नई दिल्ली /नैनीताल। AFCONS इंफ्रास्ट्रक्टचर लिमिटेड पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघन कर ग्राम पंचायत भोरसा में क्रशर प्लांट संचालित कर रहा है। रिपोर्ट पर आधारित प्रश्न के साथ इस बात की शिकायत 27 मई 2025 को द्रष्टा फाउंडेशन ने जिलाधिकारी नैनीताल से की थी। 3 महीने बीत जाने के बाद 30 सितम्बर 2025 को जिलाधिकारी वंदना सिंह ने द्रष्टा की शिकायती रिपोर्ट को गंभीरता लिया है। जिला प्रशासन ने उपजिलाधिकारी की अध्यक्षता में समिति का गठन कर दिया है।
कार्यालय जिलाधिकारी नैनीताल के आदेश में बताया गया है कि 27 मई 2025 को रविकांत सिंह अध्यक्ष द्रष्टा फाउंडेशन ने भोरसा गाँव के निकट AFCONS इंफ्रास्ट्रक्टचर लिमिटेड कंपनी द्वारा अवैध क्रशर प्लांट संचालित होने की शिकायत की थी। जिस पर करवाई कानने का अनुरोध किया गया है।

इसी क्रम में प्रश्नगत स्थल का स्थलीय निरीक्षण किये जाने हेतु समिति का गठन किया जाता है –
1- अध्यक्ष – उप जिलाधिकारी नैनीताल
2- सदस्य – क्षेत्रीय अधिकारी, उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हल्द्वानी
3-सदस्य – जिला खान अधिकारी, नैनीताल
आदेश पत्र में गठित समिति को प्रकरण में प्रश्नगत स्थल का स्थलीय निरीक्षण करने का निर्देश दिया गया है। साथ ही आदेश पत्र में कहा गया है कि समिति तथ्यों की जांच कर अपनी संयुक्त निरीक्षण आख्या 15 दिनों के भीतर जिलाधिकारी कार्यालय को उपलब्ध करना सुनिश्चित करें।
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क्या थी द्रष्टा की शिकायती रिपोर्ट ?
स्थानीय ग्रामीणों की शिकायत पर द्रष्टा फाउंडेशन की विशेष जांच दल ने भोरसा ग्राम पंचायत का स्थलीय निरीक्षण किया। ग्रामीणों की शिकायत सही पायी गयी। स्थानीय लोगों के साथ पर्यावरणविद और कानूनी सलाहकारों के नेतृत्व वाली विशेष जांच दल ने फोटो व वीडियो फुटेज एकत्रित किया और भौगोलिक जानकारी ली।
विशेष जांच दल ने पाया कि एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी ने पर्यावरण कानूनों की धज्जियाँ उड़ाते हुए आबादी वाले इलाके के पास अवैध रूप से क्रशर प्लांट स्थापित कर दिया है। जमरानी बांध का निर्माण आबादी वाले इलाके से डेढ़ किलोमीटर दूर किया जा रहा है। गौला नदी के तल में स्टोन क्रशर यूनिट स्थापित करने की प्रक्रिया में एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी ने वैधानिक पर्यावरणीय मानदंडों का स्पष्ट उल्लंघन किया है।
इसके संचालन से निस्संदेह पहले से ही गंभीर ध्वनि और वायु प्रदूषण का स्तर और बढ़ जाएगा, जिससे ग्रामीणों को असहनीय कष्ट होगा। हम वर्तमान में गंभीर कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, और स्टोन क्रशर गतिविधियों के शुरू होने से यह कष्ट और भी बढ़ जाएगा। हमारा दृढ़ विश्वास है कि आवासीय क्षेत्र के इतने करीब स्टोन क्रशर का होना स्वाभाविक रूप से हानिकारक होगा क्योंकि इससे अपरिहार्य रूप से वायु और ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न होगा। चिंताजनक बात यह है कि आवासीय घरों और संबंधित स्टोन क्रशर इकाई के बीच की दूरी केवल कुछ मीटर है।
इस अवैध गतिविधि में सैकड़ों भारी वाहन शामिल हैं, जिनमें ट्रक, डंपर और छोटे व्यावसायिक वाहन शामिल हैं, जो सुबह 4:30 बजे से आधी रात तक चलते हैं। नतीजतन, भोरसा गाँव को भीमताल रोड से जोड़ने वाली 7 किलोमीटर लंबी सड़क कई बड़े गड्ढों के साथ खतरनाक स्थिति में पहुँच गई है, जिससे पैदल चलने वालों और वाहनों का गुजरना लगभग असंभव हो गया है। इससे होने वाले ध्वनि प्रदूषण ने इस क्षेत्र में शांतिपूर्ण जीवन जीना लगभग असंभव बना दिया है, और दिन-रात व्याप्त वायु प्रदूषण के खतरनाक स्तर ने इसे और भी बदतर बना दिया है।
बुजुर्गों की संख्या और स्वास्थ्य स्थिति – इनमें से लगभग 190 वरिष्ठ नागरिक हैं जो पहले से ही अस्थमा सहित विभिन्न बीमारियों से पीड़ित हैं।

ग्राम सभा ने अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं दिया है-
आबादी से 500 मीटर की दूरी पर प्लांट लगाने के लिए स्थानीय परिवारों या भूस्वामियों की अनापत्ति आवश्यक नहीं है, लेकिन एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी ने पर्यावरण संरक्षण के नियमों का उल्लंघन करते हुए क्रशर प्लांट लगाया है। इसलिए ग्राम सभा के सदस्यों ने एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी को अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं दिया है।
ग्राम सभा के अधिकारों का उल्लंघन
एफकॉन्स इन्फ्रास्ट्रक्चर कंपनी द्वारा ग्राम सभा के अनापत्ति प्रमाण पत्र के बिना स्थापित किया गया प्लांट अवैध है और यह संविधान की 11वीं अनुसूची के अनुसार पंचायती राज में ग्राम सभा को दिए गए अधिकारों का उल्लंघन है।
उत्तराखंड में क्रशर प्लांट स्थापित करने के नियम-
– सार्वजनिक धार्मिक स्थानों, स्कूलों, शैक्षणिक संस्थानों, अस्पतालों, नर्सिंग होम और आबादी से न्यूनतम 500 मीटर की दूरी।
-वन क्षेत्र/अभयारण्य: 1 किमी से अधिक।
-राष्ट्रीय/राज्य राजमार्ग- 200-500 मीटर।
-नदियाँ/जल निकाय: 500 मीटर।
उत्तराखंड-विशिष्ट नियम
उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूकेपीसीबी) और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के दिशानिर्देशों के तहत क्रशर प्लांट की स्थापना और संचालन के लिए कई कानूनी नियम और विनियम लागू होते हैं। ये दिशानिर्देश पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986, वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981, जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 और अन्य संबंधित कानूनों के अंतर्गत लागू होते हैं। इसके अलावा, एनजीटी के आदेश और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) के नियम इनके संचालन को नियंत्रित करते हैं। ये नियम पर्यावरण संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं।

हिमालयी पारिस्थितिकी : हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता के कारण उत्तराखंड में क्रशर संयंत्रों पर अतिरिक्त प्रतिबंध हैं। उदाहरण के लिए, नैनीताल और अन्य पहाड़ी क्षेत्रों के पारिस्थितिकी-संवेदनशील क्षेत्रों में कोई भी औद्योगिक गतिविधि नहीं हो सकती।
प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन: उत्तराखंड उच्च न्यायालय और यूकेपीसीबी ने प्लास्टिक कचरे के निपटान पर सख्त नियम लागू किए हैं, जो क्रशर प्लांटों पर भी लागू होते हैं।
जैविक राज्य: उत्तराखंड को जैविक राज्य बनाने की नीति के तहत रासायनिक प्रदूषण पर सख्ती की गई है, जिसका असर क्रशर प्लांटों पर भी पड़ता है।
जुर्माना और दंड
गैर-अनुपालन: सीटीई/सीटीओ या पर्यावरण मंजूरी के बिना संचालन करने पर 10 करोड़ रुपये तक का जुर्माना और 3 वर्ष तक का कारावास हो सकता है (पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत)।
प्रदूषक भुगतान सिद्धांत: पर्यावरणीय क्षति के लिए मुआवजा और जुर्माना देना होगा।
प्लांट बंद करना: एनजीटी और यूकेपीसीबी के आदेश पर अवैध या गैर-अनुपालक क्रशर प्लांट को तुरंत बंद किया जा सकता है।
अवैध खनन और कानूनी कार्रवाई-
-2020 में हाईकोर्ट ने मानकों को पूरा न करने वाले स्टोन क्रशरों के लिए नए लाइसेंस जारी करने पर भी रोक लगा दी थी।
-अवैध खनन या नियमों का उल्लंघन करने पर भारी जुर्माना और प्लांट सीज हो सकता है। उदाहरण के लिए, हल्द्वानी में 4 स्टोन क्रशर और 2 खनन पट्टों पर 52 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया।
निष्कर्ष-
एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी द्वारा स्थापित क्रशर प्लांट के स्थलों का निरीक्षण किया गया है। विशेष टीम ने आसपास के क्षेत्रों की वीडियो फोटोग्राफी भी की है। ग्रामीणों से बातचीत की और उनकी शिकायतें भी सुनीं। विशेष टीम ने पाया कि क्रशर प्लांट स्थापित करने के लिए कंपनी ने पर्यावरण संरक्षण की अनदेखी करते हुए एनजीटी और यूकेपीसीबी के दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है।

रिपोर्ट पर आधारित प्रश्न-
1- क्या एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी को भोरसा ग्रामीण आबादी क्षेत्र में क्रशर प्लांट लगाने की प्रशासनिक अनुमति दी गई है? यदि दी गई है, तो…
2- क्या प्रशासन ने उत्तराखंड में क्रशर प्लांट के लिए (यूकेपीसीबी) और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के प्रमुख कानूनी नियमों और दिशानिर्देशों का पालन किया है?
3- क्या प्रशासन के संबंधित विभागों ने एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी को लाइसेंस और अनुमति देने से पहले ग्राम सभा से प्राप्त अनापत्ति प्रमाण पत्र की जांच की है?
4- प्रशासन के किन संबंधित विभागीय अधिकारियों ने भोरसागांव स्थित एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी के क्रशर प्लांट का निरीक्षण कर लाइसेंस के लिए अनिवार्य नियमों की जांच की है?
5- यदि प्रशासन ने एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी को आबादी क्षेत्र व नदी में क्रशर प्लांट लगाने की अनुमति नहीं दी है तो क्या प्रशासन कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेगा?
द्रष्टा फाउंडेशन के लीगल टीम का कहना है कि कानूनी करवाई का प्रथम अधिकार प्रशासन का है। यदि उपजिलाधिकारी कि अध्यक्षता वाली समिति तथ्यों कि जांच कर एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनी पर कानूनी करवाई करती है तो हम न्यायालयी करवाई नहीं करेंगे। यदि समिति ने पर्यावरण का उलंघन करने वाली एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर को बचाने के लिए जांच में सत्य छिपाने का प्रयत्न किया तो न्यायालय में समिति के अधिकारियों को पक्षकार बनाया जायेगा।


