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सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया कानूनी शब्दावली हैंडबुक

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-‘कानूनी शब्दावली से बाहर हो जाएंगे छेड़छाड़, वेश्या और हाउसवाइफ जैसे शब्द’ 

नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों में महिलाओं के लिए इस्तेमाल होने वाले आपत्तिजनक शब्दों पर रोक लगाने के लिए बड़ा कदम उठाया है। इसके तहत शीर्ष कोर्ट ने ‘हैंडबुक ऑन कॉम्बैटिंग जेंडर स्टीरियोटाइप्स’लॉन्च की है। यह हैंडबुक न्यायाधीशों को अदालती आदेशों और कानूनी दस्तावेजों में अनुचित लिंग शब्दों के इस्तेमाल से बचने में मार्गदर्शन करेगी।

30 पन्नों के इस हैंडबुक में इस बात पर प्रकाश डाला है कि यदि जज हानिकारक रूढ़िवादिता पर भरोसा करते हैं तो इससे कानून के उद्देश्य और निष्पक्ष अनुप्रयोग में विकृति आ सकती है और इससे भेदभाव और बहिष्कार बन रह सकता है। हैंडबुक में लिखा गया है, किसी महिला के चरित्र या उसके पहने हुए कपड़ों पर आधारित धारणाएं यौन संबंधों के साथ-साथ महिलाओं के व्यक्तित्व में सहमति के महत्व को कम करती हैं।

कानून शब्दावली में यौन उत्पीड़न, यौनकर्मी और गृहिणी जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया गया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बहस सुनने के लिए एकत्रित हुए। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने हैंडबुक को लॉन्च किया। CJI ने कहा, ये शब्द अनुचित हैं और अतीत में न्यायाधीशों द्वारा इसका इस्तेमाल किया गया है। हैंडबुक का इरादा आलोचना करना या निर्णयों पर संदेह करना नहीं, बल्कि केवल यह दिखाना है कि अनजाने में कैसे रूढ़िवादिता का उपयोग किया जा सकता है।

इस हैंडबुक में लैंगिक रूढिवादिता प्रदर्शित करने वाले शब्दों की शब्दावली है। इसमें इनकी जगह पर वैकल्पिक शब्द और वाक्यांश सुझाए गए हैं, जिनका उपयोग किया जा सकता है। इसे लेकर एक बयान भी जारी किया गया है। इसमें कहा गया है कि हैंडबुक महत्वपूर्ण मुद्दों, विशेषकर यौन हिंसा से जुड़े मुद्दों पर प्रचलित कानूनी सिद्धांत को भी समाहित करती है। इसमें कहा गया है कि हैंडबुक का लॉन्च एक अधिक न्यायसंगत और न्यायसंगत समाज की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।

एक प्रेस विज्ञप्ति में शीर्ष अदालत ने कहा, हैंडबुक ऑन कॉम्बैटिंग जेंडर रूढ़िवादिता’ का उद्देश्य न्यायाधीशों और कानूनी समुदाय के सदस्यों को महिलाओं के बार में रूढ़िवादिता को पहचानने, समझने और उसका मुकाबला करने के लिए सशक्त बनाना है। इसमें लैंगिक अन्यायपूर्ण शब्दों की एक शब्दाबली है और दलीलों, आदेशों और निर्णयों सहित कानूनी दस्तावेजों में इस्तेमाल के लिए वैकल्पिक शब्दों और वाक्यांशों का सुझाव है।

हैंडबुक महत्वपूर्ण मुद्दों, विशेषकर यौन हिंसा से जुड़े मुद्दों पर प्रचलित कानूनी सिद्धांत को भी समाहित करती है। हैंडबुक का लॉन्च न्यायसंगत समाज की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। यह हैंडबुक 30 पन्नों की है। इस हैंडबुक में शब्द गलत क्यों हैं और वे कानून को और कैसे बिगाड़ सकते हैं, इसके बारे में भी बताया गया है।

क्या है कोर्ट का उद्देश्य?

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि इस हैंडबुक को तैयार करने का मकसद किसी फैसले की आलोचना करना या संदेह करना नहीं, बल्कि यह बताना है कि अनजाने में कैसे रूढ़िवादिता की परंपरा चली आ रही है। कोर्ट का उद्देश्य यह बताना है कि रूढि़वादिता क्या है और इससे क्या नुकसान है। ताकि कोर्ट महिलाओं के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा के इस्तेमाल से बच सकें। इसे जल्द ही सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा।

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