क्या CM योगी, महिला अधिकारियों के हाथों में जिले की कप्तानी देंगे ?

DrashtaNews-पुरुष अपनी प्रधानता त्यागने वाले विचारों को आत्मसात कर महिला को उसका अधिकार सौंप दे, तब विशेष बात मानी जायेगी। […]

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रविकांत सिंह’द्रष्टा’

-पुरुष अपनी प्रधानता त्यागने वाले विचारों को आत्मसात कर महिला को उसका अधिकार सौंप दे, तब विशेष बात मानी जायेगी।

-मौका मिलने पर महिला आईपीएस पुरुष पुलिस कप्तानों से बेहतर साबित हो रही हैं। कम से कम माफियाओं और बदमाशों से साठ-गांठ करने का आरोप तो उन पर नहीं है।

-पुरुष महिला की सुरक्षा करे इससे अधिक समाज के लिए महत्वपूर्ण है कि पुरुष की सुरक्षा महिलाओं के हाथ में दे दी जाय तो, समाज ज्यादा सुखी हो सकता है। यह बात, पुरुष प्रधान समाज के लिए विशेष है और सत्य भी है।

उत्तर प्रदेश में एक तरफ नेता,अधिकारी और अपराधी पुरुषों के अधिकारों और उनकी दबंगई की मीडिया में खबरें हैं तो, दूसरी ओर महिला के साथ दुष्कर्म और उनके अधिकारों का दमन करने वाली खबरों की सुर्खियां सरकार के पुरुष प्रधान नजरिये को भी प्रदर्शित करने के लिए काफी है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को मीडिया प्रशासनिक पकड़ वाले मजबूत नेता कह रही है। जनता ने चुनाव में जीत की मुहर भी लगा दी है। 25 मार्च को योगी आदित्यनाथ दूसरी बार सरकार बनाने जा रहे हैं। मतदाताओं ने इस बार 47 महिला विधायक चुना है जो विधान सभा में पुरुषों के साथ महिलाओं का भी प्रतिनिधित्व करेंगी। योगी ने सभाओं में अपराधियों को ठोकने और उनके घरों पर बूलडोजर चलाने वाले भाषण भी खुब दिये।
आज यूपी में सुरक्षा भी है और यूपी में अधिकार भी है
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी योगी की तारीफ में कहा था 5 साल पहले यूपी की सत्ता में गुंडो की हनक हुआ करती थी, इसकी सबसे बडी भुक्तभोगी यूपी की बहन बेटिया थी उन्हें सड़क पर निकला मुश्किल हुआ करता था। आज यूपी में सुरक्षा भी है और यूपी में अधिकार भी है। योगी जी ने इन गुंडों को उनकी सही जगह पहुंचाया है। देश भर में महिलाओं और पुरुषों में इन बातों की चर्चाएं भी खुब हो रही हैं। लेकिन यह राजनेताओं के तथ्य हैं इसे सत्य नहीं कहा जा सकता है।
यदि किसी महिला को राज्य या पुरुष सुरक्षा देता है तो, यह सामान्य कार्य है। महिला की सुरक्षा करना पुरुष और राज्य का कर्तव्य है। कर्तव्य को कभी भी विशेष नहीं कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री या अन्य राजनेताओं द्वारा यह कहना कि हमारी सरकार में अब महिलाएं सुरक्षित हैं इन बातों में कोई विशेषता नहीं है। जिस पर नागरिक फक्र करें। मूर्खों की एक जमात चाहे उनकी जितनी भी संख्या हो ऐसी बातों पर फक्र करती होगी। पुरुष अपनी प्रधानता त्यागने वाले विचारों को आत्मसात कर महिला को उसका अधिकार सौंप दे, तब विशेष बात मानी जायेगी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उपरोक्त बातों में कहा है कि आज यूपी में सुरक्षा भी है और यूपी में अधिकार भी है। यूपी में महिलाओं को अधिकार वाली बात न तथ्य है और न ही सत्य है। तों, क्या योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री के इन बातों पर अमल करेंगे? या पिछली सरकार की तरह अपनी मनमानी करेंगे। धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर राज्य नागरिकों में भेदभाव नहीं करेगा, यह संविधान की भूमिका है। यह समता का सिद्धांत भी है। इसके बावजूद महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष कानून और व्यवस्था करने की गुंजाइश भी संविधान में है। फिर क्यों यूपी के 75 जिलों में केवल एक महिला आईपीएस अधिकारी को जिले की कमान दी गई है? जबकि यूपी में 429 आईपीएस अधिकारियों में 41 महिला आईपीएस अधिकारी मौजूद हैं।
महिला अधिकारियों की उपेक्षा
संजुक्ता परासर, कल्पना सक्सेना,  मेरीन जोसेफ, अपर्णा गौतम, सुभाषिनी संकरन, अपराजिता राय, संगीता कालिया जैसे तमाम महिला आईपीएस अधिकारी भारत के अलग-अलग राज्यों में प्रशासनिक कानून, न्याय व्यवस्था को सफल बना रही हैं। बहादुरी और न्यायपूर्ण कानून व्यवस्था के लिए मशहूर आईपीएस कल्पना सक्सेना एसपी क्राईम रहते हुए मुज्जफरनगर के दंगाईयों पर लगाम कस दी थीं। नारी को शक्ति कहा गया है और शक्ति जिसके पास है वह न्याय करने में हिचकिचाहट नहीं महसूस करेगा। पुरुष महिला की सुरक्षा करे इससे अधिक समाज के लिए महत्वपूर्ण है कि पुरुष की सुरक्षा महिलाओं के हाथ में दे दी जाय तो, समाज ज्यादा सुखी हो सकता है। यह बात, पुरुष प्रधान समाज के लिए विशेष है और सत्य भी है।

माफियाओं और बदमाशों से साठ-गांठ
उत्तर प्रदेश में 75 जिले हैं। महिलाओं के साथ अपराध की खबरों से टीवी चैनल, सोशल मीडिया और अखबार भरे पड़े हैं। महिला से दुष्कर्मों और उनको छिपाने की खबरें भी खुब सुर्खियां बटोरी हैं। प्रदेश के एक जिले को छोड़कर प्रदेश में अन्य किसी भी महिला आईपीएस को योगी आदित्यनाथ की सरकार ने जिले का पुलिस कप्तान नहीं बनाया। जबकि मौका मिलने पर महिला आईपीएस पुरुष पुलिस कप्तानों से बेहतर साबित हो रही हैं। कम से कम माफियाओं और बदमाशों से साठ-गांठ करने का आरोप तो उन पर नहीं है। यूपी में महिला आईपीएस अधिकारियों की कोई कमी नहीं है। जब-जब सरकार ने उन्हें अपराध और बेलगाम अपराधियों पर लगाम लगाने की और प्रशासनिक व्यवस्था का संतुलित संचालन की जिम्मेदारी दी है। तब-तब महिला अधिकारियों ने अपने अदम्य साहस,शौर्य और बुद्धिमत्ता का परिचय दिया है।

तथ्य ये है कि उत्तर प्रदेश की कुल अनुमानित जनसंख्या लगभग 23करोड़ है। जिनमें महिलाओं की अनुमानित जनसंख्या 11 करोड़ है। 2022 के विधान सभा चुनाव में लगभग 8 करोड़ पुरुष मतदाता जबकि महिला मतदाताओं की कुल संख्या लगभग 7 करोड़ (6 करोड़ 98 लाख 22 हजार416) है। 403 विधान सभा सीटों में 47 पर महिला विधायक चुनी गई हैं जो एक नया रिकार्ड है।

सत्ताधीश महिलाओं को उनका अधिकार देने में छल-कपट और कंजूसी करते हैं

परन्तु, ‘द्रष्टा’ की नजर में सत्य ये है कि राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक प्रगति में महिलाओं की सशक्त भूमिका है। मतदाताओं में आधी संख्या महिलाओं की है इसके बावजूद बड़े ओहदों पर इनकी संख्या कम हो जाती है। घर के मुखिया, समाज के अगुआ और सत्ताधीश महिलाओं को उनका अधिकार देने में छल-कपट और कंजूसी करते हैं, यह सत्य है। उदाहरण के लिए महिला अधिकारों को लेकर पिछली सरकार की भूमिका को समझिये। कानून-व्यवस्था को मजबूत बनानें में महिलाएं बेहतरीन साबित हो रही हैं इसके बावजूद उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने महिला अधिकारियों की उपेक्षा की।
सरकारी कागजातों, मीडिया व आम बोलचाल की भाषा में महिला और पुरुष एक वर्ग हैं, यह एक तथ्य है। परन्तु, करुणा और दयालुता महिला का स्वभाव है। महिला एक जननी है, सामाजिक संतुलन की जिम्मेदारी महिलाओं पर पुरुष की अपेक्षा अधिक है। महिलाएं समाज में पुरुषों का गर्व हैं, यह सत्य है। राज्य का प्रमुख कार्य ही अपने नागरिकों की सुरक्षा करना है। जो समाज अपने गर्व (स्त्री) की रक्षा न करे, उस समाज का पतन हो जाता है।

राजनेताओं से महिला अधिकारों की सुरक्षा की अपेक्षा रखना बेवकूफी
उच्च पदस्थ पुरुष अधिकारी अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए महिलाओं का निरादर करते हैं और गैर बराबरी नजरिया रखते हैं। ऐसा आरोप पुरुष अधिकारियों पर लगता रहता है। ऐसे अधिकारियों और सलाहकारों से घिरे राजनेताओं से महिला अधिकारों की सुरक्षा की अपेक्षा रखना बेवकूफी है। यही कारण है कि पिछली सरकार में ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं’ के नारे अब तक धरातल पर नहीं उतर सके हैं। एक बार भी सरकार ने नहीं सोचा कि संवैधानिक अधिकारों से महिला अधिकारी क्यों वंचित हो रही हैं? प्रदेश के 75 जिलों में महिला अधिकारियों की कितनी भूमिका होनी चाहिए? इस बार योगी सरकार को अपनी कथनी और करनी पर विचार करना चाहिए।

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