नई दिल्ली । वन परिभाषा के आदेश पर कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट की सराहना की है। कांग्रेस ने मंगलवार को कहा कि I.N.D.I गठबंधन सरकार पर्यावरण की रक्षा करेगी। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि ‘चुनावी बांड घोटाले’ के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार की ‘घोर अवैध और विनाशकारी’ योजनाओं को रोक दिया है। पूर्व पर्यावरण मंत्री रमेश ने एक मीडिया रिपोर्ट को भी टैग किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि शब्दकोष में ‘जंगल’ का अर्थ लागू किया जाए।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरणीय मंजूरी का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं को दी गई अवैध अनुमतियों पर रोक लगा दी है। साथ ही आदेश दिया है कि जंगल की शब्दकोश परिभाषा का 1996 के फैसले के अनुसार पालन किया जाना चाहिए।कांग्रेस नेता रमेश ने आरोप लगाते हुए कहा ‘प्रधानमंत्री अपने कॉरपोरेट करीबी दोस्तों को फायदा पहुंचाने के लिए भारत के जंगलों को सौंपना और पर्यावरण को प्रदूषित करना आसान बनाना चाहते थे, इसलिए सबसे पहले उन्होंने 2017 में नियमों में बदलाव किया ताकि वन मंजूरी का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं को वैध बनाया जा सके।’
जयराम रमेश ने दावा किया कि कोयला खदानों, कारखानों और सीमेंट संयंत्रों सहित बड़े कॉरपोरेटों की 100 से अधिक परियोजनाओं को पर्यावरणीय मंजूरी का उल्लंघन करते हुए खुलेआम काम शुरू करने की अनुमति दी गई। इसके बाद, 2023 में, मोदी सरकार वन संरक्षण संशोधन लेकर आई, जिसने 2 लाख वर्ग किलोमीटर जंगलों से सुरक्षा छीन ली।
1996 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूरी तरह से उल्लंघन
जयराम रमेश ने दावा किया कि यह 1996 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पूरी तरह से उल्लंघन था। इस संशोधन से ‘मानित वनों’ के साथ-साथ उत्तर पूर्व के जंगलों को भी हटाना आसान हो जाता। रमेश ने कहा, ‘शुक्र है कि सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों अवैध कदमों पर रोक लगा दी है।’
रमेश ने आरोप लगाया कि एक-एक करके, मोदी सरकार के घोटाले और धोखाधड़ी भारत की सर्वोच्च अदालत में उजागर हो रहे हैं। 2023 के वन संरक्षण कानून में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच से निपटते हुए, मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने सोमवार को राज्य सरकारों और केंद्र शासित प्रदेशों को अपने अधिकार क्षेत्र में वन भूमि का विवरण 31 मार्च तक केंद्र को उपलब्ध कराने का निर्देश दिया।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का आदेश?
अपने अंतरिम आदेश में, पीठ ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से टीएन गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ के मामले में 1996 के फैसले में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित ‘वन’ की परिभाषा के अनुसार कार्य करने को कहा। इसमें कहा गया है कि सरकारी रिकॉर्ड में वन के रूप में दर्ज भूमि की पहचान करने की प्रक्रिया संशोधित कानून के अनुसार चल रही है।
दरअसल, याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि शीर्ष अदालत के फैसले में ‘वन’ की व्यापक परिभाषा को संशोधित कानून में शामिल धारा 1ए के तहत संकुचित कर दिया गया है। संशोधित कानून के अनुसार, ‘वन’ के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए भूमि को या तो जंगल के रूप में अधिसूचित किया जाना चाहिए या विशेष रूप से सरकारी रिकॉर्ड में जंगल के रूप में दर्ज किया जाना चाहिए।