिलाया और अपनी सरकार बनाई। जिन मतदाताओं ने बीजेपी के विपक्ष में मतदान किया अन्यायपूर्ण तरीके से उनका अधिकार केन्द्र सरकार ने छिन लिया। चुनाव आयोग के अधिकारियों ने एक बार भी बीजेपी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। आईबी, सीबीआई, और ईडी के आतंक और अपनी कमियों से विपक्षी दल खोखला हो चुका है।  लोकतंत्र और मतदाताओं के अधिकार दोनों ही असुरक्षित हैं। मतदाता ईवीएम के जरिए बीजेपी पर बेईमानी से चुनाव जीतने का आरोप लगाते रहे हैं। चुनाव की निष्पक्षता पर विपक्षी दलों ने भी कई बार मोदी सरकार का भारी विरोध किया। चुनाव आयोग से ईवीएम की जगह बैलेट पेपर या अन्य विकल्पों के जरिए चुनाव कराने की बात कही लेकिन चुनाव आयोग ने एक न सुनी।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च को ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। कोर्ट ने केन्द्र सरकार को आदेश दिया था कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया और विपक्ष के नेता की सलाह पर राष्ट्रपति करें। 5 सदस्यीय बेंच ने कहा था कि ये समिती नामों की सिफारिश राष्ट्रपति को करेगी। इसके बाद राष्ट्रपति मुहर लगाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह प्रोसेस तब तक लागू रहेगा, जब तक संसद चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर कोई कानून नहीं बना लेती। चयन प्रक्रिया सीबीआई निदेशक की तर्ज पर होनी चाहिए।

चुनाव आयुक्त का स्वतंत्र होना जरूरी

जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा कि लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता बनाए रखी जानी चाहिए। नहीं तो इसके अच्छे परिणाम नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि वोट की ताकत सुप्रीम है, इससे मजबूत से मजबूत पार्टियां भी सत्ता हार सकती हैं। इसलिए इलेक्शन कमीशन का स्वतंत्र होना जरूरी है। यह भी जरुरी है कि यह अपनी कर्तव्य संविधान के प्रावधानों के मुताबिक और कोर्ट के आदेशों के आधार पर निष्पक्ष रूप से कानून के दायरे में रहकर निभाए।

द्रष्टा देख रहा है कि राज्यसभा में चुनाव आयुक्तों की सेवा की नियुक्ति शर्तें और कार्यकाल विधेयक, 2023 में सरकार की तानाशाही साफ झलक रही है। विधेयक के अनुसार चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में प्रधानमंत्री, विपक्ष का नेता और कैबिनेट के मंत्री शामिल होंगे। दो जन तो सरकार के ही होंगे विपक्ष का नेता तो काठ का उल्लू बना दिया जायेगा। और इस तरह प्रधानमंत्री ही चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति करेगा। इस कानून का होना या न होना इससे चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर क्या फर्क पड़ जायेगा? प्रधानमंत्री के इशारों पर नाचनेवाला चुनाव आयुक्त लोकमत की क्या रक्षा करेगा? इस तरह नरेन्द्र मोदी सरकार की दृष्टि भारतीय लोकतंत्र को मुठ्ठी में करने की है।

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