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SC ने सरकार से पूछा, पुलिस को जीरो FIR दर्ज करने में 14 दिन क्यों लग गए ?

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-पुलिस ने हिंसा में सहयोग किया ,CBI जांच के खिलाफ हैं महिलाएं।

नई दिल्ली (एजेंसी)। मणिपुर वायरल वीडियो मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में फिर सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मणिपुर में 4 मई से जारी जातीय हिंसा पर केंद्र सरकार और राज्य सरकार से कई सवाल पूछे। कोर्ट ने माना कि राज्य में हिंसा ‘निरंतर’ जारी है। सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर पुलिस से भी कई कड़े सवाल पूछे।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पूछा, “घटना 4 मई को हुई थी और जीरो एफआईआर 18 मई को दर्ज की गई थी। पुलिस को एफआईआर दर्ज करने में 14 दिन क्यों लगे? पुलिस 4 मई से 18 मई तक क्या कर रही थी?”

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3 मई के बाद से कितनी एफआईआर दर्ज हुई?

सीजेआई ने कहा कि हमें महिलाओं के खिलाफ हिंसा के व्यापक मुद्दे को देखने के लिए एक व्यवस्था भी बनानी होगी। इस व्यवस्था को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे सभी मामलों का ध्यान रखा जाए। उन्होंने पूछा कि 3 मई के बाद से, जब मणिपुर में हिंसा शुरू हुई थी, ऐसी कितनी FIR दर्ज की गई हैं।

18 मई तक पुलिस क्या कर रही थी?

सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि जब घटना चार मई को हुई तो एफआईआर 18 मई को क्यों दर्ज की गई? चार मई से 18 मई तक पुलिस क्या कर रही थी? यह घटना जब सामने आई कि महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाया गया और कम से कम दो के साथ दुष्कर्म किया गया, तब पुलिस क्या कर रही थी?

‘CBI जांच के खिलाफ हैं महिलाएं ‘

मणिपुर की दो पीड़ित महिलाओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि महिलाएं मामले की CBI जांच और मामले को असम स्थानांतरित करने के खिलाफ हैं। इस पर सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हमने कभी भी मुकदमे को असम स्थानांतरित करने का अनुरोध नहीं किया है। तुषार मेहता ने कहा कि हमने यह कहा है कि इस मामले को मणिपुर से बाहर स्थानांतरित किया जाए। हमने कभी असम नहीं कहा।

पुलिस ने हिंसा में सहयोग किया

सिब्बल सिब्बल ने कहा कि तथ्य स्पष्ट रूप से इंगित करते हैं कि “पुलिस ने हिंसा के अपराधियों के साथ सहयोग किया”। सिब्बल ने कहा, “वे उन्हें भीड़ के पास ले गए, उन्होंने उन्हें भीड़ के पास छोड़ दिया और भीड़ उन्हें मैदान में ले गई…”। उन्होंने कहा कि सीआरपीसी की धारा 161 के तहत पीड़ितों के बयान से ये तथ्य स्पष्ट होते हैं। महिलाओं में से एक के पिता और भाई की हत्या कर दी गई और उनके शव अभी तक बरामद नहीं हुए हैं।

घटना 4 मई की है और जीरो एफआईआर 18 मई को दर्ज की गई. वीडियो 19 जून को वायरल हुआ। सिब्बल ने कहा, 21 जून को सुप्रीम कोर्ट द्वारा संज्ञान लेने तक मामले में कुछ नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि ऐसी कई घटनाएं घटी होंगी; हालांकि, केंद्र सरकार को आज भी नहीं पता कि कितनी FIR दर्ज की गई हैं। उन्होंने कहा, “यह मामलों की दुखद स्थिति को दर्शाता है।”

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सिब्बल ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जांच ऐसी एजेंसी से होनी चाहिए जिस पर पीड़ितों को भरोसा हो। उन्होंने आश्चर्य जताया कि अपराधियों के साथ सहयोग करने वाली राज्य पुलिस द्वारा दिए गए तथ्यों पर कैसे भरोसा किया जा सकता है। जांच की व्यक्तिगत निगरानी के बारे में एजी के आश्वासन पर सिब्बल ने कहा, “कानून अधिकारी या एजी कैसे निगरानी करेंगे? क्या निगरानी करेंगे?” अधिकारियों ने एजी और एसजी को यह भी नहीं बताया कि कितनी FIR दर्ज की गई हैं! यह दुखद स्थिति है”।

सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना है कि अगर सुप्रीम कोर्ट मामले की निगरानी करेगा तो केंद्र को कोई आपत्ति नहीं है। वहीं, वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केंद्र की स्टेटस रिपोर्ट के मुताबिक, 595 FIR दर्ज की गई हैं। इनमें से कितने यौन हिंसा से संबंधित हैं, और कितने आगजनी, हत्या से संबंधित हैं। इस पर कोई स्पष्टता नहीं है।

‘महिलाओं में आत्मविश्वास पैदा करना जरूरी’

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि जहां तक कानून का सवाल है, दुष्कर्म की पीड़िताएं इस बारे में बात नहीं करतीं। वे अपने आघात के साथ सामने नहीं आतीं। पहली बात है आत्मविश्वास पैदा करना। आज हमें नहीं पता कि अगर सीबीआई जांच शुरू कर दे तो महिलाएं सामने आ जाएंगी। उन्होंने कहा कि पुलिस की बजाय महिलाओं से घटना के बारे में बात करने में महिलाओं को सहूलियत होगी।

इंदिरा जयसिंह ने कहा कि एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति होनी चाहिए। जिसमें नागरिक समाज की महिलाएं हों जिनके पास बचे लोगों से निपटने का अनुभव हो। इंदिरा का कहना है कि हाई पावर कमेटी में सैयदा हमीद, उमा चक्रवर्ती, रोशनी गोस्वामी आदि शामिल हो सकते हैं। ये सभी समुदाय में इस मुद्दे से जुड़े हैं। उन्हें एक रिपोर्ट बनाने दीजिए और इसे इस अदालत में लाने दीजिए।

कुकी पक्ष की ओर से पेश वकील ने सीबीआई जांच का विरोध किया

मणिपुर हिंसा मामले में कुकी पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंसाल्वेस ने CBI जांच का विरोध किया और सेवानिवृत्त DGP वाली SIT से जांच की मांग की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से मणिपुर के किसी भी अधिकारी को शामिल न करने की मांग की है। कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि हालांकि महिलाओं के खिलाफ हिंसा केंद्र में है, लेकिन उनके भाई और पिता आदि मारे गए हैं। इस पहलू पर भी गौर किया जाए।

एक वकील ने एक याचिका का जिक्र करते हुए कहा कि जो मणिपुर में हुआ, वैसी ही घटनाएं पश्चिम बंगाल और राजस्थान में भी हुईं। एक पंचायत उम्मीदवार का वीडियो आया जिसे पश्चिम बंगाल में निर्वस्त्र कर घुमाया गया। पूरे भारत में बेटियों को सुरक्षित रखने की जरूरत है। इस पर सीजेआई ने वकील से कहा,निस्संदेह देश भर में महिलाओं के खिलाफ अपराध हो रहे हैं, यह हमारी सामाजिक वास्तविकता है।

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हम सांप्रदायिक और सांप्रदायिक संघर्ष में महिलाओं के खिलाफ अभूतपूर्व हिंसा से निपट रहे हैं। मणिपुर में जो कुछ हुआ उसे हम यह कहकर उचित नहीं ठहरा सकते कि ऐसा कहीं और हुआ है। क्या आप कह रहे हैं कि सभी महिलाओं की रक्षा करें या किसी की भी रक्षा न करें?

‘मणिपुर में कुकी महिलाओं पर हो रहे लक्षित हमले’

शासन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली वकील वृंदा ग्रोवर का कहना है कि इंफाल में दो महिलाएं कार धोने का काम कर रही थीं और भीड़ ने आकर उन पर अत्याचार किया, उनकी हत्या कर दी गई। परिवार शिविरों में हैं। मां ने FIR दर्ज कराई है और FIR दर्ज होने के बाद सब कुछ बंद हो गया। 18 साल की लड़की से सामूहिक दुष्कर्म भी हुआ। दोनों समुदायों के खिलाफ़ यौन हिंसा हो सकती है, लेकिन मुझे पता है कि कुकी महिलाओं, जो एक अल्पसंख्यक समुदाय है, के खिलाफ लक्षित हमला हो रहा है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ग्रोवर की दलील पर आपत्ति जताते हुए कहा कि इस तरह समुदायों का जिक्र न करें। सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा न दें। इस पर ग्रोवर ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि राहत शिविरों की क्या स्थिति है, इस पर एक स्वतंत्र और निष्पक्ष रिपोर्ट आने दीजिए।

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने सरकार से पूछा कि पुलिस को जीरो एफआईआर दर्ज करने में 14 दिन क्यों लगे। इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना है कि सरकार के पास छिपाने के लिए कुछ नहीं है। यह अदालत स्थिति पर नजर रख सकती है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ का कहना है कि यह निर्भया जैसी स्थिति नहीं है, जिसमें दुष्कर्म किया गया था। वह भी भयावह था, लेकिन अलग-थलग था। यहां हम प्रणालीगत हिंसा से निपट रहे हैं, जिसे आईपीसी एक अलग अपराध के रूप में मान्यता देता है।

इसलिए प्रशासन में विश्वास की भावना को बहाल करने के लिए, अदालत एक टीम नियुक्त करेगी। इसमें राजनीति से संबंधित व्यक्ति नहीं होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा कि भारत सरकार मणिपुर को घरों के पुनर्निर्माण के लिए कौन सा पैकेज दे रही है। CJI का कहना है कि केवल CBI, SIT को सौंपना पर्याप्त नहीं होगा। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि न्याय की प्रक्रिया उसके दरवाजे तक पहुंचे। हमारे पास समय ख़त्म हो रहा है। तीन महीने बीत गए हैं।

समति के गठन पर CJI का कहना है कि समिति के गठन के दो तरीके हैं- हम खुद एक समिति का गठन करते हैं- महिला और पुरुष न्यायाधीशों और डोमेन विशेषज्ञों की एक पार्टी। यह सिर्फ यह पता लगाने की कोशिश के संदर्भ में नहीं है कि क्या हुआ है, बल्कि हमें जीवन का पुनर्निर्माण करने की भी जरूरत है। CJI का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की सीमा इस बात पर भी निर्भर करेगी कि सरकार ने अब तक क्या किया है। यदि सरकार ने जो किया है, उससे हम संतुष्ट हैं, तो हम हस्तक्षेप भी नहीं कर सकते।

मैतेई समुदाय की ओर से पेश वकील का कहना है कि केवल एक ही वीडियो वायरल नहीं हुआ है, ऐसे कई वीडियो हैं, जिसमें लोगों को मरते हुए देखा जा सकता है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने मैतेई समुदाय की ओर से पेश वकील से कहा कि वे आश्वस्त रहें कि हमने केवल मामले के कागजात नहीं पढ़े हैं। मैंने भी वीडियो देखा है। वह वीडियो राष्ट्रीय आक्रोश का विषय था और हमने मामले पर ध्यान क्यों दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मणिपुर हिंसा से संबंधित मामले की सुनवाई कल दोपहर दो बजे तक के लिए टाल दी है।

पीड़ित महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

बता दें, पीड़ित दोनों महिलाओं ने सुप्रीम कोर्ट में केंद्र और मणिपुर सरकार के खिलाफ याचिका दायर कर मांग की है कि शीर्ष अदालत मामले में स्वत: संज्ञान लेकर निष्पक्ष जांच का आदेश दे। पीड़िताओं ने अपनी पहचान सुरक्षित रखने का भी अनुरोध किया है।।

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